किसान रबी सीजन में दलहनी फसलों की बुवाई कर चुके हैं. वहीं, कई राज्यों में बुवाई के एक महीने बीत चुके हैं. ऐसे में इस महीने दलहनी फसलों में कई प्रकार के रोगों के लगने का खतरा बना हुआ है. इसे देखते हुए किसान रोगों की पहचान और उसका प्रबंधन करके फसलों को नुकसान होने से बचा सकते हैं. बता दें कि दलहनी फसलों में जड़ और कॉलर रोट रोग और हरदा रोग का खतरा अधिक रहता है. इन्हीं समस्याओं से निजात के लिए बिहार कृषि विभाग ने दलहनी फसलों में लगने वाले इन रोगों की पहचान और उनके प्रबंधन का तरीका बताया है. इस तरीके को अपनाकर किसान अपनी फसलों को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.
जड़ और कॉलर रोट रोग चना, मटर और मसूर सहित अन्य फसलों के लिए एक विनाशकारी रोग माना जाता है. इस रोग के लक्षण पौधों के निकलने से लेकर 50 दिनों के अंतराल तक अत्यधिक दिखाई देते हैं. यह रोग बीज और मिट्टी जनित फफूंद से पनपने वाला रोग है. यह रोग उपयुक्त वातावरण पाकर पौधों के जड़ वाले भाग और इसके ऊपर के वाले भाग में लगता है. इस रोग को लगने पर सबसे पहले जमीन के पास पौधों का तना सड़ने लगता है. इसकी पहचान के लिए पौधों को बीच से फाड़ने पर नीचे के भीतर ये काले नजर आते हैं.
जड़ और कॉलर रोट रोग से बचाव के लिए किसानों को ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज और कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर बीज की बुवाई करें. रोग की शुरुआती अवस्था में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधे के जड़ में पटवन करें. या कैप्टान 70 प्रतिशत हेक्साकोनाजोल 05 प्रतिशत डब्लू.पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से जड़ के पास छिड़काव करें.
दलहनी फसलों में हरदा रोग के संक्रमण का खतरा काफी रहता है. इस संक्रमण में पौधों के पत्तों, तनों, टहनियों और फलियों पर काले रंग के फफोले दिखाई देने लगते हैं. इस कारण पौधे धीरे-धीरे सूखने लगते हैं और उत्पादन में भारी गिरावट आती है.
हरदा रोग से फसलों के बचाव के लिए किसानों कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा को एक किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने की सलाह दी जाती है. वहीं, फसल में संक्रमण होने पर किसान कार्बेंडाजिम और मैंकोजेब की एक साथ 1.5 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव कर सकते हैं.
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