मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना ने किसानों से अपील की है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में कीटनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं का उपयोग कम से कम करें. उन्होंने बताया कि इन दवाओं का अत्यधिक उपयोग ना सिर्फ फसलों के लिए बल्कि इंसानों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकता है.
कृषि मंत्री ने बताया, प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती का क्षेत्रफल 14.39 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है, जो कि तीसरी फसल के रूप में ली जाती है. अनुमानित उत्पादन 20.29 लाख मेट्रिक टन है और औसत उत्पादकता 1410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही है. यह फसल मुख्य रूप से नर्मदापुरम, जबलपुर और भोपाल संभागों में उगाई जाती है. इस खेती से किसानों की आय में बड़ी वृद्धि हुई है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.
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हालांकि ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती से किसानों की आय में वृद्धि हुई है, लेकिन इस फसल में कीटनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं का अत्यधिक उपयोग हो रहा है. खासकर, फसल को जल्दी पकाने के लिए पेराक्वाट डाइक्लोराइड जैसे खरपतवारनाशक का इस्तेमाल बढ़ गया है. इसका रिजल्ट यह हो रहा है कि इन दवाओं के अंश मूंग की फसल में रह जाते हैं, जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
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कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना ने किसानों से आग्रह किया है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में कीटनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं का उपयोग केवल जरूरत के अनुसार करें. उनका कहना है कि इन दवाओं के अत्यधिक उपयोग से न केवल पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं.
ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल की क्वालिटी बनाए रखना बहुत जरूरी है. यह क्वालिटी तभी बढ़ेगी जब केमिकल दवाओं का कम से कम प्रयोग होगा. किसानों को अपनी फसल में इस्तेमाल होने वाली रासायनिक दवाओं के प्रति जागरूक करना और उनका सही तरीके से इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है. इससे न सिर्फ फसल की क्वालिटी बेहतर होगी, बल्कि किसानों के स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा.
दलहनी फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की जरूरत होती है. मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है. नाइट्रोजन और फास्फोरस की समस्त मात्रा 87 किलोग्राम, डीएपी और 10 किलोग्राम यूरिया बुवाई के समय देनी चाहिए. मूंग की खेती के लिए खेत में दो तीन साल में कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कंपोस्ट खाद देनी चाहिए. इसके अतिरिक्त 600 ग्राम रोइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए और बुवाई कर देनी चाहिए. खाद और उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए.
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