किसान बीज बोने से फसल काटने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए. बल्कि उसे अपनी फसल बेचने या निर्यात करने वाला भी बनना होगा. तभी किसान की तरक्की होगी. इसके लिए किसान मेले, ट्रेनिंग और खेतों में जाकर लाइव सेशंस भी किए जाते हैं. ये सब किया जाता है जोधपुर स्थित, साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर में. किसान तक ने सेंटर के संस्थापक भागीरथ चौधरी और यहां बतौर सलाहकार काम कर रहे सीनियर कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी कुमार से बातचीत की.
डॉ. डी कुमार जोधपुर में ही काज़री में बतौर कृषि वैज्ञानिक काम करते हुए रिटायर्ड हुए हैं.
डॉ. कुमार किसान तक को बताते हैं, “हम कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए काम करते हैं. किसानों को खेती में आने वाली समस्याओं पर शोध कर उनके स्थाई समाधान पर काम करते हैं. साथ ही हम जैविक और इंट्रीग्रेडेट पेस्ट मैंनेजमेंट (आईपीएम) वाली फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर देने की बात करते हैं. इनमें मिलेट्स के साथ-साथ व्यावसायिक फसलें भी प्राथमिकता में हैं. जैसे मिर्च, कपास, जीरा, ईसबगोल जैसी फसलें हैं. ये सेंटर इन फसलों के उत्पादन के साथ-साथ इनके उत्पाद बनाकर विदेशों में बेचने की प्रक्रिया में किसानों की मदद करता है. ”
सेंटर के संस्थापक भागीरथ चौधरी किसान तक को बताते हैं, “फसलों का व्यावसायिकरण होने से किसानों की जेब में सीधा पैसा आएगा. इससे उनकी आय बढ़ेगी. इसी उद्देश्य के साथ हमारा सेंटर काम कर रहा है. किसानों को निर्यातक बनाने के लिए हमने राजस्थान, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसानों के समूह बनाए हैं. हम इन राज्यों में किसानों के पास जाते हैं और उन्हें ट्रेनिंग, वर्कशॉप, किसान मेलों के माध्यम से इस बारे में जागरूक करते हैं.
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उदाहरण के लिए गुजरात में कपास की खेती बड़ी मात्रा में होती है. यहां के किसान फसल में लगने वाली गुलाबी सुंडी बीमारी से काफी परेशान हैं. इसका इलाज भी कहीं नहीं है. हमारे सेंटर ने इस पर रिसर्च की और जापान की एक टेक्नोलॉजी से बीमारी पर काबू पा लिया. इस प्रोजेक्ट का नाम बंधन रखा गया. इसमें एक ट्यूब में कैमिकल भरा होता है. इसे 25 पौधों के बीच में बांधा जाता है. इस कैमिकल से ये कीट मैटिंग नहीं कर पाते और कपास रोगमुक्त हो जाता है.
प्रोजेक्ट बंधन देश के 16 जिलों में शुरू किया गया. कुल 19 क्लस्टर बनाए गए. प्रति क्लस्टर करीब 65 एकड़ का था. इस तकनीक से गुलाबी सुंडी रोग में 90 प्रतिशत तक कमी पाई गई है.
डॉ. डी कुमार कहते हैं कि सेंटर अच्छी गुणवत्ता के बीज खरीदकर किसानों को देते हैं. हमारी टीम एक फोन कॉल पर किसान के पास पहुंच जाती है. साथ ही हम फसलों की थ्रेसिंग करने, नमी का सही प्रतिशत बताने, भंडारण करने, रोग ना लगे इसके लिए दवाई भी किसानों तक पहुंचाते हैं. साथ ही सेंटर किसानों को फसलों के निर्यात के लिए अलग-अलग देशों के नियम और मानकों की भी जानकारी दी जाती है. किसानों तक पहुंचने के लिए हमने एफपीओ भी बनाया हुआ है. करीब 10 एफपीओ से हमारे संबंध हैं. एक एफपीओ में करीब एक हजार किसान जुड़े होते हैं.
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साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक भागीरथ चौधरी किसान तक को बताते हैं, “देश में किसान हर रोज नई टेक्नोलॉजी अपना रहा है, लेकिन उसे इस काम में कई तकलीफें भी आ रही हैं. इन मुश्किलों में किसानों की मदद के लिए 2015 में इस सेंटर की स्थापना की गई. पिछले सात-आठ साल में हमने बड़े स्तर पर कई प्रोजेक्ट किए हैं. जिनमें महाराष्ट्र में मेज यील्ड मैक्समाइजेशन, वॉर ऑन पिंक बॉलवॉर्म, प्रोजेक्ट सफल और बायोटेक किसान हब फॉर वेस्टर्न ड्राय रीजन प्रमुख हैं. इन प्रोजेक्ट के जरिए फसलों में लगने वाले रोगों पर काबू पाया गया.”
चौधरी जोड़ते हैं कि बायोटेक किसान हब फॉर वेस्टर्न ड्राय रीजन प्रोजेक्ट का उद्देश्य मसाला फसलों का उत्पादन बढ़ाने, किसानों को जैविक खेती की ओर ले जाना है. पिछले तीन साल में हमने सेंटर की ओर से खेतों में 500 से अधिक प्रदर्शनी लगाई हैं. किसानों को बायो किट्स बांटी गईं. साथ ही खेत में ही किसानों की समस्याओं का समाधान किया गया. इसी तरह मक्का में लगने वाली बीमारियों पर भी सेंटर ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में काम किया. हमारे अब तक सारे प्रोजेक्ट काफी सफल रहे हैं और किसानों को फायदा देने वाले साबित हुए हैं.
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