Kharif Special: खेतों में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करें क‍िसान, जानें इससे जुड़ी पूरी जानकारी

Kharif Special: खेतों में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करें क‍िसान, जानें इससे जुड़ी पूरी जानकारी

मल्चिंग के प्रयोग से फसलों में नमी बनी रहती है. इसे लगाने से सिंचाई जरूरत कम हो जाती है. पौधों को ज़मीन से लगातार नमी मिलते रहने के कारण फ़सल की उपज में बढ़ोतरी और क्वालिटी भी बेहतर हो जाती है.दूसरी तरफ खरपतवार की समस्या से काफी हद तक निजात मिल जाती है.

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Kharif Special: खेतों में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करें क‍िसान, जानें इससे जुड़ी पूरी जानकारी क‍िसानों के ल‍िए फायदे का सौदा है मल्च‍िंग तकनीक-फोटो क‍िसान तक

कई जगहों पर हरे-भरे खेतों में चमकती पॉलीथीन द‍िखाई देती है. खेतों के बीच इस चमकती पॉलीथीन को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है और मन में ये सवाल आता है क‍ि भला खेतों में पॉलीथीन क्या काम है... इसका जवाब है खेतों में ये पॉलीथीन... मल्चिंग है. मल्चिंग तकनीक यानि पलवार तकनीक. खेती में ये बहुत ही पुरानी तकनीक है. कई सालों से खेतों में मल्चिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता रहा है. क‍िसान तक की इस सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में आज खेती में मल्‍च‍िंग तकनीक पर पूरी र‍िपोर्ट..  

असल में मल्च‍िंंग तकनीक फसलों में नमी बनाएं रखने के काम आती है. इसे लगाने से सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है. पौधों को जमीन से लगातार नमी मिलते रहने के कारण फसल की उपज में बढ़ोतरी और क्वालिटी भी बेहतर हो जाती है. दूसरी ओर खरपतवार की समस्या से काफी हद तक निजात मिल जाती है. 

खेती की आधुनिक तकनीक मल्चिंग 

कृषि विज्ञान केन्द्र पूसा समस्तीपुर के प्रमुख और सब्जी विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ अभिषेक प्रताप सिंह ने किसान तक से बातचीत में बताया कि खेत में लगे पोधों की जमीन को प्लास्टिक शीट से खास तरह से ढका जाता है और इस तकनीक को ही मल्चिंग कहा जाता है. उन्होंने कहा क‍ि पहले खेतों में फसल अवशेषों से ही मल्चिंग की जाती थी, जबकि अब कई रंग की पॉलीथीन शीट्स का प्रयोग होता है. मल्चिंग के लिए लगाई जाने वाली प्लास्टिक कई रंगों में बाजार में मिल जाती है. मल्चि‍ंग शीट, काले, पारदर्शी, पीले, चांदी, लाल आदि विभिन्न रंगों में उपलब्ध हैं. ज्यादातर काले या चांदी के रंग वाली प्लास्टिक शीट का प्रयोग मल्च‍िंग के रूप में किया जाता है. इस तकनीक से खेत से होने वाले वाष्पीकरण को रोका जाता है. इससे खेत में जमीन की नमी को बनाए रखने में मदद मिलती है. ये तकनीक खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है और खेत में फसलों को खरपतवार से होने वाले नुकसान से बचाती है.

सब्जियों की खेती में मल्चिंग का प्रयोग 

सब्जी विज्ञान व‍िभाग के विशेषज्ञ डॉ अभिषेक ने किसान तक से बातचीत में मल्च‍िंंग लगाने की जानकारी देते हुए बताया क‍ि जिस खेत में सब्जी वाली फसल लगानी है, उसकी पहले अच्छे से जुताई कर लें. फिर खाद-उर्वरक डालने के बाद, खेत में उठी हुई क्यारि‍यां बना लें. उनके ऊपर ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन बिछा लें. 25 से 30 माइक्रॉन प्लास्टिक मल्चि‍ंग शीट सब्जियों के लिए बेहतर रहती है, वहीं लम्बी अवधि वाली यानि एक से दो वर्ष वाली फसलों के लि‍ए 40 से 50 माइक्रॉन फ‍िल्म बेहतर मानी जाती है.

