पंजाब में भी यूरिया और डीएपी खाद के लिए मारामारी है. देश के बाकी हिस्सों की तरह पंजाब के किसान भी यूरिया की किल्लत (urea shortage) से जूझ रहे हैं. खबर है कि यहां की कुछ को-ऑपरेटिव सोसायटी यूरिया की कमी झेल रही हैं जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. रबी सीजन में किसानों के लिए इससे बड़ी समस्या खडी हो रही है. पंजाब में इस कमी के पीछे एक बड़ी वजह है. प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने निर्देश दिया है कि खाद की अधिक सप्लाई को-ऑपरेटिव सोसायटी को की जाए, न की प्राइवेट दुकानों को. लेकिन कृषि विभाग इस निर्देश का अमल नहीं कर रहा जिससे खादों की कमी देखी जा रही है.
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 30 दिसंबर को एक आदेश दिया जिसमें कहा गया कि यूरिया (urea shortage) और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का 60 परसेंट हिस्सा को-ऑपरेटिव सोसायटियों को और 40 परसेंट प्राइवेट दुकानों को दिया जाए. 'दि ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट बताती है कि कृषि विभाग इस आदेश पर अमल नहीं कर रहा जिससे को-ऑपरेटिव सोसायटी में पर्याप्त यूरिया-डीएपी नहीं आने से किसानों को परेशानी झेलनी पड़ रही है.
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पंजाब में मौजूदा गेहूं की फसल के लिए लगभग 14.50 लाख मीट्रिक टन यूरिया की जरूरत है. अभी चल रहे रबी सीजन के लिए फरवरी शुरुआत में यूरिया (urea shortage) की मांग बंद होगी. इस हिसाब से अभी लगभग एक हफ्ते तक किसानों को यूरिया की जरूरत पड़ेगी. लेकिन कुछ जिलों के किसान यूरिया की कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि को-ऑपरेटिव सोसायटी में पर्याप्त खाद नहीं है. ऐसे में उन्हें प्राइवेट दुकानों से अधिक दाम पर खाद लेना पड़ रहा है.
कई जगह ऐसा भी देखा जा रहा है कि प्राइवेट दुकानों पर किसानों को खाद के साथ कीटनाशक या खर-पतवार नाशक लेने पर ही सरकारी रेट पर खाद मिल रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, गुनियाना, संगत और बठिंडा की को-ऑपरेटिव सोसायटी में खाद की भारी कमी (urea shortage) देखी जा रही है. अभी प्राइवेट दुकानों पर उतनी ही खाद की सप्लाई है जितनी को-ऑपरेटिव सोसायटी में. इसलिए प्राइवेट दुकानदार जानबूझकर बाजार में कमी पैदा करते हैं जिससे अधिक दाम पर खाद बेचने का मौका मिला. इस तरह किसानों को यूरिया और डीएपी के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
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सूत्रों के मुताबिक, मनसा, संगरूर, फरीदकोट, मोगा और बठिंडा जिले की को-ऑपरेटिव में यूरिया-डीएपी की भारी कमी देखी जा रही है. इस किल्लत को देखते हुए मुख्यमंत्री ने को-ऑपरेटिव सोसायटी में सप्लाई बढ़ाने का आदेश दिया. पहले 50 परसेंट सप्लाई होती थी जिसे बढ़ाकर 60 परसेंट करने का आदेश दिया गया. लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं होने से किसानों को प्राइवेट दुकानों से यूरिया और डीएपी की खरीद करनी पड़ रही है. इससे किसानों को महंगे रेट पर खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
देश के कई हिस्सों में यूरिया (urea shortage) और डीएपी की किल्लत देखी जा रही है. राज्यों को इसकी सप्लाई केंद्र की ओर से की जाती है. राज्य सरकारें अपनी खपत के हिसाब से केंद्र से खाद की मांग करती हैं. केंद्र उस मांग के अनुरूप यूरिया की सप्लाई राज्यों को करती है. यह सप्लाई को-ऑपरेटिव सोसायटी और प्राइवेट दुकानों के द्वारा किसानों तक पहुंचती है. सरकार की तरफ से यूरिया और अन्य खादों के दाम निर्धारित होते हैं. उससे अधिक कोई दुकानदान दाम नहीं वसूल सकता. अगर वसूली अधिक हो तो सरकार की तरफ से उसके खिलाफ कार्रवाई करने का नियम है. लेकिन खाद की कमी के चलते दुकानदार मनमानी कीमतों पर बिक्री कर रहे हैं. ऐसी शिकायतें कई राज्यों से आ रही हैं.
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