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Pollution and Parali : यूपी में योगी सरकार किसानों को सिखा रही पराली से आय बढ़ाने के गुर

Pollution and Parali : यूपी में योगी सरकार किसानों को सिखा रही पराली से आय बढ़ाने के गुर

यूपी सहित देश के तमाम उत्तरी राज्यों में गेहूं की फसल पकने वाली है. ऐसे में कटाई के लिए फसल तैयार होने से पहले यूपी में योगी सरकार ने किसानों को Stubble Burning से रोकने के लिए खास जागरूकता मुहिम शुरू की है. इसमें किसानों से कहा जा रहा है कि यदि वे पराली जलाते हैं तो, अपनी किस्मत खाक करेंगे.

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एनजीटी प्रदूषण और पराली पर सख्त. (सांकेतिक फोटो) एनजीटी प्रदूषण और पराली पर सख्त. (सांकेतिक फोटो)

होली के बाद यूपी सहित पूरे उत्तर भारत में गेहूं की कटाई शुरू हो जाएगी. हार्वेस्टर मशीन से गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचने वाली पराली काफी मात्रा में निकलती है. किसान अक्सर इसे जला देते हैं. इससे न केवल Air Pollution होता है बल्कि देहात इलाकों में आग लगने का भी खतरा होता है. योगी सरकार ने Crop Residue जलाने की इस गलत परिपाटी को रोकने के लिए किसानों के बीच व्यापक पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया है. योगी सरकार के इस तरह के प्रयासों से पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है. इस पर प्रभावी रूप से रोक लगाने के लिए योगी सरकार ने पराली जलाने से खुद किसानों को होने वाले नुकसान के प्रति आगाह करते हुए कहा है कि ऐसा करके वे अपने खेत  Productivity को कम करते हैं.

मुहिम का मूल मंत्र

सीएम ऑफिस की ओर से बताया गया कि किसानों काे जागरूक किया जा रहा है कि पराली जलाने से पर्यावरण, जमीन की उर्वरता और पशु चारे की उपलब्धता पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही इससे आग लगने के खतरे को देखते हुए सरकार व्यापक पैमाने पर Awareness Campaign चला रही है. इसके समानांतर सरकार ने फसल अवशेष को सहजने के लिए किसानों को अनुदान पर Farm Machinery देने की भी पहल की है, जिससे पराली की कंपोस्टिंग करके Bio Di composer भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

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फसल अवशेष में है पोषक तत्वों का खजाना

किसानों को वैज्ञानिक शोध के हवाले से बताया जा रहा है कि पराली में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है. इसे जलाने की बजाए अगर खेत में ही इनकी कंपोस्टिंग कर दी जाय तो मिट्टी में एनपीके की कमी को पूरा किया जा सकता है.

साथ ही आग लगने से जमीन के Carbonic Elements, बैक्टीरिया और फफूंद जल जाते हैं, उन्हें भी पराली न जला कर बचाया जा सकता है. इससे पर्यावरण संरक्षण और Global Warming में कमी लाने का बोनस भी मिलता है. इससे अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत में इतनी ही कमी आ जाती और लगभग इतना ही लाभ भी बढ़ जाता है.

सरकार की ओर से किसानों को Gorakhpur Environmental Action Group की अध्ययन रिपोर्ट के हवाले से ये जानकारी दी जा रही है. इसके अनुसार पराली जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा प्रति एकड़, 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल कर नष्ट हो जाते हैं.

उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डा. बीके सिंह के मुताबिक पराली से  प्रति एकड़ करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. अगर एक सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए माना जाए तो पराली के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में किसानों के लिए यही चारा संकट का कारण बनता है.

फसल अवशेष के लाभ

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान कम होने से इसमें Microbes की सक्रियता बढ़ जाती है. ये सूक्ष्मजीव अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं. इसके अलावा पराली से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से जमीन की Water Holding Capacity भी बढ़ती है. इससे सिंचाई में कम पानी लगने से खेती की लागत घटती है और पानी की भी बचत होती है.

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इसके मद्देनजर किसानों काे सलाह दी गई है कि पराली जलाने के बजाए उसे गहरी जुताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें. इसे खेत में जल्दी सड़ाने के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का भुरकाव कर सकते हैं. इसके लिए कल्चर और कई तरह के कृषि यंत्र भी उपलब्ध हैं. सरकार का ऐसे प्लांट लगाने का प्रयास है, जिनमें पराली से बायो कंप्रेस्ड गैस और बेहतर गुणवत्ता की Compost बन सके.

हाल ही में गोरखपुर के धुरियापार में एक ऐसे ही प्लांट का उद्घाटन हो चुका है. केंद्र सरकार की मदद से प्रदेश में ऐसे 100 प्लांट लगाने की योजना है. सरकार का दावा है कि ये संयंत्र लगने के बाद पराली से भी किसानों काे फायदा मिलेगा. साथ ही स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा और Farmers Income भी बढ़ेगी. वहीं, दूसरी ओर बड़ी मात्रा में बेहतर किस्म की कंपोस्ट मिलने से Natural Farming को भी बढ़ावा मिलेगा.