
बासमती धान की खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले 10 खतरनाक कीटनाशकों के बैन होने के बाद अब सवाल यह है कि अगर कोई रोग लगेगा तो किसान क्या करेंगे. इसका क्या तौर-तरीका होगा. धान की उपज और गुणवत्ता में संतुलन कैसे बैठेगा. क्योंकि यह किसानों की आय, स्वास्थ्य, देश की साख और बिजनेस जुड़ा मसला है. ज्यादा कीटनाशक होगा तो एक्सपोर्ट में दिक्कत होगी और कीटनाशकों के न डालने से रोग लग जाएगा तो उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा और किसानों की आय प्रभावित होगी. बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) ने इस समस्या का समाधान निकाल दिया है. संस्थान ने किसानों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर (Helpline Number) जारी किया है. जिस पर फसल पर लगने वाली बीमारियों और कीटों की फोटो खींचकर भेज दें. एपिडा के अधीन आने वाले बीईडीएफ के वैज्ञानिक फोटो और वीडियो देखकर रोगों और कीटों का निदान बता देंगे.
जरूरी होगा तो कोई दवा बताएंगे और नहीं जरूरी होगा तो किसी देसी टेक्निक की जानकारी देंगे. इस हेल्पलाइन का नंबर 8630641798 है. यह व्हाट्सएप हेल्पलाइन नंबर है. जवाब सुबह 9 से शाम को 5 तक भेजा जाएगा. अगर बहुत जरूरी हो तो ऑफिस समय में फोन भी कर सकते हैं. बता दें कि बासमती उत्पादक पंजाब में 1 अगस्त से 60 दिन के लिए 10 कीटनाशकों को बैन किया गया है. इनमें थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस, इमिडाक्लोप्रिड, कार्बेन्डाजिम, ट्राइसाइक्लाजोल, एसेफेट, बुप्रोफेजिन, क्लोरपाइरीफोस, हेक्साकोनोज़ोल और प्रोपिकोनाज़ोल शामिल हैं.
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बासमती धान की खेती करने वाले किसानों को चार प्रमुख रोगों और कीटों का सामना करना पड़ता है. जिसकी वजह से वो इसमें कीटनाशक डालते हैं. कुछ कीटनाशक इसकी खेती के लिए खतरनाक जाने जाते हैं, जिसके इस्तेमाल की वजह से चावल में उसका अवशेष ज्यादा हो जाता है और वो ऐसा बासमती चावल (Basmati Rice) एक्सपोर्ट में फेल हो जाता है. इससे किसानों को तो नुकसान होता है और देश की छवि खराब होती है. क्योंकि हम दुनिया के टॉप-10 एक्सपोर्टरों के क्लब में शामिल हैं और इस सफलता में बासमती का अहम योगदान है. इस समय हमारा बासमती एक्सपोर्ट 38,500 करोड़ रुपये से अधिक है.
बासमती धान में ब्लॉस्ट, शीथ ब्लाइट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट और झंडा रोग लगता है. इसके अलावा तनाछेदक, भूरा फुदका और पत्ती लपेटक कीटों का भी अटैक होता है. इसलिए किसान कीटनाशकों का स्प्रे करते हैं. बीईडीएफ के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि धान की उपज और क्वालिटी में संतुलन बैठाना बहुत जरूरी है. ताकि हमारा बासमती चावल यूरोपीय यूनियन और अमेरिका जैसे देशों के मानक पर खरा उतरे और किसानों को कोई नुकसान भी न हो. इस व्हाट्सएप हेल्पलाइन नंबर आने वाली समस्याओं का समाधान फाउंडेशन के विशेषज्ञ करेंगे. फाउंडेशन के साइंटिफिट ऑफीसर डॉ. प्रमोद कुमार तोमर इस प्रोजेक्ट के इंचार्ज हैं.
शर्मा ने कहा कि दुकानदारों के कहने पर कोई कीटनाशक न डालें. क्योंकि वो अपनी बिक्री का टारगेट ठीक रखने के लिए आपकी खेती तबाह कर देंगे. चावल में कीटनाशकों के अंश की मात्रा तय है. उससे अधिक होने पर निर्यात में दिक्कत आएगी. इसलिए खाद, पानी और कीटनाशकों का सोच समझकर इस्तेमाल करना होगा. यह जरूर देखें कि कीटनाशक की जरूरत है या नहीं. अगर बहुत ज्यादा जरूरत हो तो ही इस्तेमाल करें. लेकिन बीईडीएफ के वैज्ञानिकों या कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर बात करें. विशेषज्ञ जितनी मात्रा बताएं उतनी का ही इस्तेमाल करें. अगर किसान ज्यादा यूरिया न डालें और पानी का सही इस्तेमाल हो तो बिना दवाईयों के भी फसल काफी हद तक बचा सकते हैं. क्यों रोग कम लगेगा.
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