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क्या WTO में कांग्रेस की गलतियों की सजा भुगत रहे किसान, आखिर क्‍यों आसान नहीं एमएसपी की ‘गारंटी’ देना

क्या WTO में कांग्रेस की गलतियों की सजा भुगत रहे किसान, आखिर क्‍यों आसान नहीं एमएसपी की ‘गारंटी’ देना

भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य है और उसने इसके तहत बहुपक्षीय कृषि समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे हैं. इस समझौते की वजह से ही आज ऐसी स्थिति है कि हम अपने किसानों को थोड़ी सी भी सब्सिडी देते हैं तो विकसित देशों को ऐतराज होता है और वो अपने किसानों को हमसे कई गुना ज्यादा सब्सिडी आसानी से दे देते हैं. सरकार के पास तकनीकी तौर पर एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग मानने की पर्याप्त गुंजाइश नहीं है. क्योंकि भारत अपने पुराने समझौते की वजह से डब्ल्यूटीओ में अपनी कृषि सब्सिडी को लेकर दबाव में है.

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एमएसपी गारंटी में बाधा क्यों है डब्यूटीओ? एमएसपी गारंटी में बाधा क्यों है डब्यूटीओ?

विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना के साथ ही इसका कृषि समझौता (एओए) भी 1 जनवरी 1995 को लागू हो गया था. तब भारत में पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, यानी कांग्रेस की सरकार थी. विशेषज्ञों का मानना है कि तब हमारी सरकार इतना समझ नहीं पाई और हम सब विकसित देशों के झांसे में आ गए. जबकि डब्‍ल्‍यूटीओ के कृषि समझौते में हमारे किसानों के साथ सरासर नाइंसाफी हुई थी. उस दौरान हुई गलतियों का खामियाजा भारत के किसान अब तक भुगत रहे हैं. इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड में सेंटर फॉर डब्‍ल्‍यूटीओ स्‍टडीज के हेड रहे प्रो. विश्‍वजीत धर का कहना है कि जब तक इस समझौते की शर्तों बदला नहीं जाएगा, तब तक सरकार चाहकर भी किसानों को ज्‍यादा एमएसपी और उसकी गारंटी नहीं दे सकती. भारत सरकार अपने किसानों के समर्थन में डब्‍ल्‍यूटीओ की बैठकों में आवाज उठा रही है, लेकिन जितनी मुखरता की जरूरत है उतनी नहीं दिख रही.

‘किसान तक’ से बातचीत में प्रो. धर ने कहा कि कुछ किसान संगठन यह कह रहे हैं कि कृषि को डब्ल्यूटीओ से बाहर रखा जाना चाहिए या फिर भारत को डब्‍ल्‍यूटीओ से बाहर निकल जाना चाहिए. लेकिन यह दृष्टिकोण समस्याएं पैदा कर सकता है. डब्‍ल्‍यूटीओ से बाहर निकलने में हमें नुकसान होगा. खासतौर पर व्‍यापार के मामले में. ऐसा हुआ तो विकसित देश दूसरे तरीके से भी हमारी नीतियों पर प्रभाव डाल सकते हैं. ऐसे में हमें डब्‍ल्‍यूटीओ में रहते हुए ही किसानों के खिलाफ लिखी गई शर्तों को बदलवाना है. अभी भारत की स्‍थिति मजबूत है और वो यह काम कर सकता है.

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कृषि समझौते ने खेल बिगाड़ा

भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य है और उसने इसके तहत बहुपक्षीय कृषि समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे है. इस समझौते की वजह से ही आज ऐसी स्‍थिति है कि हम अपने किसानों को थोड़ी सी भी सब्‍सिडी देते हैं तो विकसित देशों को ऐतराज होता है और वो अपने किसानों को हमसे कई गुना ज्‍यादा सब्‍सिडी आसानी से दे देते हैं. सरकार के पास तकनीकी तौर पर एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग मानने की पर्याप्त गुंजाइश नहीं है. यह कुछ हद तक सीमित है, क्योंकि भारत अपने पुराने समझौते की वजह से डब्ल्यूटीओ में अपनी कृषि सब्सिडी को लेकर दबाव में है.

क्‍या है WTO की शर्त

भारत विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं. इसके कृषि समझौते (AOA) के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश अपने यहां होने वाली फसलों की कुल वैल्‍यू पर एमएसपी को मिलाकर अधिकतम 10 फीसद ही सब्सिडी दे सकते हैं. प्रो. धर कहते हैं कि इस तरह की कंडीशन का कोई आर्थिक लॉजिक नहीं है. ऐसी भेदभावपूर्ण शर्तों की वजह से ही विकसित देश अक्सर भारत में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी पर सवाल उठा देते हैं. वो निर्धारित सीमा से अधिक सब्सिडी देने वालों को अंतरराष्‍ट्रीय कारोबार बिगाड़ने वाले देशों के तौर पर देखते हैं. 

