अलग-अलग कृषि जिंसों के रियलटाइम उत्पादन का अनुमान लगाने के लिए, सरकार अगले खरीफ सीजन (2025-26) तक सभी राज्यों को डिजिटल फसल सर्वेक्षण (DCS) के तहत कवर करने का लक्ष्य बना रही है. यह आगे चलकर मैनुअल पटवारी-गिरदावरी प्रणाली की जगह ले लेगा और मोबाइल इंटरफेस के माध्यम से सीधे खेत से रियलटाइम में फसल की जानकारी जुटाकर उपज अनुमान की जानकारी देगा. इसमें मोबाइल के जरिये खेतों से सीधे फसलों की जानकारी जुटाई जाएगी जिसके लिए खेतों में जाकर गिरदावरी करने की जरूरत नहीं होगी.
डिजिटल फसल सर्वेक्षण से उपज का सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा क्योंकि अभी अलग-अलग अनुमान मिलने से कीमतों में पर असर देखा जाता है. अगर किसी फसल का अनुमान कम हो जाए तो उसकी कीमतें बढ़ जाती हैं. इस तरह के बाजार उतार-चढ़ाव से डिजिटल फसल सर्वेक्षण से मदद मिलेगी. इस सर्वेक्षण में टेक्नोलॉजी की मदद ली जाएगी जिसमें रिमोट सेंसिंग, जियोस्पेसियल एनालिसिस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से फसलों का सटीक उत्पादन डेटा हासिल किया जा सकेगा.
डीसीएस के तहत अब तक चालू फसल वर्ष (2024-25) के खरीफ और रबी दोनों सीजन में 15 राज्यों के 485 जिलों में सर्वेक्षण शुरू किया गया है. सर्वेक्षण में अलग-अलग कृषि और कृषि-जलवायु क्षेत्रों से डेटा जुटाने के साथ लगभग 3 लाख गांवों को शामिल किया गया है. इस सर्वेक्षण के तहत खरीफ सीजन के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, असम और राजस्थान जैसे राज्यों ने 90 परसेंट से अधिक सर्वे का काम पूरा कर लिया है.
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अधिकारियों के अनुसार, सर्वेक्षण के कारण 21 जिलों में अधिक कृषि क्षेत्रों के बारे में रिपोर्ट की गई है. यानी ऐसे जिलों में कृषि क्षेत्रों के बारे में अधिक सटीक डेटा मिले हैं. अधिकारी ने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य है कि सर्वेक्षण हर राज्य के कम से कम एक जिले तक पहुंचे, जिससे राष्ट्रीय कृषि डेटा के लिए सही और सटीक जानकारी मिल सके.
सूत्रों ने 'FE' को बताया कि पटवारी-गिरदावरी सिस्टम के तहत राज्य के राजस्व अधिकारी फसल और लैंड रिकॉर्ड पर डेटा मैन्युअल रूप से जुटाते हैं, जिसमें गलतियां होने की संभावना होती है, जिससे फसल क्षेत्र और उपज की जानकारी के अनुमान में गड़बड़ आती है. एक अधिकारी ने कहा, "इन मैनुअल सर्वेक्षणों में कागज-आधारित विधियों का उपयोग किया जाता था, जो प्रक्रिया में धीमी थीं और अक्सर निर्णय लेने में देरी का कारण बनती थीं."
यह सर्वेक्षण कृषि मंत्रालय के 2,817 करोड़ रुपये के डिजिटल कृषि मिशन (DPI) के तहत शुरू किए गए अलग-अलग डिजिटल एप्लिकेशन के माध्यम से किया जा रहा है. एक आधिकारिक नोट के अनुसार, फसल सर्वेक्षण से मिले डेटा सरकारी एजेंसियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद को लागू करने, फसल बीमा और क्रेडिट कार्ड से जुड़े फसल लोन देने और खादों के सही इस्तेमाल के लिए सिस्टम बनाने जैसे अन्य उपायों में सहायता करेगा.
केंद्र सरकार की ओर से शुरू किए गए डीपीआई प्रोजेक्ट में फार्मर रजिस्ट्री, गांवों का नक्शा और बोई गई फसल की रजिस्ट्री एक साथ शामिल की जा रही है. इससे किसानों को केंद्र सरकार की योजनाओं से सीधा जोड़ा जाएगा. इसके अलावा किसानों को पशुपालन, मछली पालन, मिट्टी की सेहत और उन्हें मिलने वाली सरकारी सुविधाओं के बारे में जानकारी मिलेगी. अभी तक 4.8 करोड़ से अधिक किसानों को भूमि रिकॉर्ड से जुड़ी डिजिटल आईडी मिली है.
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एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, किसानों का एक डेटाबेस तैयार करने के लिए, जो उनके भूमि रिकॉर्ड से जुड़ा हुआ है, कृषि मंत्रालय ने राज्यों के सहयोग से अब तक 12 राज्यों में 4.80 करोड़ से अधिक किसानों को डिजिटल आईडी जारी की है. ज्यादातर किसानों की फार्मर आईडी उत्तर प्रदेश (120 लाख), महाराष्ट्र (83 लाख), मध्य प्रदेश (73 लाख), राजस्थान (67 लाख), गुजरात (41 लाख), आंध्र प्रदेश (40 लाख) और तमिलनाडु (25 लाख) राज्यों में बनाई गई हैं. असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार अन्य राज्य हैं जिन्होंने किसान आईडी देने का कार्यक्रम शुरू किया है.
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