परिजात यानी हरसिंगार या नाइट जैस्मिन न केवल अपनी सुंदरता और खुशबू के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि आयुर्वेद में इसे कई रोगों के उपचार में भी उपयोगी माना गया है. यह एक ऐसा पौधा है जो धार्मिक, औषधीय और सुंदरता हर दृष्टियों से महत्वपूर्ण है. इसकी पहचान सफेद फूलों से होती है जिनका केंद्र नारंगी होता है और जिनकी खुशबू रातभर वातावरण को महका देती है. परिजात सिर्फ एक सुंदर और सुगंधित फूल ही नहीं है बल्कि यह प्रकृति का एक ऐसा अद्भुत तोहफा है जो शरीर, मन और आत्मा तीनों को स्वस्थ रखता है. इसकी औषधीय विशेषताएं इसे हर घर के बगीचे में स्थान देने योग्य बनाती हैं. बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, 'जहां परिजात खिला, वहां रोग और क्लेश खुद ब खुद दूर हो गए.'
हिंदू धर्म में परिजात का विशेष स्थान है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान परिजात वृक्ष का उद्भव हुआ था. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण इस वृक्ष को स्वर्ग से द्वारका ले आए थे. इसलिए इसे 'स्वर्ग वृक्ष' भी कहा जाता है. कई मंदिरों के प्रांगण में परिजात का पौधा लगाया जाता है क्योंकि इसे पवित्र और शुभ माना जाता है. परिजात का पेड़ न केवल औषधीय दृष्टि से लाभकारी है बल्कि यह वातावरण को भी शुद्ध करता है. इसकी खुशबू से मन शांत होता है और मानसिक तनाव में कमी आती है. यही कारण है कि इसे घरों और मंदिरों के आंगन में लगाना शुभ माना जाता है.
आयुर्वेदिक डॉक्टर अक्सर परिजात की पत्तियों का काढ़ा सुबह खाली पेट या रात को सोने से पहले लेने की सलाह देते हैं. दो से तीन पत्ते पानी में उबालकर उसका सेवन किया जा सकता है. इसके अलावा फूलों का चूर्ण भी बनाया जाता है जो कई दवाओं में प्रयोग होता है. परिजात प्राकृतिक औषधि है, लेकिन किसी भी हर्बल उपचार को शुरू करने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लेना जरूरी है. अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट संबंधी परेशानियां हो सकती हैं.
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