जीएम सरसों के बाद अब आ रहा है GE केला- रबर और मक्का, रिसर्च की मिली इजाजत

जीएम सरसों के बाद अब आ रहा है GE केला- रबर और मक्का, रिसर्च की मिली इजाजत

पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्रीफूड बायो टेक्नोलोजी इंस्टीट्यूट (NABI) केले के फल को आइरन से फोर्टिफाई करने के लिए जेनेटिक एंजिनियरिंग का इस्तेमाल कर रहा है. इस संस्था ने केले की पांच जीई लाइंस, जिनमें चावल में पाए जाने वाले निकोटीयनमाइन सिन्थेस जीन हैं, के इवेंट सिलेक्शन ट्रायल के लिए मूल्यांकन समिति में आवेदन दिया था.

Advertisement
जीएम सरसों के बाद अब आ रहा है GE केला- रबर और मक्का, रिसर्च की मिली इजाजतदेश भर के कृषि संस्थानों में जीई फसलें तैयार की जा रही हैं

जेनेटिकली एंजिनियर्ड (GE) सरसों की फसल के पर्यावरणीय रिलीज़ को लेकर विवाद अभी थमा नहीं है, लेकिन देश भर के कृषि संस्थानों में अन्य जीई फसलें तैयार की जा रही हैं. इन फसलों में मुख्य हैं- जीई केला, जीई आलू, और जीई रबर. इसी कड़ी में शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्था को जीई आलू के क्लोनल हाइब्रिड केजे66 पर बायोसेफ़्टी रिसर्च (लेवेल-1) शुरू करने की अनुमति मिल गई है.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) के एक सदस्य ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को तफसील से बताया, “(किसी भी शोध को) मंजूरी मिलने के पांच चरण होते हैं. पहला होता है – इवेंट सिलेक्शन ट्रायल और उसके बाद होता है बायोसेफ़्टी रिसर्च लेवेल-1 (बी आर एल-1).“ उसके बाद आते हैं बायोसेफ़्टी रिसर्च लेवेल-2, पर्यावरण रिलीज़ और आखिरी चरण होता है व्यावसायिक खेती.

समिति के सदस्य ने यह भी बताया कि जीईएसी देश भर की संस्थाओं और कंपनियों से आए शोध प्रस्तावों का मूल्यांकन कर रही है. मूल्यांकन समिति को जीई आलू के साथ ही जीई केला और जीई रबर पर इवेंट सिलेक्शन ट्रायल संचालित करने की अनुमति के लिए भी आवेदन मिले हैं.

केला

टमाटर के बाद केला दुनिया भर में सबसे ज़्यादा खाया जाने वाला फल है, और भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है. चूंकि पूरी दुनिया में केले की फसलों को एक खास फंगस का खतरा रहता है, इसलिए विश्व भर के वैज्ञानिक इस फंगस के प्रतिरोधी फल को पैदा करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं. बहरहाल, पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्रीफूड बायो टेक्नोलोजी इंस्टीट्यूट (NABI) केले के फल को आइरन से फोर्टिफाई करने के लिए जेनेटिक एंजिनियरिंग का इस्तेमाल कर रहा है. इस संस्था ने केले की पांच जीई लाइंस, जिनमें चावल में पाए जाने वाले निकोटीयनमाइन सिन्थेस जीन हैं, के इवेंट सिलेक्शन ट्रायल के लिए मूल्यांकन समिति में आवेदन दिया था.

ये भी पढ़ें: किसानों के लिए बड़ी घोषणा, अगले पांच साल में दो लाख को-ऑपरेविट सोसायटी बनाएगी सरकार

GEAC की अनुमति के बाद 2022-24 के फसल के सीजन में इन पांच जगहों पर इसके ट्रायल संचालित किए जाएंगे. इनमें NABI मोहाली, नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर, नवसारी एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी, नवसारी और सरत चन्द्र सिन्हा कॉलेज ऑफ एग्रिकल्चर, असम शामिल हैं.

NABI, मोहाली ने 20 जीई बनाना लाइंस की इवेंट सिलेक्शन ट्रायल शुरू करने का प्रस्ताव भी दिया है. इन फलों में APsy2a और NEN-DXS2 जींस होते हैं जो प्राकृतिक तौर पर फल में प्रो-विटामिन ए की मात्र को बढ़ा देते हैं. प्रो-विटामिन एक ऐसा पदार्थ है जिसे मनुष्य का शरीर विटामिन में बदल सकता है.

आलू

KJ66 आलू को जंगली मेक्सिकन डिप्लोइड पोटैटो से बनाया गया था और इसका मूल्यांकन फिस्टोफोरा इंफेस्टन (झुलसा रोग या लेट ब्लाइट) के प्रतिरोध के लिए किया जाएगा. यह एक ऐसा रोगाणु है जिससे फसल पर पाला पड़ जाता है. फिस्टोफोरा इंफेस्टन एक ऐसा फफूंद है जिसके कारण ब्रिटेन को 1840 के दशक में लगातार आलू के अकाल को झेलना पड़ा था. पिछले अगस्त महीने में, मूल्यांकन समिति ने सीपीआरआई को अपने शिमला स्थित मुख्यालय और शिमला के बाहर स्थित कुफ़री के क्षेत्रीय स्टेशन में केजे66 के ट्रायल शुरू करने की अनुमति दी थी. इसके कनफाइंड फील्ड ट्रायल (किसी भी आकस्मिक पर्यावरणीय रिलीज़ को रोकने के लिए) की निगरानी विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की जेनेटिक मेनिप्यूलेशन समीक्षा समिति (RCGM) करेगी.

