देश के अंदर ऊंट संकट का सामना कर रहे हैं. रेगिस्तान के जहाज से पहचाने जाने वाले ऊंटों की संख्या में लगातार गिरावट जारी है. केंद्र सरकार की तरफ से संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक 2012 से 2019 के बीच पूरे भारत में ऊंटों की संख्या लगभग डेढ़ लाख घटकर 2.52 लाख रह गई है, जिसमें राजस्थान में ऊंटों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है. क्योंकि राजस्थान में ही कुल 85 फीसदी ऊंट होते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तीन साल से बंद पड़ी उष्ट्र संरक्षण योजना की घोषणा की है, जिसके शुरू होने से ऊंटों की संख्या में बढ़ाेत्तरी होने का अनुमान है. इस योजना के लागू होने से जैसलमैर के ऊंट पालक काफी खुश हैं. क्योंकि प्रदेश के अंदर जैसलमैर में ही सबसे अधिक ऊंट हैं. आइए जानते हैं कि ये योजना क्या है. इससे कैसे ऊंटों की जनसंख्या बढ़ेगी और ऊंट पालकों को क्या फायदा होगा.
इस याेजना के तहत राजस्थान सरकार ने ऊंटनी के बच्चा देने पर ऊंट मालिक को दो किश्तों में 10 हजार रुपए देने की घोषणा की है. सरकार दो किश्तों में 10 हजार रुपए की भरण-पोषण राशि देगी.
योजना का लाभ लेने के लिए ई-मित्र से ऊंट पालक को आवेदन करना होगा. आवेदन के बाद टोडिया के जन्म से दो महीने का होने तक नजदीकी पशु चिकित्सक से माध्यम से भौतिक सत्यापन किया जाएगा. इसके बाद ऊंट पालक के खाते में पांच हजार रुपए डाले जाएंगे.
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इसके बाद टोडिया के एक साल का होने पर दूसरा भौतिक सत्यापन किया जाएगा. इसके बाद ऊंट पालक के खाते में दूसरी किश्त के पांच हजार रुपये डाले जाएंगे. इस योजना का लाभ ऊंटनी के दूसरी बार ब्याने पर भी दिया जाएगा, लेकिन ऊंटनी का रजिस्ट्रेशन 15 महीने पुराना होना चाहिए.
राजस्थान में ऊंटों की कम होती संख्या को ध्यान में रखते हुए 2016 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने उष्ट्र संरक्षण योजना की शुरूआत की थी. इसके तहत भी ऊंट पालकों को 10 हजार रुपए दिए जाते थे. योजना के तहत 2016 से 2020 तक 3.13 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे. लेकिन 2019 के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई.
उष्ट्र विकास योजना के तहत टोडिया के पैदा होने पर तीन हजार रुपये, 9 महीने का होने पर तीन हजार और फिर 18 महीने का होने पर चार हजार रुपये की सहायता दी जाती थी. 2019 से 2022 तक योजना के तहत किसी भी ऊंट पालक को सहायता नहीं दी गई.
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अब योजना को फिर से शुरू करने के बाद नवंबर 2022 या इसके बाद पैदा हुए टोडियों को अब योजना का लाभ दिया जाएगा. इसके लिए ऊंट पालकों को नजदीकी ई-मित्र से आवेदन करना होगा. ऊंटनी के ब्याने से दो माह के अंदर ही रजिस्ट्रेशन होना अनिवार्य है. रजिस्ट्रेशन के बाद पशुपालन विभाग ऊंटों की टैगिंग करेगा.
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देश में सबसे अधिक ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं और राजस्थान में ऊंटों की सबसे ज्यादा संख्या जैसलमेर में है. जैसलमेर के देगराय ओरण के सिर्फ चार गांवों सांवता, रासला, अचला और भोपा में ही पांच हजार से ज्यादा ऊंट हैं. इसीलिए योजना के बंद होने पर सबसे अधिक नुकसान इन्हीं गांवों के ऊंट पालकों को हुआ था. अब योजना फिर से शुरू होने से यहां के पशुपालकों ने राहत की सांस ली है. सांवता गांव के ऊंट पालक सुमेर सिंह योजना के फिर से शुरू होने पर कहते हैं कि 10 हजार रुपये की सहायता काफी कम है, लेकिन कुछ नहीं से बेहतर थोड़ा होना है. इससे ऊंट पालकों को थोड़ा संबल जरूर मिलेगा.
राजस्थान के कई जिलों में योजना का क्रियान्वन शुरू हो गया है. इसी कड़ी में रासला पंचायत के सावता अचला में फतेहगढ़ नोडल अधिकारी डा देवेन्दर कुमार गांव पहुंचे. उन्होंने गांव पहुंच कर ऑनलाइन फार्म भर चुके ऊंट पालकों के ऊंटों की टैगिंंग की. वहीं देगराय ऊष्ट संरक्षण संस्थान के अध्यक्ष सुमेर सिंह भाटी सावता ने भी सभी पशुपालकों को जानकारी दी ओर बताया की इस योजना का लाभ जरुर लें और राज्य सरकार का भी आभार प्रकट किया.
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