बेल रूटेसी परिवार से संबंधित भारतीय मूल का एक घरेलू औषधीय वृक्ष है. बेल को भारत में बिल्व, गोल्डन एप्पल, स्टोन एप्पल और 'श्री फल' के नाम से भी जाना जाता है. बेल का वर्णन प्राचीन भारतीय साहित्य वेदों, रामायण और बृहत संहिता जैसे ग्रंथों में किया गया है. प्राचीन भारतीय साहित्य में बेल को एक पूज्य वृक्ष का दर्जा मिला हुआ है. बेल की पत्ती वानस्पतिक दृष्टि से त्रिपर्णीय होती है. भारत के विभिन्न भागों में बेल के फल लगभग मई से अगस्त महीने तक उपलब्ध रहते हैं. एक नए आंकड़े के अनुसार देश में बेल का क्षेत्रफल लगभग 1,000 हेक्टेयर, कुल उत्पादन 10,000 टन और औसत उत्पादन 10-15 टन प्रति हेक्टेयर है.
भारत में इसका व्यावसायिक उत्पादन मुख्यता उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होता है. आईसीएआर से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों- देवेन्द्र पाण्डेय', संजय कुमार सिंह, शिव पूजन, शारदुल्य शुक्ला और आश्चर्य पाण्डेय ने बेल के औषधीय गुणों की जानकारी दी है. बेल के प्रमुख भागों की उपयोगिता करें तो इसकी पत्तियां, जड़, फूल-फल और बीज सभी उपयोगी हैं. जानिए किस प्रकार बेल का हर भाग सेहत के लिए फायदेमंद है…
बेल के पत्तों का इस्तेमाल बुखार, उल्टी, सूजन, पेचिश, अपच, वीर्य की कमजोरी और आंतरिक बुखार के इलाज में काफी प्रभावी माना जाता है.
बेल की जड़े मूत्र संबंधी समस्याओं के उपचार, बुखार को ठीक करने में अच्छी मानी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि यह पेट दर्द से भी राहत दिलाती है. इसकी जड़ में दशमूल के औषधीय गुण मौजूद हैं, जो बुखार, दस्त और पेट फूलने के इलाज में कारगर हैं.
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बेल के फूलों को आसवित करके पेचिश रोधी, मधुमेह रोधी और स्थानीय संवेदनाहारी दवा बनाई जा सकती है. इसका उपभोग पेट और आंत के लिए टॉनिक के रूप में किया जाता है. कफ निस्सारक के रूप में इस्तेमाल होने के साथ-साथ यह मिर्गी में भी सहायक होता है.
बेल के फल खाने योग्य होते हैं. इसके गूदे का उपयोग जूस, जैम, पाउडर, कैंडी और मुरब्बा जैसे स्वादिष्ट उत्पाद बनाने में किया जाता है. रेचक के रूप में इस्तेमाल और श्वसन संबंधी रोगों को ठीक करने के अलावा, इसका उपयोग कई पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है, जैसे- क्रोनिक डायरिया, पेप्टिक अल्सर, लिपिड पेरोक्सीडेशन को रोकना, फ्री रेडिकल्स को नष्ट करना, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-अल्सरेटिव कोलाइटिस, गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीडायबिटिक, कार्डियोप्रोटेक्टिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, जीवाणुरोधी, एंटीडायरियल और एंटीवायरल गुण आदि.
बेल के बीज के अर्क में मधुमेह रोधी और हाइपोलिपिडेमिक प्रभाव होता है. इसलिए यह डायबिटीज के मरीजों के लिए भी उपयोगी है.
(नोट: यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है. आयुर्वेद के जानकार या अपने डॉक्टर की देखरेख में ही किसी सलाह को अपनाएं.)
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