जनवरी माह में किसानों के लिए सब्जी की खेती में अच्छे लाभ की संभावना है, खासकर अगर वे अगेती फसलें उगाने के लिए सही तकनीक का उपयोग करें. बैंगन, टमाटर, मिर्च, गोभी, खीरा, लौकी, करेले, छप्पन कद्दू, चिरचिरा, और ककड़ी जैसी आम उपभोग वाली सब्जियों की अगेती खेती के लिए मध्य फरवरी से लेकर फरवरी के आखिरी सप्ताह तक का समय बेहतर होता है. इस समय में सब्जियों की नर्सरी तैयार कर किसान बाजार में जल्दी और बेहतर दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं. मगर उत्तर भारत में दिसंबर और जनवरी में अधिक ठंड होती है, जिससे यदि किसान परंपरागत विधि से नर्सरी तैयार करने की कोशिश करते हैं, तो बीजों का जमाव ठीक से नहीं हो पाता है.
इसके कारण, अधिकतर किसान फरवरी के दूसरे पखवाड़े से नर्सरी डालते हैं या बीजों की बुवाई करते हैं. इस प्रक्रिया से सब्जी फसलें अप्रैल-मई में तैयार हो जाती हैं. अगर किसान जल्दी फसल उगाना चाहते हैं,तो जनवरी माह में लो-टनल पॉलीहाउस का उपयोग करके नर्सरी तैयार करना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है. इस तकनीक के माध्यम से कम लागत में बेहतर गुणवत्ता की नर्सरी तैयार की जा सकती है, जिससे कि बेहतर मुनाफा मिल सकता है.
लो-टनल पॉलीहाउस में नर्सरी तैयार करने के लिए, पहले एक मीटर चौड़ा और जरूरत के अनुसार लंबाई का बेड तैयार करना होता है. इसके बाद बीजों को आधे से 1 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है. फिर बांस की खपचियों या लोहे के सरियों से ढांचा तैयार कर, सफेद पारदर्शी पॉलीथीन से उसे ढंक दिया जाता है. इस टनल में नर्सरी पौध उगाई जाती है, जो धीरे-धीरे बढ़ती है. इस प्रक्रिया में पॉलीबैग्स का भी उपयोग किया जा सकता है, जिनमें मिट्टी और गोबर की खाद भरकर बीज बोए जाते हैं.
इस तकनीक से नर्सरी पौध तेजी से और स्वस्थ रूप से तैयार होती है, जिससे समय से पहले पौधों की रोपाई करके किसान जल्दी सब्जियां उगा सकते हैं और बाजार में उच्च दाम पर बेच सकते हैं. इस तकनीक की लागत बहुत कम होती है, जिससे किसान कम निवेश में अच्छे लाभ की उम्मीद कर सकते हैं. लो-टनल पॉलीहाउस के अंदर तापमान आदर्श रहता है, जिससे बीज का जमाव लगभग 100% होता है. इस विधि से पौधों पर कीटों और बीमारियों का असर कम होता है.
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नर्सरी में पौधों का विकास अच्छे से हो, इसके लिए फर्टीगेशन यानी NPK घोल का उपयोग किया जाता है. NPK का 50 से 100 PPM घोल तैयार करके पौधों को दिया जाता है. इसके अलावा, समय-समय पर सिंचाई और लो-टनल की सफाई भी जरूरी है, ताकि पौधों को पर्याप्त रौशनी और हवा मिल सके.
लो-टनल पॉलीहाउस की स्थापना की लागत अन्य पॉलीहाउस विधियों के मुकाबले कम होती है. इस तकनीक का मुख्य आकर्षण यह है कि इसमें कम लागत में अच्छी गुणवत्ता वाली नर्सरी तैयार की जा सकती है. जीआई पाइप या बांस से बने वाक-इन-टनल के निर्माण में 200 से 250 रुपए प्रति वर्गमीटर लागत आती है. लो-टनल (निचली सुरंग) के निर्माण की लागत लगभग 30 रुपये प्रति वर्ग मीटर होती है. कीट-अवरोधी-जाल या शेडनेट लगाकर इनको और भी उपयोगी तथा प्रभावी बनाया जा सकता है. इसमे उत्तर प्रदेश सरकार उद्यान विभाग सब्सिडी भी दे रहा है.
लो-टनल पॉलीहाउस तकनीक से किसान अपनी सब्जियों की नर्सरी सफलतापूर्वक तैयार कर सकते हैं. इस विधि का उपयोग करने से न केवल समय की बचत होती है, बल्कि बीजों का जमाव और पौधों का विकास भी बेहतर होता है. इसके अलावा, किसान समय से पहले अपनी फसल को बाजार में बेचकर अधिक लाभ कमा सकते हैं. इस तकनीक के जरिए किसान अपनी खेती को एक नई दिशा दे सकते हैं और सब्जियों की नर्सरी उगाकर एक नया व्यापार भी शुरू कर सकते हैं.
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