देश-विदेश में साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के तौर पर मनाया जा रहा है. वहीं मोटे अनाजों का उत्पादन और खपत बढ़ाने के लिए इनदिनों देशभर में पहल किया जा रहा है. इसके लिए मोटे अनाजों की नई-नई किस्में विकसित की जा रही हैं. इसी क्रम में ज्वार की दो नई किस्में BGV-44 और CSV-29 विकसित की गई हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार ज्वार की इन दोनों किस्मों की बदौलत ज्वार उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. इसके पौधे लंबे होते हैं और समान्य किस्मों की तुलना में इससे लगभग 25 प्रतिशत तक अधिक उपज मिलती है. ऐसे में आइए उच्च उपज वाली BGV-44 और CSV-29 किस्मों की विशेषताएं जानते हैं-
दरअसल, ज्वार के उत्पादन में कमी को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक के विजयपुरा में स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र (आरएआरएस) ने ज्वार फसल की दो उच्च उपज वाली BGV-44 और CSV-29 किस्में विकसित की हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार ज्वार की इन दोनों किस्मों की बदौलत ज्वार उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.
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इकॉनोमिक टाइम्स के अनुसार मुख्य वैज्ञानिक एवं ज्वार डवलपमेंट प्रोग्राम के प्रमुख एस.एस. करभंतनाल ने कहा कि, ज्वार की इन नई किस्मों की बुवाई सीमित क्षेत्रों में ट्रायल के तौर पर पूरी कर ली गई है. उन्होंने कहा, "इसके पौधे लंबे होते हैं और समान्य किस्मों की तुलना में इससे लगभग 25 प्रतिशत तक अधिक उपज मिलती है.”
बीजीवी-44 के बारे में उन्होंने कहा कि यह ब्लैक कॉटन सॉइल के लिए सबसे उपयुक्त है, CSV-29 किस्म की खेती के लिए भी ब्लैक कॉटन सॉइल सबसे उपयुक्त है. ज्वार की ये दोनों किस्में, एम-35-1 किस्म से बेहतर हैं. नई किस्म से 8-10 क्विंटल अनाज और 22-25 क्विंटल चारा मिल सकता है. चूंकि चारे में अधिक नमी होती है, इसलिए यह मवेशियों को अधिक पोषण प्रदान करता है. अधिक उपज देने के अलावा, किस्में कीट-प्रतिरोधी भी हैं.
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इकॉनोमिक टाइम्स के अनुसार वर्तमान में, हितिनाहल्ली गांव के पास CSV-29 किस्म की खेती करने वाले किसान सिद्धारमप्पा नवदगी ने कहा कि पौधे में पारंपरिक किस्म की तुलना में अधिक अनाज होता है. उन्होंने कहा, "मुझे इस किस्म से अधिक उपज मिलने की उम्मीद है." बता दें कि ज्वार की खेती भारत में प्राचीन काल से होती आई है. इसकी खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है. वहीं पशुओं के चारे के रूप में ज्वार के सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है.
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