धान का जीवाणु झुलसा रोग बहुत खतरनाक होता है. यह रोग जीवाणु के जरिये फैलता है जो पौधे को पहले पीला करता है, फिर उसे नष्ट कर देता है. जीवाणु झुलसा रोग का प्रकोप धान पर कभी भी हो सकता है. जब पौधा छोटी अवस्था में हो तो इसका अटैक अधिक देखा जाता है. बाद में जब धान पकने की अवस्था में जाता है, तब भी जीवाणु झुलसा रोग का आक्रमण हो सकता है. इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं.
इस रोग का एक सामान्य लक्षण ये है कि पत्ते पीले पड़ने के साथ ही उस पर राख के रंग के चकत्ते भी दिखाई देते हैं. जब संक्रमण गंभीर हो जाता है तो पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. धान में ऐसी स्थिति दिखे तो किसानों को सावधान हो जाना चाहिए. फौरन इस रोग को रोकने का उपाय करना चाहिए.
सबसे पहले तो किसानों को उपचारित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए. बीज का उपचार करने से झुलसा रोग की संभावना एक हद तक खत्म हो जाती है. बीज उपचार करने के लिए 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन + 25 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति 10 लीटर पानी के घोल में बीज को 12 घंटे तक डुबोएं. फसल में नाइट्रोजन खाद का प्रयोग कम कर दें. जिस खेत में झुलसा रोग लगा हो उसका पानी दूसरे खेत में न जानें दें. इससे रोग फैलने की आशंका बनी रहती है.
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खेत में जीवाणु झुलसा रोग के फैलने से रोकने के लिए उचित जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए. रोग की रोकथाम के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसिन-100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से तीन-चार बार छिड़काव करें. पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखने पर और जरूरत के हिसाब से 10 दिनों के अंतराल पर करें. किसान उन किस्मों को भी लगा सकते हैं जो रोग के प्रति टॉलरेंट हो. इसमें कुछ प्रमुख किस्में हैं-पंत धान-4, पंत धान-12, गोबिंद और मनहर आदि. धान की इन किस्मों पर झुलसा रोग का प्रकोप नहीं होता.
इसी तरह धान का झोंका रोग भी बेहद खतरनाक होता है. यह रोग फफूंद से फैलता है. इस रोग से पौधे के सभी अंग प्रभावित होते हैं. धान के जिस खेत में सिंचाई नहीं की गई हो, उसमें झोंका या ब्लास्ट रोग का प्रभाव अधिक देखा जाता है. इस रोग के प्रकोप से पत्तियां सूख जाती हैं. गांठों पर भी भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. इससे पूरे पौधे को नुकसान पहुंचता है. पौधे की गांठें पूरी तरह से या कुछ हिस्सा काला पड़ जाता है. कल्लों की गांठों कवक के आक्रमण से भूरे धब्बे बनते हैं. इस वजह से पौधे टूट कर गिरने लगते हैं.
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ब्लास्ट रोग से बचाव के लिए खड़ी फसल में 250 ग्राम कार्बेन्डाजिम और 1.25 किलो इंडोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. किसान झोंकारोधी किस्में लगाकर भी इस नुकसान से बच सकते हैं. इसमें वीएल धान-206, मझेरा-7 (चेतकी धान), वीएल धान-163, बीएल धान-221 (जेठी धान) शामिल हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर 10-12 दिनों के अंतराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील घोल की 15-20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें.
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