मक्का

GEAC ने कर्नाटक की रल्लिस इंडिया लिमिटेड को जीई मक्का के बीआरएल -1 ट्रायल संचालित करने की सशर्त मंजूरी दी थी. इस जेनेटिकली एंजिनियर्ड मक्का में CRY1AB और CRY1F और सिंथेटिक EPSPS जींस होते हैं. 2022-23 और 2023-24 में प्रति वर्ष दो ट्रायल लोकेशन पर स्पोदोप्टेरा फ्रूगीपेर्डा (Spodoptera Frugiperda), जो एक तरह का पतंगा होता है, के प्रति इस मक्का की प्रतिरोध क्षमता और ग्लाइफोसेट हर्बीसाइड के प्रति सहनशीलता का मूल्यांकन किया जाएगा.

कपास

इसी दौरान हैदराबाद स्थित बायोसीड रिसर्च इंडिया ने 10 जीई कॉटन लाइंस के इवेंट सिलेक्शन ट्रायल्स की अनुमति मांगी है जिनमें CRY2Ai जीन होता है जिससे ये पौधा कपास सूती यानी कॉटन बॉलवर्म के लिए घातक हो जाता है. 2023 के खरीफ के मौसम के दौरान इस कंपनी ने अपने दो साइट - तेलंगाना और महाराष्ट्र में जलना में पिंक बॉलवर्म के प्रति जीई कॉटन की प्रतिरोध क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए ट्रायल प्रस्तावित किए हैं.

रबर

रबर ऑटो मोबाइल उद्योग के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण कच्चा माल है. इसकी फसल को भी जेनेटिकली सुधारा जा रहा है. रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, कोट्टायम को दो जीई रबर लाइंस के इवेंट सिलेक्शन ट्रायल की अनुमति जीईएसी से मिल गई है. इनमें तंबाकू में से निकाला गया ओस्मोटिन जीन है जो इसे जैविक/अजैविक तनाव झेलने की क्षमता देता है. ये ट्रायल सरूटरी फार्म, आरआरआर, गुवाहाटी में 2023-2038 तक फसल के मौसम में पंद्रह सालों तक संचालित किए जाएंगे क्योंकि रबर के पौधे की पकने की अवधि तकरीबन 6-7 साल लंबी होती है. 

ये भी पढ़ें: राजस्थान सरकार की इस योजना से बढ़ेगी ऊंटों की संख्या! जैसलमेर के ऊंट पालक खुश

GEAC को बताया गया कि ओस्मोटिन जो कि स्ट्रेस रेस्पोंसिव बहुआयामी प्रोटीन होता है, वह पौधों मे ओस्मोटोलरेन्स उत्पन्न कर देता है. यह अनेक तत्वों से सक्रिय हो सकता है जैसे सामान्य नमक (NaCl), शुष्कता, एथिलीन, एब्सिसिक एसिड (पौधों में पाया जाने वाला हॉरमोन), टोबेको मोजेक वायरस, फंगस और यूवी लाइट. प्रयोगशाला में दिखाया गया कि ओस्मोटिन फाइटोफ्थोरा केंडीडा और न्यूरोस्पोरा क्रासा जैसी अनेक फंगस को नुकसान पहुंचा सकता है.

‘जीई सरसों मक्खियों के लिए सुरक्षित’

एक बात जिसके कारण पर्यावरणविद जेनेटिकली एंजिनियर्ड फसलों का विरोध करते हैं, वो ये है कि मक्खियों पर इनका असर पता नहीं है. और मक्खियां परागण के जरिये पौधों के प्रजनन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. बहरहाल, जीईएसी की 147वीं बैठक के दौरान ट्रांसजीनिक मस्टर्ड हाइब्रिड DMH-11 के पर्यावरणीय रिलीज़ को स्वीकृति देते हुए विशेषज्ञ समिति ने कहा, “वैश्विक स्तर पर उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाणों की जांच और संबन्धित मंत्रालयों की अनुशंसा के आधार पर यह बहुत असंभव सा लगता है कि जींस के बार, बार्नेस और बार स्टार सिस्टम का मक्खियों या अन्य परागणकारी कीटों पर कोई प्रतिकूल असर पड़ता हो.“

चूंकि व्यावसायिक खेती से पहले पर्यावरणीय रिलीज़ अंतिम चरण होता है इसलिए समिति ने सिफ़ारिश की, “रिलीज़ और अधिसूचना के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चर रिसर्च (ICAR) के दिशा निर्देशानुसार आगे के मूल्यांकन किए जाएं.“ इसलिए, इसके रिलीज़ के बाद दो साल तक ICAR की निगरानी में फील्ड डेमोस्ट्रेशन स्टडीज़ संचालित की जाएंगी.(साभार-टाइम्स ऑफ इंडिया)

POST A COMMENT