गेंदा भारतीय फूलों में अत्यंत लोकप्रिय है. गेंदे के फूलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसे लोग घरों के गमले या बगीचे में भी लगाना पसंद करते हैं. वहीं, ये धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा कई प्रोडक्ट बनाने और सजावट में भी इस्तेमाल होता है. खासकर त्योहारों और शादियों के मौसम में इसकी मांग तेजी से बढ़ जाती है, किसान इसकी खेती करके बंपर कमाई भी करते हैं. लेकिन इन दिनों मौसम में हुए बदलाव से गेंदे की फसल में रोग का खतरा बढ़ने लगा है, जिससे पत्तियां पीली होकर सूखने लगे हैं. जिससे फूलो का रंग और ताजगी दोनों प्रभावित हो रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं रोग के क्या हैं लक्षण और बचाव के उपाय.
एक्सपर्ट के अनुसार, इस समस्या की वजह अल्टरनेरिया रोग है. यह एक फफूंद रोग है, जो सबसे पहले पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देता है. धीरे-धीरे ये धब्बे बढ़कर पूरी पत्तियों को मुरझा देते हैं और पौधे की ग्रोथ रुकने लगती है. यह रोग खासतौर पर नमी वाले मौसम में तेजी से फैलता है. खेतों में लगातार नमी बने रहने या जलभराव की स्थिति होने पर रोग की चपेट में पूरी फसल बर्बाद हो सकती है. ऐसे में समय पर उपचार नहीं करने पर किसान को 30 से 40 प्रतिशत तक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इस रोग से बचाव के लिए किसानों को मैंकोजेब दवा का छिड़काव करना चाहिए. 200 ग्राम मेन्कोजेब को 200 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ खेत में छिड़काव किया जाए तो इस रोग से छुटकारा मिल सकता है. यह उपाय रोग को शुरुआती अवस्था में ही रोक सकता है और पत्तियों की हरियाली बनाए रखता है. ध्यान रखें कि ये छिड़काव हमेशा साफ मौसम में करना चाहिए. इस दौरान यह ध्यान दें कि दवा का घोल पौधों की पत्तियों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ समान रूप से लगे. अगर मौसम बरसात का हो तो छिड़काव से बचें और धूप निकलते ही दोबारा छिड़काव करें.
इसके अलावा किसानों को नियमित रूप से फसल की निगरानी करती रहनी चाहिए. पत्तियों पर धब्बे या सूखने के लक्षण दिखते ही तुरंत उपाय करें. देर होने पर यह रोग दूसरे पौधों तक भी फैल जाता है और फिर इसे रोकना मुश्किल हो जाता है. एक्सपर्ट की मानें तो खेत में नमी को नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है. इसके अलावा पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखने से हवा का संचार ठीक रहता है, जिससे रोग फैलने की संभावना कम हो जाती है. वहीं, समय-समय पर खरपतवार निकालना भी जरूरी होता है.
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