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खेती के तौर-तरीके बदलने से कम होगी कृष‍ि क्षेत्र में पानी की खपत, व‍िशेषज्ञों ने क‍िसानों को द‍िए ट‍िप्स 

खेती के तौर-तरीके बदलने से कम होगी कृष‍ि क्षेत्र में पानी की खपत, व‍िशेषज्ञों ने क‍िसानों को द‍िए ट‍िप्स 

वर्ष 2015 से पहले सिंचाई के आधारभूत ढांचे की खराब स्थिति को रेखांकित करते हुए प्रो. रमेश चंद ने कहा क‍ि 1995 से 2015 के बीच छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई प्रोजेक्टों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन सिंचित जमीन उतनी ही रही. वर्तमान सरकार ने 2015 में तंत्र को बदला. परिणामस्वरुप पिछले कुछ सालों से सिंचित भूमि का दायरा बढ़ गया है.  

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वर्ल्ड वाटर डे पर द‍िल्ली में आयोज‍ित कार्यक्रम को संबोध‍ित करते रमेश चंद. वर्ल्ड वाटर डे पर द‍िल्ली में आयोज‍ित कार्यक्रम को संबोध‍ित करते रमेश चंद.

नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा है क‍ि कई विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में प्रति टन फसल के उत्पादन में 2-3 गुना पानी इस्तेमाल होता है. पैदावार का क्षेत्र बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर रबी की फसल का, जब बार‍िश न के बराबर होती है. इसको बदलने की आवश्यकता है, और खासकर राज्य सरकारों को स्थानीय पर्यावरण और भौगोलिक स्थितियों के अनुसार खेती-बाड़ी को प्रोत्साहित करना चाहिए. धानुका समूह द्वारा 'विश्व जल दिवस' पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने जल संकट की भयावहता को समझाने और बताने की कोश‍िश की. उन्होंने कहा क‍ि भारत में दुनिया की मात्र 2.4 फीसदी कृषि योग्य भूमि और 4 प्रत‍िशत पानी है, लेकिन भूमि संकट के स्थान पर देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट से गुजर रहा है, खासकर कृषि क्षेत्र. 

प्रो. चंद ने कहा क‍ि सिंचाई प्रोजेक्टों में संसाधनों की बर्बादी, फसल के गलत तौर-तरीकों, खेती-बाड़ी की गलत तकनीकें और चावल जैसी ज्यादा पानी इस्तेमाल करने वाली एवं बिना मौसम वाली फसलों पर जोर से समस्या विकराल होती जा रही है. समस्या का तुरंत समाधान करने की आवश्यकता है, जिसके लिए सटीक खेती और आधुनिक तकनीकों को अपनाने की जरूरत है. खासतौर पर कम पानी वाली फसलों पर जोर देना होगा.

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स‍िंच‍ित क्षेत्र बढ़ा

वर्ष 2015 से पहले सिंचाई के आधारभूत ढांचे की खराब स्थिति को रेखांकित करते हुए प्रो. रमेश चंद ने आगे कहा क‍ि 1995 से 2015 के बीच छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई प्रोजेक्टों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन सिंचित जमीन उतनी ही रही. वर्तमान केंद्रीय सरकार ने 2015 में स्थिति का आंकलन कर तंत्र को बदला. परिणामस्वरुप पिछले कुछ सालों से सिंचित भूमि हर वर्ष 1 फीसदी की दर से बढ़ते हुए 47 से 55 फीसदी हो गई है.

ज्यादा क्षेत्र में स‍िंचाई कैसे होगी

केंद्रीय कृषि आयुक्त डॉ. पीके सिंह ने कहा क‍ि जल शक्ति मंत्रालय के साथ मिलकर हम जमीन के ऊपर के पानी के बेहतर उपयोग के तरीकों पर काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए अगर एक नहर से अभी 100 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है, तो हम कैसे उतने ही पानी से 150 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई कर सकते हैं इस पर काम हो रहा है.

आईसीएआर में कृषि शिक्षा के उप महानिदेशक डॉ. आरसी अग्रवाल ने कृषि क्षेत्र में पानी के सही उपयोग पर किसानों और युवाओं को जागरूक करने पर अपनी बात रखी. उन्होंने क‍हा क‍ि हम युवाओं के लिए एक कोर्स बना रहे हैं, जिसमें कृषि में पानी के उपयोग पर जागरूक करते हुए समाधान उपलब्ध कराए जाएंगे.  

नई तकनीकों के इस्तेमाल से बचेगा पानी 

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कृषि कार्यों में आधुनिक तकनीकों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर जोर दिया. उन्होंने कहा क‍ि लगभग 70 फीसदी पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है. ड्रोन, स्प्रिंकलर, ड्रिप इरीगेशन और वाटर सेंसर जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता को काफी कम करने में मदद मिलेगी. इससे पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी,” उन्होंने कहा.

ड्रोन के इस्तेमाल से बचेगा पानी

अग्रवाल ने ड्रोन के इस्तेमाल का उदाहरण देते हुए कहा क‍ि इसके माध्यम से एक एकड़ भूमि पर कीटनाशक स्प्रे के लिए पारंपरिक विधि में 200 लीटर के मुकाबले लगभग 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. आधुनिक तकनीकों से पानी की बचत बहुत बड़ी होती है. पंचायत स्तर पर मौसम स्टेशन स्थापित करने से भी पानी की आवश्यकताओं को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी.

इजराइल जैसे देश पहले ही आधुनिक सिंचाई प्रणाली सहित सटीक कृषि के लाभों का प्रदर्शन कर चुके हैं. एक देश के रूप में हमें भी बड़े पैमाने पर सटीक खेती को अपनाने की जरूरत है, जिसके परिणामस्वरूप न केवल पानी की बचत होगी, बल्कि किसानों की फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता भी बढ़ेगी. 

क‍िसानों के कंधों पर पानी बचाने की ज‍िम्मेदारी

वर्ल्ड कोऑपरेट‍िव इकोनॉम‍िक फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष ब‍िनोद आनंद ने कहा क‍ि सबसे ज्यादा भूजल का दोहन कृष‍ि क्षेत्र में होता है. इसल‍िए क‍िसानों के कंधों पर पानी बचाने की सबसे बड़ी ज‍िम्मेदारी है. क‍िसान इस द‍िशा में काम करेंगे. फ्लड इरीगेशन को छोड़कर वो ड्र‍िप इरीगेशन और कम पानी खर्च वाली दूसरी तकनीकें अपनाएंगे. जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. सुधीर सुथार ने एक प्रजेंटेशन के जर‍िए बताया क‍ि कैसे पानी की बचत की जा सकती है और क‍िन सूबों में माइक्रो इरीगेशन पर सबसे अच्छा काम क‍िया है.  

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