किसानों को नहीं भा रही DSR विधि से धान की खेती, खरपतवार प्रबंधन बना सबसे बड़ी चुनौती 

किसानों को नहीं भा रही DSR विधि से धान की खेती, खरपतवार प्रबंधन बना सबसे बड़ी चुनौती 

डायरेक्ट सीडेड राइस यानी डीएसआर विधि सीधे धान के बीज की सीधी बुवाई का तरीका है. कम सिंचाई जरूरत समेत कई तरह दूसरे फायदों को देखते हुए बीते कुछ समय से सरकारों ने इस विधि से खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया है. तमाम प्रयासों के बावजूद उम्मीद के मुताबिक इस विधि से खेती का रकबा नहीं बढ़ पाया है. आइये समझते हैं क्या है कारण.

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किसानों को नहीं भा रही DSR विधि से धान की खेती, खरपतवार प्रबंधन बना सबसे बड़ी चुनौती कई फायदों के चलते डीएसआर विधि से धान की खेती को सरकारों ने प्रमोट किया है.

केंद्र और राज्य सरकारें खेती के विकास के लिए आधुनिक तरीके से फसल उगाने को बढ़ावा दे रही हैं. इसी का हिस्सा है डीएसआर विधि से धान की खेती करना. इसके कई फायदे होने के साथ ही उपज अधिक होने का भी दावा किए जाने के बाद भी किसान इसकी ओर आकर्षित होते नहीं दिख रहे हैं. पंजाब और हरियाणा में उम्मीद के मुताबिक खरीफ सीजन में डीएसआर विधि से धान की बुवाई नहीं की जा सकी है. 

क्या है डीएसआर विधि 

डायरेक्ट सीडेड राइस यानी डीएसआर धान की खेती का तरीका है जो कई सालों से प्रचलन में है. बीते कुछ वर्षों से सरकार ने इसके फायदों को लेकर किसानों को जागरूक किया है. डीएसआर विधि के जरिए बीज को सीधे मिट्टी में या तो मैन्युअल तरीके से या मशीनों के माध्यम से लगाया जाता है. इस प्रकार पहले नर्सरी में पौधे उगाने और फिर उन्हें खेतों में रोपने की जरूरत खत्म हो जाती है. 

डीएसआर विधि से खेती के फायदे 

कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि डीएसआर विधि से धान की खेती के कई फायदे हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख है इससे पानी की 15 फीसदी से 30 फीसदी तक की बचत होना. यानी यह विधि गिरते जलस्तर वाले राज्यों के लिए बेहतर है. डीएसआर विधि से उगाए गए चावल को पकने में कम समय लगता है. इसके अलावा डीएसआर विधि से खेती करने वाले किसान कार्बन क्रेडिट बेचकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं. 

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पारंपरिक धान रोपाई विधि में 1 किलोग्राम चावल उगाने के लिए 3,600 लीटर से 4,125 लीटर पानी की जरूरत होती है. जबकि, डीएसआर विधि से खेती करने पर करीब 1080 लीटर पानी की जरूत होगी. पंजाब और हरियाणा में भूजल स्तर में तेजी से गिरावट के साथ डीएसआर जैसी विधियों को समाधान के रूप में प्रचारित किया गया है. 

पंजाब और हरियाणा में DSR विधि से खेती का हाल 

बीते कुछ सालों में पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख धान उत्पादक उत्तरी राज्यों में गिरते जल स्तर और असमान बारिश को देखते हुए डीएसआर विधि से खेती पर फोकस बढ़ा है. पंजाब राज्य में डीएसआर विधि से बुवाई के ताजा आंकड़ों के अनुसार खेती का रकबा 2023 के खरीफ सीजन में 1.72 लाख एकड़ से बढ़कर 2.52 लाख एकड़ से अधिक हो गया है. हालांकि, यह उम्मीद से कम है. क्योंकि, अमृतसर समेत कुछ गिने चुने जिलों के किसानों ने ही इस विधि को अपनाया है. हरियाणा की बात करें तो हाल ही में नायब सैनी सरकार ने डीएसआर विधि को अपनाने वाले किसानों के लिए 4,000 प्रति एकड़ के हिसाब से प्रोत्साहन देने की घोषणा की है. इसके बाद भी उम्मीद के मुताबिक डीएसआर विधि से खेती का रकबा नहीं बढ़ सका है. 

कई सारे फायदों के बावजूद किसानों के बीच डीएसआर विधि को अपनाने पर इच्छा कम दिखती है. रिपोर्ट बताती है कि पंजाब में कुल 30 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है. लेकिन, बीते कुछ वर्षों को देखें तो डीएसआर विधि के तहत कवर किया गया अधिकतम क्षेत्र 5 लाख या 7 लाख हेक्टेयर से अधिक नहीं रहा है. इसी तरह हरियाणा में कुल 14-15 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है. डीएसआर विधि से मुश्किल से कुछ लाख हेक्टेयर पर ही बुवाई की गई है. 

डीएसआर विधि अपनाने में खरपतवार बड़ी चुनौती  

नॉन प्रॉफिट इंस्टीट्यूट नडज ने रोपाई विधि और डीएसआर विधि से खेती करने के फायदे और नुकसान पर स्टडी की है, जिसमें पाया गया कि 47 फीसदी से अधिक छोटे और सीमांत किसानों को डीएसआर विधि से खेती पर अधिक उपज मिली. वहीं, सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खरपतवार प्रबंधन सामने आया. डीएसआर विधि से खेती करने वाले किसानों में लगभग 89 फीसदी ने खरपतवार की वजह से उपज को नुकसान पहुंचने की बात कही. पानी की कमी वाले इलाकों में खेती करने वाले किसानों की शिकायत है कि डीएसआर विधि से उगाए गए धान के लिए खरपतवार अधिक गंभीर बन गई, जिससे उनकी उपज में गिरावट आई. 

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