
पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच देश में एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बहस जारी है. किसान स्वामीनाथन कमीशन के फार्मूले C2+50% के अनुसार फसलों की लागत गणना पर आधारित एमएसपी और उसकी लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं. जबकि, एमएसपी का लाभ कैसे पंजाब, हरियाणा से आगे बढ़कर अन्य राज्यों को भी मिले, बड़े किसानों से आगे बढ़कर छोटे किसानों तक भी इसका फायदा पहुंचे...इस पर ही अभी काफी काम करने की जरूरत है. एमएसपी से जुड़ा ही एक मुद्दा यह भी है कि जब हर राज्य में फसलों की लागत अलग-अलग आती है तो फिर राष्ट्रीय स्तर पर एमएसपी का रेट एक ही क्यों है?
वर्तमान में एमएसपी की जो व्यवस्था है वह कुछ सूबों के लिए बहुत लाभकारी तो कुछ के लिए नुकसान वाली है. इस समय हर राज्य का मिनिमम वेज और मनरेगा मजदूरी तक अलग है. डीजल का दाम अलग-अलग है तो फिर एक एमएसपी पूरे देश के लिए कैसे व्यवहारिक हो सकती है. कैसे हर राज्य के किसान के लिए वो फायदे का सौदा साबित हो सकती है. एमएसपी पर धान और गेहूं खरीदने में सरकार सबसे ज्यादा पैसा खर्च करती है और इसका सबसे ज्यादा फायदा पंजाब को ही मिलता है. आज किसान परिवारों की आय के मामले में पंजाब अव्वल है तो इसमें एमएसपी के तौर पर मिलने वाली सबसे ज्यादा रकम का भी बड़ा योगदान है.
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किसे घाटा और किसे फायदा
निष्कर्ष यह है कि गेहूं और धान दोनों को एमएसपी पर बेचने पर पंजाब को सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है. हरियाणा के किसानों को भी गेहूं बेचने पर अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक फायदा मिल रहा है. कम लागत होने की वजह से हरियाणा, पंजाब को धान और गेहूं पर एमएसपी का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है. एमएसपी तय करने का जो तौर-तरीका है उससे कुछ राज्यों के लिए एमएसपी किसी काम की नहीं रह गई है. अन्य सूबों को भी फायदा देना है तो दूसरी फसलों की खरीद एमएसपी पर बढ़ानी होगी. इस समय जितनी खरीद धान-गेहूं की होती है उतनी किसी और फसल की नहीं होती.
दरअसल, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) एमएसपी तय करने का काम करता है. यह संस्था फसलों की मांग-आपूर्ति की परिस्थिति, घरेलू और वैश्विक मार्केट प्राइस ट्रेंड्स और अलग-अलग राज्यों की इनपुट कॉस्ट का औसत निकालकर एमएसपी तय कर देती है. राज्यों की सिफारिशें दरकिनार कर दी जाती हैं. हालांकि, सीएसीपी ने खुद अपनी ही तमाम रिपोर्टों में यह बताया है कि कैसे एक ही फसल की लागत हर राज्य में अलग अलग होती है. तो फिर सवाल ये उठता है कि फिर एमएसपी एक क्यों?
क्या इसीलिए एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था पूरे देश के किसानों को जोड़ नहीं पाती. गारंटी मिल भी जाए तो क्या पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को छोड़कर किन्हीं दूसरे राज्यों के किसानों को उसका फायदा मिलेगा? दरअसल, एमएसपी पर गारंटी से बड़ा सवाल भेदभाव का है, जिसकी वजह से कम और अधिक लागत लगाने वाले किसानों को एक ही एमएसपी मिल रहा है.
क्यों कम-अधिक होती है लागत
अब कुछ लोगों के मन में यह सवाल यह आ सकता है कि आखिर हर राज्य में लागत कैसे घट और बढ़ जाती है. दरअसल, हर राज्य में श्रमिकों का खर्च अलग-अलग है, खेती में इस्तेमाल होने वाली मशीनों, खाद, पानी, कीटनाशक, वर्किंग कैपिटल, जमीन की रेंटल वैल्यू और बीजों के दाम अलग-अलग होते हैं.
कहीं पानी बहुत कीमती है, कहीं फ्री में मिल रहा है. कहीं खेती के लिए बिजली फ्री है तो कहीं इसके लिए पैसा देना पड़ता है. कुछ राज्यों में फसल बीमा फ्री है तो कुछ में किसानों को खुद पैसा देना पड़ता है. इसलिए एक ही फसल की लागत किसी सूबे में कम किसी में अधिक है. एमएसपी तय करने का पैमाना काफी दोषपूर्ण है. इससे उन राज्यों के किसानों के साथ अन्याय होता है जिनमें लागत अधिक आती है.
अगस्त 2020 में उत्तर प्रदेश के विशेष सचिव विद्याशंकर सिंह ने केंद्रीय कृषि सचिव को पत्र लिखकर यूपी के लिए गेहूं की एमएसपी 2,710 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग उठाई थी. जबकि रबी मार्केटिंग सीजन 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी 1975 रुपये तय की थी. यानी राज्य की मांग के मुकाबले एमएसपी 735 रुपये कम थी. अब यहां सवाल यह है कि कैसे औसत दाम तय करने से किसानों को लाभ हो सकता है?
मोदी सरकार की ओर से कृषि सुधार के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य पाशा पटेल मानते हैं कि एमएसपी की व्यवस्था जिस भावना से की गई थी असल में उस तरह से उसका फायदा नहीं मिल पा रहा. वजह यह है कि सभी राज्यों में उत्पादन लागत अलग-अलग है और एमएसपी एक ही है. ऐसे में तर्कसंगत बात तो यही है लागत के हिसाब से एमएसपी हो. कमेटी की बैठक में यह मुद्दा उठाया जाएगा. पटेल महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन भी हैं.
‘किसान तक’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि सभी राज्यों में स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन होना चाहिए. उसके चेयरमैन सीएसीपी के सदस्य हों और कमीशन को वैधानिक दर्जा हो. राज्यों की इन आयोगों की रिपोर्ट के हिसाब से एमएसपी तय हो तब जाकर सभी राज्यों के किसानों को एमएसपी का फायदा मिल पाएगा.
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