रविवार को कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जीनोए एडिटेड धान की दो किस्में लॉन्च की हैं. कृषि मंत्री ने डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस-1 को देश को समर्पित किया है. लेकिन अब एक्टिविस्ट्स लेकर सिविल सोसायटी के कुछ लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है. उन्होंने इन किस्मों को असुरक्षित बताते हुए सरकार से इसे वापस लेने की मांग की है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों की तरफ से विकसित की गई इन दोनों किस्मों में 30 फीसदी ज्यादा उपज का दावा किया गया है.
कोऑलिएशन फॉर जीएम-फ्री इंडिया, जो एक सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन है, उसकी तरफ से इन दोनों किस्मों का विरोध किया गया है. संगठन ने मांग की है कि केंद्र की तरफ से लॉन्च की गई दोनों जीनोम-एडिटेड चावल की किस्मों को वापस लिया जाए. यह संगठन जीनोम एडिटेड फसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ता है. संगठन ने पांच मई यानी सोमवार को एक बयान जारी किया. इस बयान में आरोप लगाया गया है कि इन बीजों में मनुष्यों को नुकसान पहुंचाने के अलावा पर्यावरण को भी अपूरणीय क्षति पहुंचाने की क्षमता है.
कोऑलिएशन ने इन किस्मों को अवैध करार दे दिया है. उसका कहना है कि केंद्र जानता है कि अगर जीनोम-एडिटेड चावल की किस्मों को रेगुलेटरी टेस्टिंग पर परखा जाए तो सुरक्षा की कमी खुद ही सामने आ जाएगी. इसलिए देश में साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिअस 1 और साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिअस 2 (एसडीएन-1 और एसडीएन-2) जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी को रेगुलेशन से फ्री कर दिया गया है.
संगठन की मानें तो यह चौंकाने वाला है कि भारत सरकार कॉर्पोरेट लॉबी के दबाव में गैरकानूनी काम कर रही है. साइंस लिट्रेचर में जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी की सुरक्षा की कमी की तरफ इशारा भी किया गया है. संगठन के मुताबिक बीजों को अवैज्ञानिक तर्क के आधार पर और बिना किसी सिक्योरिटी टेस्टिंग के उच्च उपज/सूखा प्रतिरोध जैसे कवर के साथ लॉन्च कर दिया जा रहा है. संगठन ने कहा, 'हम इसका विरोध करते हैं और सरकार को चेतावनी देते हैं कि इसके खिलाफ कड़ा प्रतिरोध किया जाएगा.
संगठन की मानें तो जीन-एडिटेड चावल की दोनों किस्मों को विकसित करने के लिए अपनाई गई सटीक प्रक्रिया के बारे में सार्वजनिक जानकारी का अभाव है. इन फसलों को जरूरी फ्री ट्रायल्स के बिना जारी नहीं किया जाना चाहिए और इन्हें सार्वजनिक तौर पर जांच से गुजरना चाहिए.
वहीं आईसीएआर की तरफ से इस विरोध को खारिज कर दिया गया है. आईसीएआर के सदस्य वेणुगोपाल बदरवाड़ा ने कहा कि खेती के लिए समाधान की तुलना में 'सुर्खियों के लिए विज्ञान' को प्राथमिकता देने की आदत को बयां करती है जो कि चिंताजनक है. बदरवाड़ा ने कहा है कि यह घोषणा बेहद चिंताजनक है क्योंकि जलवायु के लिए कोई भी प्रतिकूलता साबित नहीं हुई है. उनका कहना है कि सूखे, लवणता या गर्मी के तनाव के लिए लचीलापन सिर्फ कम से कम पांच से सात साल की कठोर टेस्टिंग के जरिये से ही प्रमाणित किया जा सकता है.
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