खरीफनामा: सूरन... जिसे ओल, जिमीकंद के नाम से जाना जाता है. सूरन की खेती पहले के घर आस-पास, घर के पीछे, बाग-बगीचों में थोड़ा-बहुत की जाती थी, लेकिन किसान मौजूदा समय में अपनी बेकार पड़ी जमीन में सूरन की खेती कर बेहतर कमाई कर सकते हैं, जो किसानों लिए बेहद फायदे का सौदा साबित हो सकती है. मसलन, अगर किसान वैज्ञानिक तरीके से सूरन की खेती करते हैं तो 5 से 6 महीने के भीतर एक एकड़ में अपनी लागत का चार गुना मुनाफा भी कमा सकते हैं. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में सूरन की खेती पर पूरी रिपोर्ट...
कृषि विज्ञान केन्द्र बहराइच के सब्जी विज्ञान के विशेषज्ञ और प्रमुख डॉ बीपी शाही ने किसान तक से बातचीत में बताया कि सूरन की खेती से बेहतर लाभ मिले, इसके लिए इसकी खेती की तकनीक जानना बेहद ज़रूरी है. तभी जाकर कहीं इस फसल से लाखों की आमदनी होगी. उन्होंने बताया कि ओल की खेती करने का टाइम अप्रैल मई जून होता है.
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इसकी रेतीली दोमट मिट्टी में इसकी खेती करना ज्यादा लाभदाक होता है. क्योंकि इस तरह की मिट्टी में सूरन के कंदों की वृद्धि तेज होती है. इन सबके अलावा सही मात्रा में बीज और उन्नत किस्मों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत होती है. किसान चाहें तो इसको बागों के बीच के हिस्से में भी आसानी से उगा सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में डॉ बीपी शाही ने बताया कि सूरन यानी जिमीकंद की तासीर गर्म होती है, इसलिए लोकल किस्में को खाने से गले में खुजली की समस्या हो सकती है. इस परेशानी से निजात पाने के लिए सूरन की कई किस्मों काे विकसित किया गया है, जिसे खाने से खुजली नहीं होती है.आज के समय में बाजरों में उन किस्मों की मांग है. उन्होंने बताया कि सूरन की बेहतर और उन्नत किस्मों में गजेंद्र एन-15, राजेंद्र ओल कोयम्बटूर और संतरा गाची हैं, इन किस्मों से प्रति एकड़ 20 से 25 टन उपज प्राप्त होती है. आप कौन-सी का चयन नहीं करना चाहते हैं. किस्म का चुनाव के दौरान आप अपने क्षेत्र और के आधार पर तय कर सकते हैं.
सब्जी विज्ञान विशेषज्ञ डा शाही ने किसान तक से कहा कि सूरन की बुवाई के पहले खेत को कल्टीवेटर फिर रोटावेटर से भूरभूरा बना लें और खेत की तैयारी के इसके बाद दो-दो फीट की दूरी 30 सेंटीमीटर गहरा, लंबा और चौड़ा गड्ढा खोद लें. इस तरह एक एकड़ में 4 हजार गड्ढे खोदने पड़ते हैं. गड्डा खोदकर उसमें प्रति गड्ढे तीन किलो गोबर की सड़ी खाद, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 37.5 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 16 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डाल कर मिलाने के बाद आधा किलो का सूरन की रोपाई करें रोपाई के 85 से 90 दिन बाद सिंचाई करें तथा खरपतवार साफ करने के बाद 10 ग्राम यरिया प्रति पौध डालें,
किसान तक से बातचीत में डॉ बीपी शाही ने बताया कंद अगर छोटा हो तो सीधे बुआई करें और अगर कंदों का आकार 250 से 300 ग्राम की बीच हो तो टूकड़ों में काटकर बोना बेहतर होता है. एक एकड़ में सूरन लगभग 3 टन की जरूरत होती है. किसान चाहें तो इसको बागों के बीच के हिस्से में भी आसानी से उगा सकते हैं.अगर खेत में नमी की कमी रहे तो हल्की सिंचाई कर दें, जल जमाव नहीं होने दें. सूरन के साथ सह फसली खेती के लिए लोबिया या भिंडी की रोपाई कर लाभ ले सकते हैं. सूरन की फसल के लिए केवल तीन पानी चाहिए. जून के बाद पानी की जरूरत नहीं होती. सूरन का आकार बड़ा होने के लिए उचित देखभाल के साथ-साथ समय पर निराई गुड़ाई जरूर करें.
किसान तक से बातचीत में डॉ बीपी शाही ने बताया सूरन की तीन से 5 से 6 महीने में ओल के कंद तीन से चार किलो वजन के हो जाते हैं. अगर आप एक एकड़ में ओल की खेती कर रहे हैं तो आपको 200 क्विंटल तक उपज मिल जाएगी,जो बाजार में 3 से 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक जाएगी और 5-6 महीने की इस फसल से 4 -5 लाख रुपये की आमदनी हो जाएगी. एक एकड़ में सूरन की खेती करने पर 1 से डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है, जिसको कुल आमदनी में से घटाने के बाद भी आपको ढाई लाख से तीन लाथ का शुद्ध मुनाफ़ा हो जाता है.
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