देश के कई राज्यों में गेहूं की कटाई शुरू हो चुकी है. गेहूं की कटाई करने के बाद किसान कई बार खेत में ही उसकी पराली जला देते हैं. इस वजह से खेत में अगली फसल की खेती करने पर किसानों को अच्छी उपज नहीं मिलती है. इन्ही वजहों को देखते हुए बिहार सरकार ने किसानों से अपील की है कि किसान अपने खेतों में गेहूं की पराली को न जलाएं. बिहार के कई क्षेत्रों में ये देखा जा रहा है कि किसान अपनी फसलों के अवशेष यानी पराली को खेतों में ही जला दे रहे हैं. ऐसा करने से खेत की मिट्टी और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में बिहार के किसान पढ़ लें ये 5 बड़े नुकसान जो पराली जलाने से हो सकते हैं.
1. खेत में पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है, जिसके कारण मिट्टी में मौजूद जैविक कार्बन जो पहले से ही मिट्टी में कम हैं, कम होता है. साथ ही जल नष्ट हो जाता है. वहीं मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है.
2. गेहूं की पराली को जलाने से मिट्टी के तापमान बढ़ने के कारण मिट्टी में मौजूद सुक्ष्म जीवाणु, केंचुआ आदि मर जाते हैं. इनके मिट्टी में रहने से ही मिट्टी जीवित रहती है. वहीं पराली को जलाने से मिट्टी धीरे-धीरे करके मर जाती है. यानी मिट्टी की उपज शक्ति खत्म हो जाती है.
3. पराली को जलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है, जिसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आती है. साथ ही सारे पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
4. गेहूं की पराली को जलाने से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण वातावरण प्रदूषित हो जाता है और जलवायु प्रदूषण का कारण बनता है.
5. एक टन पराली जलाने से लगभग 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड और 2 किलो सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकल कर वातावरण में फैलता है. इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है.
गेहूं की कटाई के बाद खेत में पराली जलाने वाले किसानों से बिहार सरकार ने अपील की है कि यदि फसल की कटाई हार्वेस्टर से की गई है तो खेत में पराली या फसल की खूंटी को जलाने के बदले स्ट्रॉ रीपर मशीन से पशुओं का चारा बना लें. इसके अलावा सरकार से अपील की गई है कि पराली को खेत में जलाने के बदले किसान उसका वर्मी कंपोस्ट बनाएं, पराली को मिट्टी में मिला दें या फिर पलवार विधि यानी मल्चिंग तकनीक से खेती में इस्तेमाल कर लें. ऐसा करने से किसानों को नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा. साथ ही वातावरण भी शुद्ध रहता है.
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