खेती-किसानी के क्षेत्र में हाल के कुछ वर्षों में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. किसान नई-नई नकदी फसलों की खेती की तरफ तेजी से रुख कर रहे हैं. इससे उन्हें भरपूर फायदा भी मिल रहा है और उनकी आमदनी भी बढ़ रही है. इस दौरान मोती की खेती भी किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हुई है जिससे कम लागत में बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है. बता दें कि मोती से कई तरह के महंगे आभूषण बनाए जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह करोड़ों में बिकते हैं. ऐसे में अगर आप भी तालाब में मोतीपालन करते हैं तो इन 8 बातों का जरूर ध्यान रखें, वरना आपकी कमाई घट सकती हैं. आइए जानते हैं क्या हैं वो महत्वपूर्ण बात.
1. मोतीपालन करते समय सीप को तनाव मुक्त रखना चाहिए.
2. सीप को हमेशा पानी में रखना चाहिए.
3. यदि ऑपरेशन के सभी उपकरण स्टरलाइज नहीं किए गए, तो संक्रमण फैलने की आशंका रहती है.
4. सीप के दोनों खोल को एक से.मी से अधिक नहीं खोलना चाहिए. इससे मांसपेशियों में तनाव होता है.
5. पानी की गुणवत्ता की समय-समय पर जांच की जानी चाहिए, ताकि सीपियों और सूक्ष्म पौधों का मिलन होता रहे.
6. सीप को आवश्यकता के अनुसार जगह मिलनी चाहिए, एक ही स्थान पर बहुत सीप नहीं होने चाहिए.
7. सीप के लार्वा, मछली के गलफड़ों से जुड़ते और बढ़ते हैं, इसलिए मछली के साथ सीप का पालन करना चाहिए.
8. नियमित अंतराल पर तालाब में चूना डालें, यह सीप की वृद्धि में मदद करता है.
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मोती की खेती के लिए सबसे पहले अच्छे सीप की जरूरत होती है. इसकी खेती तालाब, टैंक में की जा सकती है. सीप लाने के एक दो दिन बाद उसकी सर्जरी की जाती है. इसमें सीप के कवच को 2 से 3 एमएम तक खोला जाता है और उसमें न्यूक्लियस डाल दिया जाता है. उसके बाद सीप को एक सप्ताह के लिए टैंक में एंटीबॉडी के लिए रखा जाता है. 2 से 3 सीप को एक नायलॉन के बैग में रखकर, तालाब में बांस या किसी पाइप के सहारे छोड़ दिया जाता है. सीप से मोती तैयार होने में 15 से 20 महीने का समय लगता है. और एक बेहतर मोती तैयार होने में दो से ढाई साल भी लग जाता है. इसके बाद कवच को तोड़कर मोती निकाल लिया जाता है.
बात करें मोती पालन के मौसम की तो सबसे अच्छा मौसम पानी के तापमान पर निर्भर करता है. जब पानी का तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, तो सीप में मेन्टल कोशिकाओं के जीवित रहने की दर में बढ़ोतरी होती है. इससे जल्दी से मोती की थैली का निर्माण होता है.
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