मौसम में बदलाव से रबी की सबसे मुख्य फसल गेहूं और जौ में अब कीटों का प्रकोप शुरू हो गया है. स्थिति यह है कि देशभर में रबी सीजन में सर्वाधिक रकबे वाली फसल गेहूं में चेपा कीट का सबसे अधिक प्रकोप देखा जा रहा है. इस कीट के प्रकोप के बढ़ने से उत्पादन पर असर देखने को मिलता है. ऐसे में गेहूं और जौ के किसान चिंतित हैं. उनका मानना है कि इस कीट से उनकी फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है. ऐसे में किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
दरअसल किसान रबी सीजन में गेहूं और जौ की फसल सबसे अधिक बोते हैं क्योंकि ये दोनों ही फसलें दुनियाभर में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाली साबूत अनाज हैं. ऐसे में गेहूं की फसल में चेपा रोग से बचाव के लिए हरियाणा कृषि विभाग के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर जरूरी सलाह जारी की गई है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, चेपा कीट रबी फसलों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि गेहूं और जौ की बालियां बननी शुरू हो गई हैं. ऐसे में गेहूं और जौ में चेपा का आक्रमण अधिक देखा जा रहा है. चेपा फसल को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है. ऐसे में इसके बचाव के लिए हरियाणा कृषि विभाग ने जरूरी सलाह जारी की है. सूचना के मुताबिक चेपा गेहूं और जौ की फसलों में कीट नरम और प्रौढ़ पत्तों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं.
*गेहूं व जौ में चेपा (अल) से बचाव*
— Dept. of Agriculture & Farmers Welfare, Haryana (@Agriculturehry) January 15, 2024
• गेहूं व जौ की फसलों में चेपा (अल) का आक्रमण होने पर इस कीट के बच्चे व प्रौढ़ पत्तों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं।
• इसके नियन्त्रण के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान 50ई. सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें। pic.twitter.com/E1HyJW79EA
गेहूं और जौ की फसलों में चेपा (अल) का आक्रमण होने पर इस कीट के बच्चे व प्रौढ़ पत्तों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं. इसके नियंत्रण के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करना चाहिए. इससे फसलों को इस रोग से छुटकारा मिलता है. वहीं किसान चाहें तो इस कीट से अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए अपने नजदीकी कृषि विभाग के अधिकारियों से भी संपर्क कर सकते हैं.
चेपा एक तरह का कीट होता है, जो गेहूं और जौ की फसलों पर सीधे तौर पर आक्रमण करता है. अगर यह कीट एक बार पौधे में लग जाता है, तो यह पौधे के रस को धीरे-धीरे करके चूस जाता है. वहीं फसलों को चूसकर वो बहुत ही कमजोर कर देता है, जिसके चलते बालियों का सही से विकास नहीं हो पाता है और उत्पादन पर असर पड़ता है.
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