भारत की सूक्ष्म उर्वरक निर्माता कंपनियों ने सरकार से अपील की है कि उन पर लग रहे गैर जरूरी नियमों और जांचों को कम किया जाए और पूरे देश में एक ही लाइसेंस को मान्यता दी जाए. इंडियन माइक्रो फर्टिलाइज़र मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IMMA) के अध्यक्ष राहुल मीरचंदानी ने कहा कि आज जो ‘फर्टिलाइज़र कंट्रोल ऑर्डर (FCO)’ है, उसकी जरूरत पुराने जमाने में थी, जब देश में खाद की भारी कमी और मिलावट की समस्या थी. लेकिन, अब हालात बदल चुके हैं. इसलिए उर्वरकों पर ‘कंट्रोल’ की बजाय इनके मैनेजमेंट की सोच अपनाई जानी चाहिए.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, मीरचंदानी ने महात्मा मंदिर, गांधीनगर में आयोजित एक चर्चा में कहा कि जिस तरह FERA (विदेश मुद्रा अधिनियम) की जगह FEMA (विदेश मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) आया, उसी तरह उर्वरक क्षेत्र को भी मैनेजमेंट के नजरिए से देखना चाहिए. मीरचंदानी ने बताया कि कंपनियों को हर राज्य के लिए अलग लाइसेंस लेना पड़ता है, जबकि अब हम एकीकृत कर प्रणाली (IGST) में हैं, जिसमें कहीं भी उत्पादन और बिक्री संभव है. फिर हर राज्य में डिपो बनाना और लाइसेंस लेना, सिर्फ लागत बढ़ाता है और इसका सीधा असर किसानों पर पड़ता है.
उन्होंने कहा कि माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की खपत देश में 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और वित्त वर्ष 2025 में यह 6.35 लाख टन तक पहुंच चुकी है. लेकिन, 8-15 प्रतिशत अतिरिक्त लागत सिर्फ सरकारी अनुपालन (compliance) के कारण जुड़ जाती है. कंपनियों को कई बार छोटे-मोटे लेबल की गलतियों- जैसे स्पेलिंग में गलती के लिए भी आपराधिक धाराओं में घसीटा जाता है. स्थानीय निरीक्षकों को बहुत अधिक अधिकार दिए गए हैं, जिससे कंपनियों को बेवजह परेशान होना पड़ता है.
SFIA के अध्यक्ष रजीब चक्रवर्ती ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा जांचें अगर किसी इंडस्ट्री में होती हैं, तो वह उर्वरक उद्योग है. यहां तक कि दवाइयों और खाने-पीने के सामान की कंपनियों पर भी इतनी सख्ती नहीं है. उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे माहौल में भारत, चीन जैसे देश से स्पेशियल्टी फर्टिलाइज़र बाजार में कैसे मुकाबला करेगा?
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