पिछले दिनों मध्य प्रदेश के श्योपुर में किसानों ने कांटारहित कैक्टस की खेती के बारे में बताया गया है. कृषि विशेषज्ञों ने यहां पर किसानों को बताया कि कैसे बंजर भूमि या कम पानी वाली जगह में भी हरे चारे और आय का नया विकल्प यह सूखा कैक्टस हो सकता है. किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की ग्रीन-एजी परियोजना के अंतर्गत श्योपुर जिले के किसानों का एक अध्ययन दल मंगलवार को सीहोर जिले के आईसीएआरडीए केंद्र, अमलाहा पहुंचा. इस दौरे का मकसद किसानों को कांटारहित कैक्टस की खेती और उसके विविध उपयोगों के बारे में व्यावहारिक जानकारी देना था.
किसानों के लिए अब सूखी और बंजर भूमि भी लाभ का स्रोत बन सकती है.विशेषज्ञों का मानना है कि सूखे क्षेत्रों में कैक्टस की खेती न केवल किसानों को पर्याप्त चारा उपलब्ध कराती है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ भी बनाती है. पारंपरिक फसलों की तुलना में कैक्टस की खेती में कम पानी, कम देखभाल और लंबी अवधि तक टिकाऊ उपज मिलती है. इसके अलावा, यह पौधा सूखे और गर्म मौसम में भी जीवित रहता है, जिससे खेत की जमीन बंजर नहीं रहती और पशुधन के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध होता है.
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां बार-बार सूखा पड़ता है, वहाँ के किसान कैक्टस की खेती को अपनाकर अपने खर्चों में कमी और आय में वृद्धि कर सकते हैं. कैक्टस की खेती से किसानों को अच्छी आय भी मिलती है क्योंकि इसका फ्रेश और सूखा चारा दोनों बाजार में आसानी से बिकता है. इसके गुटके, पत्ते और पत्तेदार भाग पशुओं के लिए पौष्टिक होते हैं और इन्हें डेयरी फार्म, मवेशी पालन और बकरी पालन में सीधे उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, कैक्टस का जूस, जैल और अन्य उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं, जिससे किसानों की आय का स्रोत और बढ़ जाता है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि किसानों को बीज, अंकुरण तकनीक और पोषण प्रबंधन पर प्रशिक्षण लिया जाना चाहिए. इससे छोटे और सीमांत किसान भी कम निवेश में लाभकारी कैक्टस फार्मिंग शुरू कर सकते हैं. समय की बचत और पर्यावरण के अनुकूल खेती के विकल्प के रूप में कैक्टस न केवल सूखे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है बल्कि यह किसानों को सस्टेनेबल और लाभकारी व्यवसाय के रूप में भी अवसर प्रदान करता है.
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