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इनका प्रयोग करने के ल‍िए मल्च‍िंग शीट को खेत में सही तरीके से बिछा दें. फिर शीट के दोनों किनारों को मिट्टी की परत से दबा दें. क्यारियों में पॉलीथीन लगाने के लिए आप ट्रैक्टर चालित मल्चर का प्रयोग कर सकते हैं. इसके बाद पौधों से पौधों की दूरी तय कर पॉलीथीन में छेद कर लें और फिर छेदों में बीज या नर्सरी से तैयार पौधों की रोपाई करें . 

फलदार पौधों में मल्चिंग कैसे करें ? 

फलदार पौधों के लिए मल्चिंग का उपयोग के बारे में किसान तक से बातचीत में डॉ अभिषेक ने कहा क‍ि फलदार पौधे की जहां तक छांव हों, वहां तक मल्चिंग करना चाहिए. इसके लिए पॉलीथीन मल्च की लम्बाई और चौड़ाई को बराबर करके कटिंग करें. उसके बाद पौधों के नीचे उग रही घास और खरपतवार को अच्छी तरह से उखाड़ कर सफाई कर लें. उसके बाद सिंचाई की पाइप को सही से सेट कर लें, फिर 100 माइक्रॉन की पॉलीथीन मल्च को हाथों से पौधे के तने के आसपास अच्छे से लगाएं. फिर उसके चारों कोनों को 6 से 8 इंच तक मिट्टी की परत से ढकें.

प्लास्टिक मल्चिंग करते समय सावधानी 

किसान तक से बातचीत में डॉ अभिषेक ने बताया क‍ि प्लास्टिक मल्च हमेशा सुबह या शाम के समय लगाएं. बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी के दौरान सभी जरूरी खाद एवं खाद मिलाकर खेत की जुताई कर देनी चाहिए. पॉलीथीन शीट्स को ज्यादा तान कर ना लगाएं. पॉलीथीन शीट्स में सिलवटों को हटाने के बाद ही मिट्टी चढ़ाएं. पॉलीथीन शीटस् में छेद ड्रिप पाइप लाइन को ध्यान में रखते हुए करें. छेद एक जैसे करें और शीट न फटे, इस बात का ध्यान रखें. मिट्टी चढ़ाने में दोनों साइड एक जैसी रखें. पॉलीथीन शीट्स को फटने से बचाएं, जिससे इसका उपयोग दूसरी बार भी हो सके. फलों की तुड़ाई के बाद, पॉलीथीन मल्च को छांव में निकाल कर रखें. फसलों से उत्पादन लेने के उपरान्त खेत से निकालकर सुरक्षित रखा जा सकता है.एक फसल की कटाई के बाद दूसरी फसल में उपयोग किया जा सकता है. प्लास्टिक पर पर लगे मिट्टी को साफ कर लेना चाहिए और फटी हुई मल्च को खेत से हटा लेना चाहिए. क्योंकि प्लास्टिक सड़ती नही है. 

प्लास्टिक मल्चिंग की लागत और लाभ 

किसान तक से बातचीत में डॉ अभिषेक ने कहा क‍ि मल्चिंग की लागत प्लास्टिक की क्वालिटी और लंबाई के हिसाब से कम-ज्यादा हो सकती है. क्योंकि ये अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग लंबाई-चौड़ाई और मोटाई की होती है. साथ ही प्लास्टिक मल्च का बाजार में मूल्य भी कम-ज्यादा होता रहता है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक प्रति एकड़ प्लास्टिक लगाने में लगभग 8 से 12 हजार रुपये की लागत आती है. मल्चिंग लगाने से अमरूद और संतरे की उपज में 40 फीसदी तक का इजाफा पाया गया है. वहीं सब्जियों में 30 से 40 फीसदी तक इजाफा पाया गया है 

प्लास्टिक मल्चिंग के ल‍िए सब्स‍िडी  

खेती को उन्नत बनाने और मल्चिंग तकनीक को बढावा देने के लिए, सरकार के बागवानी विभाग से इसके लिए सब्स‍िडी मिलती है. अलग अलग राज्यों में 50  से लेकर 70 फीसदी तक सब्स‍िडी दी जाती है. ये सब्स‍िडी पाने के लिए क‍िसानों को जिले के विकास खंड में वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी के पास आवेदन जमा करवाना पड़ेगा. इसके बाद लागत पर सब्स‍िडी मिल जाएगी.
 

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