गन्ने को नुकसान पहुंचा सकती है ये लापरवाही, जानिए कैसे करें कॉटन और गुलाबी मिलीबग से बचाव

गन्ने को नुकसान पहुंचा सकती है ये लापरवाही, जानिए कैसे करें कॉटन और गुलाबी मिलीबग से बचाव

मॉनसून के सीजन में गन्ने की फसल पर कई रोगों का खतरा रहता है. इसमें सबसे अधिक खतरा कॉटन मिलीबग और गुलाबी मिलीबग का होता है. इससे गन्ने की फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि गन्ने की फसल से इन दोनों मिलीबग से कैसे बचा सकते हैं.

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गन्ने को नुकसान पहुंचा सकती है ये लापरवाही, जानिए कैसे करें कॉटन और गुलाबी मिलीबग से बचावगन्ने पर मिलीबग का खतरा

मॉनसून की बारिश देश के ज्यादातर इलाकों में हो रही है. कई फसलों की तरह गन्ने को भी इस बारिश से खूब फायदा मिलता है. लेकिन, साथ ही कई बीमारियों और कीड़ों को भी बारिश पैदा करती है जिससे समय रहते बचाव बेहद जरूरी है. ऐसे ही कीड़ों में प्रमुख गुलाबी मिलीबग (Pink Mealybug) और कॉटन मिलीबग (Cotton Mealybug) गन्ना उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले कीट हैं. इनका वैज्ञानिक नाम Maconellicoccus hirsutus और Phenacoccus solenopsis है. ये गन्ने की फसल को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाते हैं.

आइए जान लेते हैं कि दोनों मिलीबग किस तरीके से गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं-

रस चूसना: दोनों मिलीबग गन्ने के पौधे के कोमल भागों, जैसे पत्तियों, तनों और गांठों से रस चूसते हैं. इससे पौधा कमजोर हो जाता है, और उसका विकास रुक जाता है. रस चूसने से पौधे की प्रकाशसंश्लेषण यानी फ़ोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे गन्ने की वृद्धि और चीनी की मात्रा कम हो जाती है.

हनीड्यू और कालिख मोल्ड: मिलीबग रस चूसने के दौरान एक चिपचिपा पदार्थ (honeydew) निकालते हैं, जिस पर कालिख मोल्ड (sooty mold) नामक फंगस पनपता है. यह पत्तियों को काला कर देता है और फ़ोटोसिंथेसिस को और अधिक प्रभावित करता है. इससे पौधे की गुणवत्ता और उपज दोनों कम हो जाती है.

पौधे की संरचना पर असर: गुलाबी मिलीबग पौधे की गांठों और पत्तियों को सिकोड़ देता है, जिससे पौधा खराब हो जाता है. कॉटन मिलीबग पत्तियों और तनों पर सफेद मोम जैसी परत बनाता है, जो पौधे की सांस लेने में रुकावट पैदा करता है.

उपज में कमी: इन कीटों के प्रकोप से गन्ने की उपज में 20-50% तक की कमी हो सकती है, खास तौर पर तब जबकि रोकथाम समय पर न किया जाए. इससे चीनी की मात्रा और गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है.

कैसे करें इन कीटों पर समय पर नियंत्रण

खेत की नियमित सफाई और खरपतवार नियंत्रण से शुरुआती रोकथाम होती है. कई बार किसान प्रभावित पौधों के हिस्सों को काटकर नष्ट कर देते हैं. वहीं उचित दूरी पर बुवाई और जल निकास की व्यवस्था से भी रोकथाम संभव है. स्वयं-छीलने वाली किस्मों का उपयोग भी बचाव करता है क्योंकि ऐसी वेराइटी कम संक्रमित होती है. बुवाई से पहले बीज को कीट-मुक्त करना भी एक कारगर उपाय है.

कैसे करें जैविक नियंत्रण

इन कीड़ों के प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग, जैसे Cryptolaemus montrouzieri (लेडी बर्ड बीटल) और Aenasius bambawalei काफी प्रभावी होता है. नीम आधारित कीटनाशकों, जैसे नीम तेल (0.5-1%), का छिड़काव भी इन कीटों को मारता है.

रासायनिक कीटनाशकों के जरिए नियंत्रण

कीटनाशकों जैसे Imidacloprid 17.8 SL (0.3-0.5 मिली/लीटर पानी) या Thiamethoxam 25 WG (0.2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करने से ये नष्ट होते हैं. Chlorpyrifos 20 EC (2 मिली/लीटर पानी) का उपयोग भी होता है लेकिन इसमें सावधानी बरतनी जरूरी है. हॉर्टिकल्चरल ऑयल, सफेद तेल (3 चम्मच खाना पकाने का तेल और ½ चम्मच डिटर्जेंट साबुन 4 लीटर पानी में), या साबुन-आधारित घोल (5 चम्मच शुद्ध साबुन या 2 चम्मच डिशवॉशिंग लिक्विड 4 लीटर पानी में) का छिड़काव भी काम आता है. स्पिनोसैड (ऑर्गेनिक) और सिंथेटिक पाइरेथ्रॉइड्स का उपयोग भी बचाव करता है.

निगरानी और जागरुकता बेहद जरूरी

खेत की नियमित जांच और मिलीबग के शुरुआती लक्षण (सफेद मोम जैसी परत, चिपचिपापन) पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से संपर्क और सही समय पर सलाह लेना भी जरूरी है. स्टिकी ट्रैप्स का उपयोग आबादी की निगरानी के लिए सही तरीका है.

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