Drip irrigation: खेती में सिंचाई के लिए कई नई तकनीक सामने आ रही हैं जिसमें ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर, हाइड्रोपोनिक, सॉइललेस कल्टीवेशन, IOT( agriculture internet of things) जैसे हाइटेक इरिगेशन सिस्टम शामिल हैं. लेकिन इनमें सबसे ज्यादा काम का ड्रिप इरिगेशन है जिसे खेती में बढ़ावा देने की जरूरत है. रिसर्च और परिणामों के आधार पर ड्रिप इरिगेशन 90% तक सफल सिंचाई तकनीक के रूप में साबित हो रही है जिससे पानी के बढ़ते संकट से उबरने के लिए अपनाने की जरूरत है. देश में 80% तक पानी खेती में इस्तेमाल होता है लेकिन ड्रिप इरिगेशन के बढ़ते प्रयोग ने इस नंबर को 75% के करीब ला दिया है. फिलहाल देश में करीब 16 लाख हेक्टयर एरिया में ड्रिप इरिगेशन हो रहा है जो अगले 2 साल में 20 लाख हेक्टेयर तक बढ़ सकता है. पर्यावरण के बचाव और खासतौर पर जल संकट से निपटने में ड्रिप इरिगेशन कितना कारगर है, इसे लगाने में कितना खर्च आता है और क्या सब्सिडी मिलती है, इन सबके बारे में किसान तक ने खास बाचतीच की IARI, वाटर टेक्नोलॉजी सेंटर के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर अनिल मिश्रा से..
पानी के संकट से बचना है और सस्टेनेबल खेती की तरफ कदम बढ़ाना है तो ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाना जरूरी है, ये मानना है डॉक्टर अनिल मिश्रा का. लेकिन साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि क्लाइमेट के हिसाब से खेती करने के लिए नियम और जागरुकता दोनों का होना जरूरी है. उनका कहना है कि जिन राज्यों में कम बारिश होती है वहां ज्यादा पानी वाली में होने वाली फसलें उगाने को हतोत्साहित किया जाना चाहिए या फिर ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीक के साथ फसल उगाने के लिए सिस्टम बनाने की जरूरत है. उदारहण के तौर पर धान की फसल के लिए 1200 मिलीमीटर से लेकर 4000 मिलीमीटर तक सिंचाई की गहराई चाहिए होती है. भारत के कई राज्य जैसे पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और कई प्रदेशों में 1500 मिलीमीटर तक बारिश होती है इसलिए वहां इस फसल के लिए बहुत कम पानी की जरूरत पड़ती है. साथ ही इन राज्यों की मिट्टी भी पानी को होल्ड करती है जिससे कम पानी की जरूरत होती है. लेकिन पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश की जमीन एग्री क्लाइमेट इकॉलॉजी के मुताबिक धान उपयुक्त नहीं है. लेकिन धान के लिए MSP तय है इसलिए यहां के लोग भी धान उगाते हैं,और ज्यादा पानी यूज करते हैं. यही हाल गन्ना की फसल के साथ है. महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां पानी का संकट है वहां भी ज्यादा पानी वाली फसल जैसे गन्ना की पैदावार हो रही है ऐसे में बेहद जरूरी है कि जिन जगहों पर पानी की कमी है वहां ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा मिले. चुनिंदा फसलों को छोड़कर लगभग सभी फसलों में ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई हो सकती है लेकिन खासतौर पर कैश क्रॉप जिसमें सभी सब्जियां और फल-फूल शामिल हैं उसमें इसका रिजल्ट बहुत अच्छा है.
इजराइल में जो एक हरा पत्ता भी दिखता है तो उसके लिए ड्रिप इरिगेशन का ही इस्तेमाल होता है. कहने का मतलब कि इजराइल में खेती में पूरी तरह ड्रिप इरिगेशन का ही इस्तेमाल होता है. लेकिन वो इसके लिए एक पूरा सिस्टम बनाते हैं. अनिल मिश्रा ने अपनी इजराइल यात्रा अनुभव को शेयर करते हुए कहा कि एक वहां एक पार्क बनाया जा रहा था तो पहले पूरे पार्क की खुदाई की और फिर ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और नेटवर्क बिछाया जब जाकर दुबारा मिट्टी डाली और पार्क बनकर तैयार हुआ. अब तो इजराइज में अंडरग्राउंड और सरफेस ड्रिप इरिगेशन दोनों सिस्टम खूब इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
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सरकार ने 5 हेक्टयेर की लिमिट तय कर रखी है जिसमें ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई कर सकते हैं और इसके लिए 80-90% तक की सब्सिडी मिलती है. लागत की बात करें एक एकड़ बागवानी के लिए ड्रिप इरिगेशन लगाने में करीब 40-50 हजार रुपये का खर्च आता है. ड्रिप इरिगेशन के लिए दो सिस्टम लगाने पड़ते हैं जिसमें पहला है पानी के श्रोत से एक बड़े टैंक में पानी भरना और दूसरा है उस पानी को ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से फसल तक के लिए ले जाना.
खेती में पानी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है लेकिन साथ ही बढ़ती जनसंख्या और लोगों की पानी की खपत की वजह से भी पानी की समस्या बढ़ रही है. शहर और गांव के लोगों के पानी के इस्तेमाल के आंकड़े अलग हैं. WHO के मुताबिक जहां पाइप से पानी की सप्लाई होती है वहां एक व्यक्ति एक दिन में 150 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है और जहां पाइप से पानी नहीं पहुंचता वहां एक व्यक्ति एक दिन में 50 लीटर पानी कंज्यूम करता है. जल की उपलब्धता भी एक समान नहीं है और इसका उपयोग भी एक समान नहीं है जिससे कुछ सेक्टर जैसे कंस्ट्रक्शन और कुछ दूसरी इंडस्ट्री जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करती हैं. पानी के उपयोग में जो असमानता है वो भी पानी के संकट के लिए जिम्मेदार है. पानी के संकट में भूजल की बढ़ती कमी तो एक मुद्दा है ही लेकिन साथ ही पानी में बढ़ते प्रदूषण पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है जिसकी वजह से पीने वाले पानी का संकट तेजी से बढ़ रहा है.
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