Adulteration in Saffron: लाखों की कीमत वाली केसर में भी खूब होती है मिलावट, ऐसे कर सकते हैं पहचान

Adulteration in Saffron: लाखों की कीमत वाली केसर में भी खूब होती है मिलावट, ऐसे कर सकते हैं पहचान

Adulteration in Kashmiri Saffron इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के सीनियर साइंटिस्ट का कहना है कि महंगी केसर में मिलाए जा रहे सै के उस खास फूल की पहचान करने के लिए कुछ टिप्सा हैं. अगर किसी ने भी केसर का असली फूल देखा है तो वो आसानी से मिलावट की पहचान कर लेगा.  

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Adulteration in Saffron: लाखों की कीमत वाली केसर में भी खूब होती है मिलावट, ऐसे कर सकते हैं पहचानप्रतीकात्मक फोटो

Adulteration in Kashmiri Saffron केसर मसालों में शुमार होती है. लेकिन दुनिया का कोई ऐसा मसाला नहीं है जो केसर जितना महंगा हो. भारत में केसर का उत्पादन कश्मीर में होता है. अगर इसकी कीमत की बात करें तो ये डेढ़ से तीन लाख रुपये किलो तक बिकती है. क्योंकि कश्मीर की केसर क्वालिटी के मामले में उम्दा मानी जाती है तो इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल दवाईयां बनाने में होता है. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि दूसरे मसालों की तरह से केसर में भी मिलावट होने लगी है. हालांकि एक आम इंसान के लिए मिलावट के इस खेल को पकड़ना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन साइंटिस्ट के बताए कुछ टिप्स पर गौर किया जाए तो इस मिलावट को भी पकड़ा जा सकता है. 

एक्सपर्ट के मुताबिक केसर में उसी की तरह से मिलते-जुलते एक फूल की मिलावट की जाती है. खासतौर से मैदानी इलाकों में कुछ लोग किसानों संग धोखाधड़ी कर उन्हें सै फ्लावर का पौधा केसर का बताकर बेच रहे हैं. कहीं-कहीं पर लोग सै फ्लावर की खेती कर रहे हैं और उसके बारे में प्रचार करते हैं कि ये केसर के पौधे हैं. जबकि केसर की खेती मैदानी इलाकों में खुले में तो हरगिज नहीं हो सकती है. 

ये है केसर और सै फ्लावर में फर्क 

आईएचबीटी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. राकेश कुमार का कहना है कि केसर के पौधे के पत्ते चीड़ के पेड़ पर लगने वाले पत्तें के जैसे दिखते हैं. इसके साथ ही केसर का पौधा ज्यादा से ज्यादा से एक फीट की हाइट तक ही जाता है. वहीं अगर केसर में मिलाए जा रहे सै फ्लावर के पौधे की बात करें तो इसकी लम्बााई ढाई फीट तक होती है. सै फ्लावर का पौधा मैदानी इलाकों में भी आसानी से उग जाता है. जबकि केसर का पौधा सिर्फ ठंडे क्लाइमेट में ही होता है. जबकि केसर मैदानी इलाकों में सिर्फ पॉली हाउस में कंट्रोल कंडीशन के साथ ही बड़ा होगा. जैसे की कुछ लोग मैदानी इलाकों में कोशिश करते रहते हैं. 

10 से 20 हजार रुपये किलो बिकता है सै फ्लावर 

डॉ. राकेश कुमार का कहना है कि सै फ्लावर के पौधे में जब फूल आते हैं तो उसके अंदर से भी केसर के तरह का धागे (स्टेन) जैसे ही तीन धागे निकलते हैं. लेकिन सै फ्लावर से निकले धागे में न तो केसर जैसे गुण होते हैं और ना ही उसके रेट केसर के आसपास के होते हैं. बाजार में केसर 1.5 से तीन लाख रुपये किलो तक आसानी से मिल जाती है. जबकि सै फ्लावर से निकले स्टेन बाजार में 10 से 20 हजार रुपये किलो तक ही बिकते हैं.

ये भी है केसर और सै फ्लावर की पहचान का तरीका  

डॉ. राकेश कुमार बताते हैं कि अगर आप बड़ी मात्रा में केसर खरीद रहे हैं तो उसे चेक करने का एक तरीका ये भी है कि उसे लैब में टेस्ट करा लिया जाए. क्योंकि केसर में क्रोसिन, पीक्रोसिन और सैफरानाल नाम के तत्व होते हैं. इन तीनों तत्वों से ही केसर में स्वाद और रंग आता है. जबकि सै फ्लावर में ये तीनों ही तत्व नहीं होते हैं. इसके अलावा केसर खरीदते वक्त उसे पानी में भिगोकर भी चेक किया जा सकता है. केसर अगर असली है तो पानी और दूध में डालते ही वो हल्का पीले रंग का हो जाएगा. जबकि सै फ्लावर से ऐसा नहीं होता है. सै फ्लावर का इस्तेमाल पेटिंग के लिए ऑयल पेंट में किया जाता है.  

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