अंतरिक्ष में भारतीय यात्री शुभांशु शुक्ला ने की धारवाड़ से पहुंचे बीजों की सिंचाई, जानें क्‍या है मकसद 

अंतरिक्ष में भारतीय यात्री शुभांशु शुक्ला ने की धारवाड़ से पहुंचे बीजों की सिंचाई, जानें क्‍या है मकसद 

शुभांशु ने स्प्राउट्स प्रोजेक्‍ट के लिए मूंग और मेथी के बीजों की सिंचाई की. इस प्रोजेक्‍ट का मकसद यह अध्ययन करना था कि अंतरिक्ष की उड़ान बीज के अंकुरण और पौधों के विकास को कैसे प्रभावित कर सकती है. बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्‍ट से मिली जानकारी अंतरिक्ष में खेती को बदल सकती है. मिशन के बाद, बीजों को कई पीढ़ियों तक पृथ्वी पर उगाया जाएगा. इसमें रिसर्चर्स जेनेटिक्‍स, सूक्ष्मजीव और पोषण संबंधी बदलाव का विश्लेषण करेंगे.

Advertisement
अंतरिक्ष में भारतीय यात्री शुभांशु शुक्ला ने की धारवाड़ से पहुंचे बीजों की सिंचाई, जानें क्‍या है मकसद Shubhansu Seeds irrigation: एक अहम प्रोजेक्‍ट के तहत इन बीजों को सींचा गया है

भारत के शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में 10 दिन पूरे कर लिए हैं. शुभांशु जो ग्रुप कैप्‍टन भी हैं, इस समय इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन (आईएसएस) पर कई तरह के प्रयोगों को अंजाम दे रहे हैं. यूं तो उनके प्रयोग में कई तरह के विषय हैं लेकिन जो सबसे दिलचस्‍प है, वह है बीजों की सिंचाई करना. शुभांशु अपने साथ अंतरिक्ष में मूंग और मेथी के बीज लेकर गए हैं. वह इन बीजों के जरिये अंतरिक्ष में स्‍प्राउट्स प्रोजेक्‍ट के तहत काम कर रहे हैं. 

शुभांशु ने सींचे मूंग और मेथी के बीज 

शुभांशु ने स्प्राउट्स प्रोजेक्‍ट के लिए मूंग और मेथी के बीजों की सिंचाई की. इस प्रोजेक्‍ट का मकसद यह अध्ययन करना था कि अंतरिक्ष की उड़ान बीज के अंकुरण और पौधों के विकास को कैसे प्रभावित कर सकती है. बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्‍ट से मिली जानकारी अंतरिक्ष में खेती को बदल सकती है. मिशन के बाद, बीजों को कई पीढ़ियों तक पृथ्वी पर उगाया जाएगा. इसमें रिसर्चर्स जेनेटिक्‍स, सूक्ष्मजीव और पोषण संबंधी बदलाव का विश्लेषण करेंगे.

इस प्रोजेक्‍ट के जरिये फसल उत्पादन प्रणालियों को अनुकूलित किए जाने की कोशिश हो रही है. इससे आने वाले समय में अंतरिक्ष के क्रू के लिए विश्वसनीय तौर पर भोजन की सप्‍लाई जारी रह सकेगी. इसकी प्रेरणा इसरो की हालिया तीव्र लोबिया अंकुरण जैसी सफलताओं से ली गई है. 

इन वैज्ञानिकों की है देन 

शुभांशु शुक्ला का एक्सिओम-4 मिशन के तहत जो बीज आईएसएस तक लेकर गए हैं, वो धारवाड़ के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय (यूएएस) की तरफ से उन्‍हें सौंपे गए थे. पिछले दिनों आई एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्‍प्राउट्स प्रोजेक्‍ट के तहत यूनिवर्सिटी के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर रविकुमार होसामनी और आईआईटी-धारवाड़ के को-इनवेस्टिगेटर सुधीर सिद्धपुरेड्डी ने एक प्रोजेक्‍ट शुरू किया जिसके तहत दो तरह के बीज - मूंग और मेथी - प्रयोग के लिए आईएसएस पहुंचे हैं. प्रोफेसर होसामनी ने इन बीजों को सूखे रूप में कैनेडी स्पेस सेंटर-नासा की इंटीग्रेटेड टीम को सौंपा था. 

कैसे की शुभांशु ने सिंचाई 

शुभांशु ने बड़े ध्‍यान से इन बीजों की सिंचाई की हैं. सबसे पहले उन्‍होंने इन बीजों में पानी डाला और दो से चार दिनों के अंदर इनमें अंकुर आ गए. अब अंकुरों को अंतरिक्ष स्टेशन पर तब तक जमे रहने दिया जाएगा जब तक कि ये पृथ्वी पर वापस नहीं आ जाते. उनके लौटने पर अधिकारी बीजों की अंकुरण दर (अंकुरण) का आकलन करेंगे और उनकी पोषण गुणवत्ता को परखा जाएगा. साथ ही फाइटोहोर्मोन गतिशीलता में परिवर्तनों को भी देखा जाएगा. इस रिसर्च का मकसद अंतरिक्ष में यात्रियों के पोषण के मकसद से भारत-केंद्रित सलाद सब्जियों के विकास में योगदान देना है. हरी मूंग एक पारंपरिक अर्ध-शुष्क अंकुरित सब्जी है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर भारतीय व्यंजनों में किया जाता है. जबकि मेथी में महत्वपूर्ण औषधीय गुण होते हैं और यह पोषक तत्वों से भरपूर होती है.  

यह भी पढ़ें- 

POST A COMMENT