मध्य प्रदेश के सागर जिले में खरीफ की फसलों की तैयारी जोरों पर है. जिले में हर साल करीब 5 लाख हेक्टेयर में खेती होती है. इसमें सबसे ज्यादा क्षेत्र सोयाबीन (लगभग ढाई लाख हेक्टेयर) और मक्का (करीब 1 लाख हेक्टेयर) को जाता है. लेकिन इस बार जब मॉनसून की चाल बीच में थोड़ी सुस्त हुई तो किसानों की चिंताएं बढ़ गईं. कुछ किसानों ने समय से पहले सोयाबीन की बुवाई कर दी थी, लेकिन पर्याप्त बारिश न होने से उन्हें दोबारा बुवाई करनी पड़ रही है.
जिले के किसानों को कृषि विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि अगर सोयाबीन बोनी है तो 10 जुलाई से पहले ही बो लें. अगर वो बुवाई लेट करते हैं तो फिर यह फसल घाटे का सौदा साबित हो सकती है. लेकिन अगर फिर भी किसान चूक जाते हैं तो मूंग और उड़द जैसी कम अवधि वाली दालों की खेती बेहतर विकल्प साबित हो सकती है. सागर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के अनुसार जिले में इस समय तक सोयाबीन की 60 प्रतिशत से अधिक बुवाई हो चुकी है.
उनका कहना था कि किसानों को पहले ही सलाह दी गई थी कि जब तक खेत में कम से कम 4 इंच बारिश न हो जाए, तब तक बुवाई टालें. अब वह बारिश हो चुकी है, इसलिए किसान बुआई कर सकते हैं लेकिन अब तेजी दिखानी होगी. अगर 10 जुलाई के बाद सोयाबीन बोई गई तो यह फसल देरी से तैयार होगी, जिससे रबी सीजन की फसलों की तैयारी में बाधा आएगी. साथ ही मौसम की अनिश्चितता सोयाबीन की फसल को नुकसान भी पहुंचा सकती है.
जिन किसानों को सोयाबीन बोने में देर हो गई है, उन्हें वैज्ञानिकों ने मूंग और उड़द की बुवाई करने की सलाह दी है. ये कम अवधि में पकने वाली फसलें हैं और अब इनकी उन्नत किस्में बाजार में मौजूद हैं, जो पीले रोग जैसी बीमारियों से भी सुरक्षित हैं. बुवाई से पहले खेत में पोटाश का छिड़काव जरूर करें. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और पैदावार भी बेहतर होगी.
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश को देश की सोयाबीन कैपिटल भी कहा जाता है. यहां की जलवायु और मिट्टी इस तिलहन फसल के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती है. प्रदेश में हर साल 50 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में सोयाबीन की खेती होती है, जो भारत के कुल उत्पादन का लगभग 50 फीसदी हिस्सा है.
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