रबी सीजन की सभी फसलें लगभग पक चुकी हैं और कई इलाकों में उनकी कटाई में तेज गति से चल रही है. ऐसे में जायद सीजन की फसलों की बुवाई का समय आ गया है. ऐसे में किसानों को दालों की खेती की ओर रुझान बढ़ता दिख रहा है, क्योंकि केंद्र ने सभी दालों की 100 फीसदी खरीद एमएसपी पर करने की घोषणा पहले ही कर दी है. ऐसे में उड़द दाल की खेती किसानों को लाभदायक हो सकती है. किसानों के लिए उड़द की ऐसी 5 किस्में हैं जो रोगों को पनपने नहीं देती हैं और अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी तैयार हो जाती हैं.
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की सलाह के अनुसार जायद सीजन में उड़द दाल की बुवाई फरवरी से मार्च के अंत तक की जाती है. नमी वाले इलाकों में किसान अप्रैल में भी देरी से बुवाई कर सकते हैं. अच्छी पैदावार के लिए बुवाई से पहले अच्छी किस्म का चुनाव बहुत जरूरी है. जबकि, खेत को तैयार करना भी फसल के विकास के लिए जरूरी प्रक्रिया का हिस्सा है.
जायद सीजन में उड़द की बुवाई के लिए खेत की मिट्टी को तैयार करना सबसे बड़ा टास्क होता है. क्योंकि, बीज के साथ ही खेत की तैयारी भी फसल के विकास और उत्पादन क्षमता को तय करती है. उड़द की किसी भी किस्म की खेती के लिये दोमट और मटियार मिट्टी उपयुक्त रहती है. किसान सबसे खेत में पलेवा करके देशी हल अथवा कल्टीवेटर से एक दो जुताई करके खेत को तैयार कर लें. हर जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहे. पावर टिलर या ट्रैक्टर से खेत की तैयारी जल्दी हो जाती है.
उड़द की बुवाई के लिए बीज की मात्रा सही होना जरूरी है. जायद सीजन में उड़द का पौधा कम बढ़ता है. इसलिए 25-30 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर में बुवाई करनी चाहिए. उड़द की कूंड़ी में करनी चाहिए. कूंड़ से कूंड़ की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखनी चाहिये. किसान ध्यान रखें की बीजों की बुवाई और खाद का इस्तेमाल मिट्टी परीक्षण में बताए गए तरीके से करनी चाहिए.
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