भारत की पहल पर फैसला

भारत सरकार ने इस नियम पर आपत्त‍ि जाहिर करते हुए विशेष छूट की मांग रखी थी. क्योंकि देश में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू करने पर सब्सिडी 10 फीसदी से ज्‍यादा बढ़ने का अनुमान था. इसके लिए साल 2013 में बाली में हुई डब्ल्यूटीओ की बैठक में 'पीस क्लॉज’ नाम से एक अस्थायी समाधान निकाला गया. इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि कोई भी विकासशील देश अगर अपनी कुल उपज की वैल्‍यू का 10 फीसदी से अधिक सब्सिडी देता है तो दूसरा कोई देश इसका विरोध नहीं करेगा.

विकसित देशों और भारत की कृषि सब्सिडी में जमीन-आसमान का अंतर.

डब्‍ल्‍यूटीओ को देनी पड़ती है जानकारी

भारत सरकार ने 2018-19 में धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक सरकारी सपोर्ट देने के लिए इसी ‘पीस क्लॉज’ का प्रयोग किया. हमने डब्ल्यूटीओ को बताया कि चावल उत्पादन का मूल्य 2018-19 में 43.67 अरब डॉलर था. उसने उसके लिए 5 अरब डॉलर मूल्य की सब्सिडी दी है, जो निर्धारित सीमा 10 प्रतिशत से अधिक है. लेकिन इसका मकसद खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण व्यवस्था बनाए रखना है. पीस क्‍लाज एक अस्‍थाई व्‍यवस्‍था है. यानी हमें 10 फीसदी से ज्‍यादा सब्‍सिडी देने की कानूनी निश्चितता नहीं है. डब्ल्यूटीओ में भारत से पूछताछ की जाती है और यही कारण है कि हमें इसे लेकर स्थायी समाधान खोजना होगा.

विकसित देशों की मंशा क्‍या है?

दस फीसदी वाली शर्त को लेकर भारत पर दबाव बनाने वाले विकसित देशों का मानना है कि अगर भारत अपने किसानों को ज्यादा सब्सिडी देगा तो इसका असर वैश्विक कृषि कारोबार पर पड़ेगा. जिससे उनके हित प्रभावित होंगे. वो चाहते हैं कि उन्‍हें भारत से सस्‍ते कृषि उत्‍पाद मिलते रहें. दूसरी ओर, अमेरिका की में किसानों की इनकम भारत के कृषकों से कहीं ज्‍यादा है. इसके बावजूद वो प्रति किसान सालाना 61000 यूएस डॉलर से ज्यादा की सब्स‍िडी देता है. दूसरी ओर, भारत अपने किसानों को साल भर में 300 यूएस डॉलर से कम ही सब्स‍िडी दे पाता है. इसके बावजूद डब्ल्यूटीओ भारत पर कृषि सब्स‍िडी कम करने और किसानों को एमएसपी न देने का दबाव बना रहा है.  

सब्सिडी में जमीन-आसमान का अंतर

फोकस ऑन द ग्‍लोबल साउथ की ओर से डब्‍ल्‍यूटीओ पर प्रकाशित अपनी किताब में अफसर जाफरी लिखते हैं कि कृषि क्षेत्र में भारत और अमेरिका द्वारा दी जा रही सब्सिडी में जमीन आसमान का अंतर है. वर्ष 2012 में अमेरिका अपने किसानों को औसतन 57,901 डॉलर प्रति व्यक्ति की सब्सिडी देता था, जबकि भारत ने वर्ष 2010 में प्रत्येक किसान को औसतन 99 डॉलर की ही सब्सिडी दी. तब अमेरिका की सब्सिडी भारत से औसतन 585 गुना ज्यादा थी. विकसित देश कृषि क्षेत्र में सब्सिडी खत्म करने के लिए भारत, चीन, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों के ऊपर लगातार दबाव डाल रहे हैं. दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि वे खुद अपने किसानों को भारी मात्रा में सब्सिडी प्रदान कर रहे हैं.   

विचलित हैं कई देश 

जो अमेरिका 60 के दशक में भारत को गेहूं देने के बदले ब्लैकमेल कर रहा था, वही आज कृषि क्षेत्र में हुई भारत की तरक्कीद को बर्दाश्त  नहीं कर पा रहा है. वर्ष 2018-19 में डब्ल्यूटीओ की एक मीटिंग के दौरान अमेरिका, कनाडा, ब्राजील, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने आरोप लगाया था कि भारत ने धान खरीद के दौरान किसानों को तय सीमा से ज्यादा सब्सिडी दी है. इन देशों ने गेहूं और अन्य फसलों के लिए एमएसपी का भी विरोध दर्ज कराया था.

भारत के खिलाफ उठाई थी आवाज

जनवरी 2022 में अमेरिका के 28 सांसदों ने अपने राष्ट्रपति जो बाइडन को खत लिखकर भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मुकदमा करने की मांग उठाई थी. आरोप लगाया था कि भारत डब्ल्यूटीओ के तय नियमों  का उल्लंघन करते हुए फसलों की कुल वैल्यूर का 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी दे रहा है. इस वजह से विश्वल बाजार में भारत का अनाज कम कीमत पर उपलब्ध है, इससे अमेरिकी किसानों को नुकसान हो रहा है. 

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