खेती-किसानी में मशीनीकरण तो तेजी से फैल रहा है, लेकिन भारत में कुछ ऐसे भी किसान हैं जो मशीनों के महंगे होने के कारण उसे खरीद नहीं पाते या उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास कहने के लिए तो एजुकेशनल डिग्री नहीं होती है, लेकिन वह कुछ ऐसा काम कर जाते हैं जो बड़ी-बड़ी डिग्री वाले नहीं कर पाते हैं. आज हम आपको असम के एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने आम किसानों के लिए एक मशीन बना दी. ये मशीन एक देसी थ्रेसर है, जो चावल को बिना तोड़े भूसी को अलग-अलग कर देती है. इससे किसानों को पैसे के साथ-साथ मजदूरों और समय की बचत होती है.
यह कहानी असम के मोरियाबारी में रहने वाले मोहम्मद फजलुल हक की है जो एक मैकेनिक हैं. इन्होंने धान की थ्रेशर मशीन विकसित की है, उन्होंने ऐसी मशीन बनाई है जो धान की भूसी को टुकड़े-टुकड़े करके अलग नहीं करती बल्कि पूरे भूसी को ही धान के दानों को अलग कर देती है. इस थ्रेसर मशीन की एक और खासियत ये भी है कि यह सिर्फ सुखे धान से ही भूसी को अलग नहीं करती बल्कि गिले धान से भी उतने ही अच्छे से भूसी को अलग करती है.
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फजलुल के मुताबिक उनके मशीन का इस्तेमाल करने से धान की भूसी साबुत में बच जाती है. इससे भूसी का पोषण बरकरार रहता है जिस वजह से उस भूसी को पशुओं के चारे के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है या किसान उसे बेच भी देते हैं. वहीं उन्होंने बताया कि इस मशीन को इलेक्ट्रिक मोटर या ट्रैक्टर से जोड़कर आसानी से चलाया जा सकता है. ये मशीन प्रति घंटे तीन सौ किलो धान की सफाई कर सकती है.
कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये उपकरण इस इलाके में देसी रूप में तैयार किया गया पहली थ्रेसर मशीन है. इस इलाके के धान उत्पादक किसानों के लिए यह किसी तोहफे से कम नहीं है. वहीं फजलुल ने बताया कि वे अभी तक लगभग 75 थ्रेसर मशीन बना कर बेच चुके हैं. किसानों के बीच इस मशीन की बहुत मांग है क्योंकि इसकी कीमत 35 हजार रुपये हैं.
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