क्या है एफ्लाटॉक्सिन, मक्के में कैसे हो सकता है इस 'जहर' का कंट्रोल, अपनाईए ये ट‍िप्स

क्या है एफ्लाटॉक्सिन, मक्के में कैसे हो सकता है इस 'जहर' का कंट्रोल, अपनाईए ये ट‍िप्स

इंड‍ियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज र‍िसर्च के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट का कहना है क‍ि एफ्लाटॉक्सिन फंगल अवशेष है, जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता है. केवल टेस्ट द्वारा पहचाना जा सकता है. एफ्लाटॉक्सिन को हटाया नहीं जा सकता. उदाहरण के लिए, अगर मवेशियों के चारे में 100 पीपीबी है, तो दूध में 25 पीपीबी होगा.

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क्या है एफ्लाटॉक्सिन, मक्के में कैसे हो सकता है इस 'जहर' का कंट्रोल, अपनाईए ये ट‍िप्सकैसे एफ्लाटॉक्सिन 'जहर' से मुक्त होगा मक्का?

क्या आपने एफ्लाटॉक्सिन का नाम सुना है? दरअसल, यह मक्के, अनाज और मेवों और मूंगफली में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला विष है, जो फफूंदों द्वारा बनता होता है. अच्छे दाम एवं औद्योगिक उपयोग के लिए मक्के में एफ्लाटॉक्सिन की मात्रा नगण्य या 20 पीपीबी (Parts Per Billion) से कम होना चाहिए, भंडारण के दौरान इसकी मात्रा बढ़ जाती है. मक्का में एफ्लाटॉक्सिन संदूषण (Contamination) को नियंत्रित करने के लिए खेत में सुखाना और यांत्रिक रूप से सुखाना सबसे प्रभावी पाया गया है. एफ्लाटॉक्सिन के स्तर का अनुमान लगाने के लिए एक रैपिड बीजीवाईएफ (BGYF) परीक्षण विकसित किया गया है और इसका उपयोग कई मक्का खरीदारों द्वारा किया जा रहा है. 

यह व‍िष एस्परगिलस फ्लेवस नामक फफूंद द्वारा बनता है. इस कवक को खेत में या भंडारण में मकई के दानों पर उगने वाले भूरे-हरे या पीले-हरे रंग के फफूंद से पहचाना जा सकता है. फफूंद के विकास के दौरान सूखे, गर्मी या कीटों के कारण पौधों पर तनाव आमतौर पर एफ्लाटॉक्सिन के स्तर को बढ़ाता है. एफ्लाटॉक्सिन संदूषण ज्यादा होने से मक्का का दाम कम हो जाएगा और बिक्री में बाधा आएगी. इससे किसानों को नुकसान होता है.

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क्यों जरूरी है एफ्लाटॉक्सिन मुक्त मक्का?

इंड‍ियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज र‍िसर्च के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट का कहना है क‍ि एफ्लाटॉक्सिन फंगल अवशेष है, जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता है. केवल टेस्ट द्वारा पहचाना जा सकता है. एफ्लाटॉक्सिन को हटाया नहीं जा सकता. उदाहरण के लिए, अगर मवेशियों के चारे में 100 पीपीबी है, तो दूध में 25 पीपीबी होगा. इसल‍िए यह मक्का में 20 पीपीबी से कम होना चाहिए. एफ्लाटॉक्सिन विषाक्तता के कारण मतली, उल्टी, पेट में दर्द, ऐंठन और लीवर में द‍िक्कत हो सकती है. 

एफ्लाटॉक्सिन का कारण

  • फसल पकने के बाद के चरणों के दौरान हाई आर्द्रता और अनियमित बार‍िश. 
  • बहुत अध‍िक पानी, कीटों की क्षति (कोब बोरर और मक्का वीविल) और पोषक तत्वों की कमी.
  • देर से रोपाई, गलत रोपाई, खराब सिंचाई और गलत कीट नियंत्रण पद्धतियां. 
  • असामयिक कटाई, कटाई के दौरान अनाज को यांत्रिक क्षति.

एफ्लाटॉक्सिन न‍ियंत्रण का तरीका 

  • बुवाई के वक्त स्वस्थ बीज होना चाह‍िए. 
  • भुट्टे को उचित धूप में सुखाएं. उसके बाद छिलका निकालें. छिलका निकालने के लिए जरूरी नमी की मात्रा हास‍िल करने के लिए आमतौर पर लगभग 10 दिन और उचित धूप में सुखाने की आवश्यकता होती है.
  • पूरे पौधों का ढेर लगाने से बचें. सुखाने के दौरान भुट्टों को नियमित रूप से घुमाना जरूरी है.
  • पर्याप्त सिंचाई एवं कीटनाशकों का उचित प्रयोग. 
  • भुट्टों और मक्के को सूखे तिरपाल पर सुखाएं, सीधे मिट्टी या सड़क पर नहीं. 
  • कटाई से पहले उपकरण साफ करें. 
  • मक्का को बारिश या ओस के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए. 
  • मक्का धूल, टूटे हुए दाने और मिट्टी से मुक्त होना चाहिए. 
  • थ्रेसिंग से पहले फफूंदयुक्त भुट्‌टे को हटा दें. थ्रेसिंग के समय 15-18% या उससे कम नमी हो.
  • मक्के को साफ थैलों में रखें. भंडारण से पहले ध्यान रखें क‍ि नमी 13% से कम होनी चाहिए. 
  • भंडारण क्षेत्र सूखा होना चाहिए और उसमें उचित फर्श और पर्याप्त जगह होनी चाहिए. 
  • भंडारण वाली जगह पर पर्याप्त वेंटिलेशन होना चाह‍िए. 
  • अनाज को अच्छी तरह से साफ करके रखें. 
  • एफ्लाटॉक्सिन-गैर-संवेदनशील फसलों के साथ फसल चक्र अपनाएं, इसके लिए मूंगफली आदि जैसी फसलों से बचें. 

क‍ितना है उत्पादन 

भारत में धान और गेहूं के बाद मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है. दुनिया के करीब 175 मुल्कों में मक्का की खेती होती है. अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है. कुल उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी लगभग 35 फीसदी है, जबक‍ि भारत की भागीदारी महज 2 फीसदी है. हालांक‍ि कम उत्पादन के बावजूद भारत मक्का का एक्सपोर्टर है. एक्सपोर्ट के ल‍िए क‍िसानों को एफ्लाटॉक्सिन फ्री मक्का की जरूरत है. 

भारत में यह मुख्य तौर पर खरीफ फसल है. साल 2023-24 के लिए 376.65 लाख टन मक्का उत्पादन का अनुमान है. दुनिया में सबसे ज्यादा लगभग 60 प्रत‍िशत मक्का चारे के तौर पर इस्तेमाल होता है. औद्योग‍िक तौर पर 22 प्रत‍िशत और स‍िर्फ 17 फीसदी खाद्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. भारत में इथेनॉल उत्पादन के ल‍िए इसकी खेती को बढ़ाने का प्रयास जारी है.   

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