किसान ने ट्रैक्टर को स्प्रे मशीन में बदला, 15 मिनट में 1 एकड़ खेत में हो रहा छिड़काव, किसानों का 80 फीसदी खर्च बच रहा 

किसान ने ट्रैक्टर को स्प्रे मशीन में बदला, 15 मिनट में 1 एकड़ खेत में हो रहा छिड़काव, किसानों का 80 फीसदी खर्च बच रहा 

अखिलेश रंजन ने एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है और उन्होंने अपने ट्रैक्टर को जुगाड़ का इस्तेमाल करते हुए छिड़काव करने वाली मशीन का रूप दे दिया है. इस जुगाड़ मशीन की मदद से किसानों को फसलों में दवा, कीटनाशक छिड़काव में लगने वाला पूरे दिन का समय घटकर 15 मिनट हो गया है और खर्च में 80 फीसदी तक की बचत हो रही है.

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किसान ने ट्रैक्टर को स्प्रे मशीन में बदला, 15 मिनट में 1 एकड़ खेत में छिड़काव, किसानों का 80 फीसदी खर्च बच रहा बेगूसराय के किसान ने ट्रैक्टर को स्प्रे मशीन में बदल दिया है.

बिहार के किसान न केवल प्रगतिशील खेती करते हैं, बल्कि समय-समय पर कुछ ऐसा प्रयोग करते रहते हैं जो नजीर बन जाता है. ऐसा ही एक बार फिर कमाल किया है बेगूसराय जिले के चेरिया बरियारपुर के मेहदा शाहपुर निवासी किसान अखिलेश रंजन ने. अखिलेश रंजन ने अपने ट्रैक्टर को जुगाड़ से छिड़काव करने वाली मशीन बना दिया. इस जुगाड़ ट्रैक्टर स्प्रे मशीन से दवाओं और कीटनाशक का छिड़काव करने में किसानों को लागत में न केवल 80 फीसदी से अधिक की बचत हो रही, बल्कि पूरा-पूरा दिन लगने वाला समय भी घटकर 15 मिनट हो गया है. 

अखिलेश रंजन एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर खेती करने के साथ-साथ प्राइवेट कंपनी में खेती से जुड़े काम करते हैं. खेती और किसानों के बीच भ्रमण के दौरान उन्हें लगा कि किसानों को अपनी फसल की रक्षा करने के लिए कीटनाशक दवा का छिड़काव करने में भी काफी परेशानी होती है. इसके बाद उन्होंने यूट्यूब और गूगल पर सर्च करना शुरू किया,  जिसमें उन्हें जापान जैसे विकसित देशों में खेत में उपयोग होने वाला ट्रैक्टर नजर आया. इस ट्रैक्टर की मदद से किसान घंटों नहीं, बल्कि मिनटों में अपने खेत में कीटनाशक दवा का स्प्रे कर लेते हैं. 

4 लाख के खर्च में ट्रैक्टर को स्प्रे मशीन में बदला 

काफी स्टडी करने पर अखिलेश ने पाया कि न केवल जापान ही नहीं बल्कि भारत में भी पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है. यह आइडिया आते ही उन्होंने ट्रैक्टर में सेट होने वाले पाइप, टंकी और मशीन का जुगाड़ लगाना शुरू किया. अखिलेश ने बताया कि उनके पास अपना खुद का ट्रैक्टर था. इसके बाद उन्होंने सबसे पहले करीब 3 लाख रुपया खर्च कर विदेश से पाइप और टंकी सहित अन्य मशीनें मंगवाईं. इसके बाद ट्रैक्टर में वह मशीन लगाने की शुरूआत की, लेकिन ट्रैक्टर के मोटे पहिये के खेत में चलने से फसल नुकसान को बचाना बड़ी चुनौती बन गई है. अखिलेश ने इसका जुगाड़ निकाला और स्थानीय ट्रैक्टर मिस्त्री से बात की और पहले के समय में तांगा में लगने वाले पहिये के डिजाइन का लोहे का मजबूत चक्का (पहिया ) बनवाया. मिस्त्री से ट्रैक्टर के चक्के को खुलवाकर तांगा स्टाइल वाले बड़े चक्के फिट करवा लिए. करीब 4 लाख रुपये खर्च कर अखिलेश की यह जुगाड़ स्प्रे मशीन तैयार हो गई.

कई जिलों के किसानों के बीच डिमांड बढ़ी 

जुगाड़ स्प्रे मशीन का सबसे पहले उन्होंने खुद के ही खेत में इस्तेमाल किया तो एक बार में ही 40 फीट की चौड़ाई में स्प्रे हो गया. मात्र 15 से 20 मिनट में उनके 1 एकड़ खेत में कीटनाशक दवा का छिड़काव हो गया. उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से जब किसानों को यह जानकारी दी तो उनके ट्रैक्टर से स्प्रे करने की डिमांड काफी बढ़ गई. अभी न सिर्फ बेगूसराय, खगड़िया और समस्तीपुर, बल्कि दूर-दूर तक अखिलेश के इस जुगाड़ ट्रैक्टर की डिमांड हो रही है. जुगाड़ स्प्रे मशीन की सबसे अधिक डिमांड मोकामा टाल में है. जहां हजारों एकड़ में दलहन की खेती की जाती है. टाल में पानी की समस्या, ऊपर से एक-एक किसानों के सैकड़ों एकड़ में चना और मसूर की खेती है. एक एकड़ की सिंचाई करने में किसानों को तीन से चार मजदूर लगते थे, पूरे दिन का समय लगता था और 1600 से 2000 रुपए खर्च हो जाते थे. लेकिन, अखिलेश का ट्रैक्टर स्प्रे जुगाड़ पहुंचा तो वहां किसानों के एक-एक एकड़ खेत में 15 से 20 मिनट में ही छिड़काव हो जाती है. 

किसान अखिलेश रंजन और फसल में स्प्रे करने वाला उनका ट्रैक्टर.

एक दिन 100 एकड़ खेती में हो रहा स्प्रे 

पानी भी पारंपरिक स्प्रे मशीन की तुलना में आधा से कम लगता है. बड़ी संख्या में किसान इसका फायदा उठा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह जुगाड़ मशीन हर दिन 100 एकड़ से अधिक में स्प्रे कर रही है. उन्होंने अपने गांव में ही टीम के सहयोग से इस मशीन को असेंबल किया है. असेंबल करने में 10 से 15 दिन का समय लगा. इसे लाने का आईडिया हमें किसानों के बीच से ही मिला. किसानों के खेत में स्प्रे करने की जो समस्या है, उस समस्या का समाधान किया जाए. आज यह मशीन वरदान बन रही है. क्योंकि इससे कम समय में ज्यादा से ज्यादा खेतों का स्प्रे किया जा रहा है. किसानों को जो मजदूरी लगभग 70 से 80 तक बच रही है. (रिपोर्ट सौरभ कुमार)

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