Paan Ki Kheti: बरेठा के बिना मुश्किल है पान की खेती, हर मौसम में करता है पौधों की सुरक्षा

Paan Ki Kheti: बरेठा के बिना मुश्किल है पान की खेती, हर मौसम में करता है पौधों की सुरक्षा

Paan Ki Kheti: पान के पत्ते की खेती शुष्क उत्तर-पश्चिमी भाग को छोड़कर पूरे भारत में की जाती है. इसकी खेती के लिए उपयुक्त तापमान 15-40 डिग्री सेल्सियस, आर्द्रता 40-80% होना चाहिये. कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए हल्की और बार-बार सिंचाई (गर्मियों में रोज दिन और सर्दियों में 3-4 दिनों के अंतराल पर) आवश्यक होती है.

Advertisement
Paan Ki Kheti: बरेठा के बिना मुश्किल है पान की खेती, हर मौसम में करता है पौधों की सुरक्षाबरेठा के बिना मुश्किल है पान की खेती, जानें क्यों

Paan Ki Kheti: पान की खेती उन क्षेत्रों में अच्छी होती है जहां वर्षा के कारण नमी अधिक होती है. इसलिए दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के राज्य पान की खेती के लिए उपयुक्त हैं. पान के पौधों को न्यूनतम 10 डिग्री और अधिकतम 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है. अधिक ठंड या गर्मी के कारण पान की खेती को नुकसान हो सकता है. पान एक उष्णकटिबंधीय पौधा है और इसके उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियां जरूरी हैं. इसकी वृद्धि नम, ठंडे और छायादार वातावरण में अच्छी होती है. बिहार राज्य की गर्म और ठंडी जलवायु के कारण, इसकी खेती खुले मैदानों में नहीं की जा सकती है, इसलिए इसे एक कृत्रिम मंडप के अंदर उगाया जाता है, जिसे बोलचाल की भाषा में बरेजा या बरेठा (Betelvine conservatory) कहा जाता है.

पान की खेती के लिए जरूरी तापमान

पान के पत्ते की खेती शुष्क उत्तर-पश्चिमी भाग को छोड़कर पूरे भारत में की जाती है. इसकी खेती के लिए उपयुक्त तापमान 15-40 डिग्री सेल्सियस, आर्द्रता 40-80% होना चाहिए. कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए हल्की और बार-बार सिंचाई (गर्मियों में रोज दिन और सर्दियों में 3-4 दिनों के अंतराल पर) जरूरी होती है. बरसात के मौसम में पान में अच्छे जल निकास की व्यवस्था भी बहुत जरूरी है.

ये भी पढ़ें: घर के गमले में भी उगा सकते हैं पान का पत्ता, पनवाड़ी की दुकान पर जाने का झंझट खत्म

बरेठा बनाने के लिए जमीन की तैयारी

बरेजा बनाने से पहले भी खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अप्रैल-मई माह में करनी चाहिए ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़ों के अंडे, लार्वा, प्यूपा और मिट्टी में मौजूद फफूंद तेज़ धूप के कारण नष्ट हो जाएं. खेती के दौरान सूत्रकृमि और खरपतवार को नष्ट कर देना चाहिए. बरेजा के निर्माण से 20-25 दिन पहले आखिरी महीने में मिट्टी को देशी हल से भुरभुरा कर लेना चाहिए. नए पान के पत्ते में प्रारंभिक सूत्रकृमि की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरॉन (3जी) 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर या नीम की खली 0.5 टन कार्बोफ्यूरॉन (3जी) 7.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. पुराने पान के पत्तों पर कार्बोफ्यूरॉन का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका अवशेष पत्तों में रह जाता है. इसलिए पत्ते तोड़ने के 60-70 दिन बाद ही पुराने पेड़ में किसी रासायनिक दवा का छिड़काव करना चाहिए जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर होता है.

कैसे करें बरेठा का निर्माण

जिस भूमि पर बरेजा बनाना होता है वहां सबसे पहले पतली रस्सी और पैमाना की सहायता से जमीन को नाप लें. उसके बाद चूने से एक सीधी लकीर क्यारी बनाने के लिए खींच लें. इन लकीरों पर एक मीटर के अंतराल पर 3-4 मीटर लंबे बांस गाड़ लें. 2. 5 मीटर की ऊंचाई पर बांस की कमचियों से लंबाई और चौड़ाई दोनों तरफ से बांध कर छप्पर जैसा बना लें. इस छप्पर को खर-पुआल से ढ़क देते हैं और बांस की छोटी-छोटी कमचियों के सहारे बांध लें ताकि छत (खर-पुआल) हवा में उड़ न सके. अब छत की ऊंचाई के बराबर इस मंडप के चारों ओर चारदिवारी की तरह टटिया से घेर लें लेकिन ध्यान रहे कि पूर्व दिशा की टटिया पतली और उत्तर और पश्चिम दिशा की मोटी और ऊंची हो ताकि इन दिशाओं से आने वाली 'लू' का असर कम हो.

क्या है बरेठा की उपयोगिता?

बरेठा पान के पत्ते को गर्मी और ठंड दोनों से बचाता है और सर्दियों में जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो पौधों से पत्तियों के गिरने की प्रक्रिया बढ़ जाती है. ऐसे में बरेठा की मोटी पुआल की छत पत्तियों को गिरने से बचाती है यानी सर्दियों में ठंड और पाले से बचाती है. इसी प्रकार, बरसात के मौसम में भी, पेड़ की छत से बारिश की हल्की बूंदे ही आती हैं जो पत्तियों को धोने और हल्की सिंचाई करने में मदद करती हैं. इस प्रकार बरेठा पान की फसल को गर्मी, सर्दी और बरसात तीनों मौसमों से बचाता है.

POST A COMMENT