आम एक महत्वपूर्ण फल है. यह फलों का राजा है. उत्तर प्रदेश में आम का उत्पादन देश में सबसे अधिक लगभग 24 प्रतिशत है. भारत में आम की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है लेकिन पसंद के मामले में दशहरी किस्म पहले स्थान पर रहती है. दशहरी फल मध्यम आकार का, गूदा रेशेदार तथा अच्छी गुणवत्ता वाला होता है. इसके अलावा दशहरी किस्म, उत्तर भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में कमर्शियल उत्पादकों की भी पसंद है. लेकिन इसमें कई तरह के रोग लगते हैं, उनसे बचाव करना बहुत जरूरी है. वरना किसान को फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है. जेली बीज रोग इनमे से एक है.
जेली बीज रोग में आम की गुठली के आसपास मध्यभित्ति का गूदा अत्यधिक नरम तथा प्रभावित भाग स्वादहीन हो जाता है. बाद की अवस्था में मिठास भी काफी कम पड़ जाती है. यह विकार गुठली और फल के गूदे के बीच अंतरापृष्ठ पर होता है, जिसमें प्रभावित फल के बीज के चारों ओर जेली जैसा द्रव्यमान दिखने के अलावा कोई बाहरी लक्षण नहीं दिखाई देते हैं. इसलिए, जेली के बीज से प्रभावित फलों को केवल तभी पहचाना जा सकता है जब उन्हें काटा जाए. जेली बीज का पता लगाने के लिए फल को बिना काटे, पहचानने के तरीकों की आवश्यकता है.
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जेली बीज रोग का सर्वाधिक प्रकोप जून के दूसरे सप्ताह या उसके बाद काटे गए फलों में देखा गया है. इसके अलावा, कृत्रिम रूप से पके फलों की तुलना में पेड़ से पके फलों में यह समस्या अधिक पाई जाती है. वैज्ञानिक समूह ने आम्रपाली प्रजाति में जेली बीज का मुख्य कारक, समय से पहले बीज का अंकुरण होना बताया है. दैहिक तंत्र में यह देखा गया है कि बीज में बहुत लंबी फैटी एसिड शृंखला के संश्लेषण के कम होने से साइटोकाइनिन का उत्पादन बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप, जेली बीज गूदे में पेक्टिनोलिटिक एंजाइम की गतिविधियों में अत्यधिक वृद्धि तथा पेक्टिन का तेजी से क्षरण होने के कारण गूदा अत्यधिक नरम हो जाता है, जिससे जेली का निर्माण होता है.
यह भी अनुमान है कि फलों में जीर्णता के दौरान, घुलनशील कैल्शियम कम हो जाता है और फल कोशिका भित्ति खराब हो जाती है. इसके परिणामस्वरूप फल का दैहिक विकार उत्पन्न होता है और फल सड़ जाता है. यह विदित है कि कैल्शियम की कमी से पेक्टिक मैट्रिक्स अस्थिर हो जाता है जिससे कोशिका भित्ति शिथिल हो जाती है और कोशिका शक्ति कम हो जाती है. कैल्शियम मुख्य रूप से जड़ प्रणाली से अवशोषित होता है, लेकिन, कैल्शियम का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही वास्तविक फल तक पहुंच पाता है. कैल्शियम की कम फ्लोएम गतिशीलता भी फलों में कैल्शियम की कमी का कारण बन सकती है.
कृषि वैज्ञानिक शरद कुमार द्विवेदी और विशम्भर दयाल ने कहा है कि आम में इस नई ज्वलंत समस्या को कम करने के लिए शोधकर्ताओं द्वारा विभिन्न रासायनिक उपचार प्रस्तावित किए गए हैं. फलों के विकास के तीन चरणों में कैल्शियम क्लोराइड (2.0 प्रतिशत) का प्रयोग जेली बीज की समस्या को कम करने में अधिक प्रभावी था.
जेली बीज रोग को ठीक करने के लिए फॉर्मूलेशन (सोडियम क्लोराइड, पोटेशियम क्लोराइड, बोरेक्स, कॉपर सल्फेट, जिंक सल्फेट, आयरन सल्फेट, मैगनीज सल्फेट, तथा ई. डी. टी. ए.) का उपयोग किया जा सकता है. पेड़ के चारों ओर की मिट्टी को ढकने के लिए काली पॉलीथिन मल्च (100 माइक्रॉन) का और मई के दूसरे सप्ताह में 2% डाइहाइड्रेट कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग बहुत प्रभावी पाया गया है.
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