गेहूं खरीद सीजन शुरू होने में अब केवल 20 दिन बचे हैं, लेकिन हरियाणा भर के ट्रांसपोर्टर गेहूं उठाने के लिए टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से कतरा रहे हैं. इसके लिए वे राज्य सरकार की ओर से 2025-26 के लिए शुरू किए गए पॉलिसी में बदलावों का हवाला दे रहे हैं. टेंडर के लिए आवेदन करने से इनकार करने से खरीद के काम में देरी को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
एजेंसियों की ओर से टेंडर दोबारा जारी करने के बावजूद अभी तक कोई आवेदन नहीं मिला है. फरवरी में जारी टेंडर का पहला राउंड 5 मार्च को खोला गया था, लेकिन किसी भी ठेकेदार ने आवेदन नहीं किया. एजेंसियों ने अब टेंडर दोबारा जारी किए हैं, जिन्हें 11 मार्च को खोला जाना है, लेकिन ट्रांसपोर्टर अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं.
ठेकेदारों के विरोध के बाद सरकार ने परिवहन नीति में कुछ ढील दी है, फिर भी कई लोगों का तर्क है कि इन बदलावों से अभी भी काफी वित्तीय नुकसान हो रहा है. ट्रांसपोर्टरों ने खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग के निदेशक के सामने शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें आगे कुछ बदलाव करने की मांग की गई है.
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ट्रांसपोर्ट ठेकेदार अशोक खुराना ने जुर्माने की इस नीति की आलोचना की. "पिछले साल की नीति के तहत ट्रांसपोर्टरों को 48 घंटे के भीतर खरीदा गया गेहूं उठाना था, ऐसा न करने पर 500 रुपये हर दिन का जुर्माना लगाया गया था. फरवरी 2025 में इसे संशोधित कर 5,000 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया, जो बहुत ज्यादा था. विरोध के बाद इसे घटाकर 1,000 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया, लेकिन यह अभी भी बहुत ज्यादा है. इसे 100 रुपये प्रतिदिन होना चाहिए," उन्होंने तर्क दिया.
दूसरा बड़ा मुद्दा सिक्योरिटी जमा करने को लेकर है. पहले, ठेकेदारों को अपने ट्रकों में से कम से कम 30 परसेंट ट्रक अपना रखना पड़ता था या प्रति ट्रक 50,000 रुपये रिफंडेबल जमा के रूप में देना पड़ता था. फरवरी में, इसे बढ़ाकर 1.25 लाख रुपये प्रति ट्रक कर दिया गया, जिसमें 75,000 रुपये रिफंडेबल और 50,000 रुपये नॉन- रिफंडेबल थे. भारी विरोध के बाद सरकार ने इसे 1 लाख रुपये में एडजस्ट किया, जिसमें 85,000 रुपये रिफंडेबल और 15,000 रुपये नॉन रिफंडेबल किया गया.
खुराना ने मांग उठाते हुए कहा, "विभाग को सिक्योरिटी समाप्त कर देनी चाहिए, क्योंकि हम पहले ही कुल कॉन्ट्रैक्ट मूल्य का 10 परसेंट सिक्योरिटी के रूप में जमा कर चुके हैं."
ठेकेदारों ने इस बात पर भी चिंता जताई कि कई दिनों तक ट्रकों में लोड रहने के बाद गोदामों में फसलें खारिज कर दी जाती हैं, जिससे उन्हें बिना मुआवजा के मंडियों से लौटना पड़ता है. इससे ड्राइवर के भुगतान और तेल की लागत पर अतिरिक्त खर्च होता है. खुराना ने जोर देकर कहा कि जब तक उनकी चिंताओं का समाधान नहीं हो जाता, ट्रांसपोर्टर टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं लेंगे.
खुराना ने कहा, "सरकार की नई शर्तों से ट्रांसपोर्टरों को भारी नुकसान होगा. हम ऐसे वित्तीय बोझ के तहत काम नहीं कर सकते. जब तक नीति को 2023 के रूप में बहाल नहीं किया जाता, हम टेंडर के लिए आवेदन नहीं करेंगे."
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गतिरोध के बावजूद, जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक (डीएफएससी) अनिल कुमार अगली टेंडर बोली में ठेकेदारों की भागीदारी के बारे में उम्मीद जताई. उन्होंने 'दि ट्रिब्यून' से कहा, "पिछली टेंडर बोली में किसी ने आवेदन नहीं किया था. हालांकि, हमने अधिकांश चिंताओं का समाधान कर दिया है. 2025-26 नीति के तहत गेहूं उठाने और परिवहन की तैयारी चल रही है. नई बोली मंगलवार को खुलेगी और हमें उम्मीद है कि ठेकेदार आवेदन करेंगे."
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