लेमन ग्रास की खेती भारत में बड़ी मात्रा में की जाती है. इसे नीबू घास, चाइना ग्रास, भारतीय नीबू घास, मालाबार घास और कोचीन घास के नाम से भी जाना जाता है. भारत में इसकी खेती व्यापारिक तौर से की जाती है. इसकी पत्तियों से नीबू जैसी खुशबू आती है. जिस कारण इसकी पत्तियों का इस्तेमाल चाय बनाने में किया जाता है. इसके अलावा लेमनग्रास कुछ बैक्टीरिया के विकास को रोकने में भी बेहद कारगर साबित हुआ है. लेकिन इसकी खेती तब फायदेमंद है जब पौधे रोगमुक्त हों. इसलिए कृषि वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार चौधरी और एसएस सिसोदिया ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है.
लेमन ग्रास के पौधों में कम ही रोग देखने को मिलते हैं. हालांकि, कुछ ऐसे रोग और कीट होते हैं, जिनके लगने पर पौधा विकास करना बंद कर देता है. इसके कारण उपज में कमी देखने को मिलती है. इसके लिए सफेद मक्खी बेहद खतरनाक है. इन रोगों के समय रहते रोकथाम करने से पौधे को बचाया जा सकता है. हम प्रमुख रोगों और उसके निदान की दवा बता रहे हैं.
इसका प्रकोप पौधों पर वैसे तो किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है. पौधों के अंकुरण के समय इसका प्रकोप अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधा मुरझाकर पीला पड़ जाता है. उसके कुछ दिनों बाद पौधा पूर्ण रूप से सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में क्लोरोपाइरीफॉस का छिड़काव करना चाहिए.
लेमन ग्रास पर चिलोत्रेए का प्रकोप कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट का रंग सफेद होता है. इसके शरीर पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इसके लगने पर पौधे की मुख्य पत्तियां सबसे पहले सूखती हैं. उसके बाद सम्पूर्ण पौधा सूखने लगता है. इसकी रोकथाम के लिए नीम के काढ़े को पौधों पर छिड़कना चाहिए.
ये भी पढ़ें: Onion Export Ban: जारी रहेगा प्याज एक्सपोर्ट बैन, लोकसभा चुनाव के बीच केंद्र सरकार ने किसानों को दिया बड़ा झटका
पौधों पर सफेद मक्खी के प्रकोप की वजह से इसकी पैदावार प्रभावित होती है. इसके कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं, जो पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं. इनके रस चूसने की वजह से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और कुछ दिनों बाद पत्तियां सूखने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए.
लेमन ग्रास का पौधा खुशबूदार होता है. इसकी पत्तियों से नीबू जैसी खुशबू आती है, जो चूहों के अधिक आकर्षण का कारण बनती है. इससे चूहे खेत में बिल बनाकर रहते हैं और पौधों की पत्तियों को काटकर उन्हें खाते हैं. इससे पैदावार को नुकसान पहुंचता है. इनकी रोकथाम के लिए जिंक फॉस्फाइड या बेरियम क्लोराइड का प्रयोग खेत में करना चाहिए.
लेमन ग्रास के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 5-6 वर्ष तक पैदावार दे सकते हैं. पौधे खेत में लगाने के लगभग 60-90 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. पौधों की अच्छी देखभाल कर वर्ष में चार से ज्यादा कटाई आसानी से ले सकते हैं. लेमन ग्रास के पौधों की प्रत्येक कटाई के बाद इनकी पैदावार बढ़ती जाती है. पौधों की कटाई के बाद इसके पौधों से अधिक मात्रा में नए प्ररोह निकलते हैं. इससे उपज में वृद्धि होती है. इसके पौधों की कटाई करते समय ध्यान रखें कि पौधों की कटाई जमीन की सतह से 10-12 सेंमी ऊपर से करनी चाहिए. ऐसा करने से पौधे में नए प्ररोह अच्छे से निकलते हैं और पौधा अच्छे से विकास करता है.
लेमन ग्रास की कई प्रजातियां विकसित कर ली गई हैं. इन प्रजातियों में कई तरह की किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को इनकी पत्तियों में पाई जाने वाली तेल की मात्रा और उनके उत्पादन के आधार पर तैयार किया गया है. सिंबोपोगान फ्लेक्सुओसस
इस प्रजाति की किस्मों के पौधों की पत्तियां सीधी होती हैं. इनके अंदर की ट्यूब और पत्तियों का मुख्य शिरा बादामी रंग का होता है. इस प्रजाति में कावेरी, प्रगति, कृष्णा और नीमा जैसी कई किस्में शामिल हैं, जिनका उत्पादन सामान्य से अधिक होता है. इन किस्मों को राजस्थान और मध्य प्रदेश में ज्यादा उगाया जाता है.
इस प्रजाति की किस्मों की पैदावार ज्यादा पाई जाती है और इसके पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले तेल की मात्रा भी अन्य किस्मों की तुलना में ज्यादा पाई जाती है. इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं. इन पत्तियों में पाया जाने वाला ट्यूब हल्के रंग का होता है. चिरहरित और प्रमाण इस प्रजाति की दो मुख्य किस्में हैं.
लेमन ग्रास की यह एक संकर प्रजाति है. इस प्रजाति को सिंबोपोगान खासियेनस और पेन्डूलस के संकरण से तैयार किया गया है. इस प्रजाति की मुख्य किस्म सीकेपी 25 है. इस किस्म की पत्तियां पतली, छोटी और कम चौड़ी होती हैं. इनका रंग सम्पूर्ण रूप से हरा पाया जाता है. इन सभी प्रजातियों के अलावा ओडी 19 ओडाक्कली किस्म है, जिसे एर्नाकुलम केरल द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म का उत्पादन अधिक पाया जाता है. इसके पौधे लाल रंग के होते हैं. इसकी पत्तियों में पाए जाने वाले तेल का प्रति हैक्टर उत्पादन 80 से 220 कि.ग्रा. तक होता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today