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सावधान! आलू-सरसों पर अभी कीटों का हो सकता है प्रकोप, बचाव के लिए पढ़ें ये सरकारी सलाह

सावधान! आलू-सरसों पर अभी कीटों का हो सकता है प्रकोप, बचाव के लिए पढ़ें ये सरकारी सलाह

बिहार के कई इलाकों में रबी फसल की मुख्य दलहनी फसल और आलू पर रोग और कीट का प्रकोप बढ़ते जा रहा है. इससे प्रदेश के किसान चिंतित हैं क्योंकि इस रोग से फसलों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है. इन्हीं परेशानियों को देखते हुए बिहार कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है.

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आलू-सरसों पर अभी कीटों का हो सकता है प्रकोप आलू-सरसों पर अभी कीटों का हो सकता है प्रकोप

वर्तमान समय में देश के अलग-अलग राज्यों में आलू की फसल और सरसों में अब फूल आने शुरू हो गए हैं. साथ ही कुछ अगेती आलू की तो बाजारों में आवक भी होने लगी है. पर बिहार के कुछ क्षेत्रों में जहां आलू और सरसों अभी तैयार होने के क्रम में हैं, उनमें कीट का खतरा मंडरा रहा है. इसे लेकर किसान थोड़े चिंतित दिख रहे हैं क्योंकि इस बार लगातार पड़ रही ठंड और शीतलहर से फसलों में पाले का खतरा मंडरा रहा है. इससे किसानों का नुकसान हो सकता है. वहीं अगर किसान फसलों में लगने वाले कीट से बचाने का प्रयास नहीं करेंगे तो नुकसान के साथ-साथ उत्पादन में भी कमी आ सकती है.

दरअसल बिहार के विभिन्न भागों में आलू-सरसों के फसलों पर मुख्य रूप से दो कीटों, जैसे आलू की फसल में पिछात झुलसा-अगात झुलसा और सरसों की फसल में लाही और आरा मक्खी का प्रकोप देखने को मिल रहा है, जिसके लिए कृषि विभाग ने किसानों को प्रबंधन के उपाय करने की सलाह दी है. आइए जानते हैं कैसे करें प्रबंधन.

पिछात झुलसा रोग के लक्षण

आलू की फसल में ये रोग फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद के कारण होता है. लगभग 10 से 19 डिग्री तापमान रहने पर आलू में पिछात झुलसा रोग लगने का खतरा रहता है. इस रोग को किसान आफत भी कहते हैं. इस रोग के लगने से फसल की पत्तियां किनारे से सूखने लगती हैं. इससे फसलों पर प्रभाव पड़ता है.

पिछात झुलसा रोग से सुरक्षा

इस रोग से सुरक्षा के लिए किसान अपनी आलू की फसलों में 10-15 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 02 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. साथ ही मेटालैक्सिल और कार्बेन्डाजिम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

अगात झुलसा रोग के लक्षण

आलू में यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद के कारण होता है. इस रोग के लगने पर पत्तियों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं, जिसके बाद धब्बा बनकर पत्ती पीली पड़कर सूख जाती है. दरअसल बिहार में यह रोग देर से लगता है. वहीं ठंडे प्रदेशों वाले राज्यों में अधिक जल्दी लग जाती है.

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अगात झुलसा रोग से सुरक्षा

फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही जिनेब और मैंकोजेब की घुलनशील 02 किलो चूर्ण प्रति हेक्टेयर और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 2.5 किलो घुलनशील चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. ऐसे करने से फसलों फसल इस रोग से बच जाता है.

लाही रोग के क्या हैं लक्षण

यह सरसों का एक प्रमुख कीट है. लाही कीट पीला, हरा या काले, भूरे रंग का मुलायम पंख वाला कीट होता है. ये कीट फसलों की मुलायम पत्तियों, टहनियों, तनों और फलियों के रस को चूसते हैं. वहीं इसके असर के पत्तियां मुड़ जाती हैं. साथ ही इस कीट के लगने से फलियां नहीं बन पाती हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है.  

लाही रोग से बचाव

अगर किसानों को इस रोग से बचना है तो खेतों में खरपतवार को हमेशा साफ रखना चाहिए. साथ ही नीम वाले कीटनाशक का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. वहीं फसलों में अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक कीटनाशक के रूप में ऑक्सी डेमेटान मिथाइल घोल बनाकर छिड़काव करें.

आरा मक्खी रोग के लक्षण

यह सरसों के वृद्धि के समय का एक प्रमुख कीट है. ये कीट नारंगी पीले रंग और काले सिर वाले होते हैं. इसके मादा का ओमिपोजिटर आरी के समान होता है. इसलिए इसे आरा मक्खी कहते हैं. यह कीट पत्तियों के किनारे पर अंडा देती हैं जिससे 3-5 दिनों में पिल्लू निकल आते हैं. इसके पिल्लू पत्तियों को काटकर क्षति पहुंचाते हैं.

आरा मक्खी रोग से बचाव

सरसों की फसल में आरा मक्खी रोग से बचाव के लिए नीम वाले कीटनाशक एजाडिरेक्टिन को पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा फसलों पर रासायनिक कीटनाशक का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. इससे आप अपनी फसलों के उत्पादन पर पड़ने वाले असर से बच सकते हैं.