अगर हम दिल्ली की बात करें तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या ख्याल आता है? जो लोग दिल्ली में नहीं रह रहे हैं वो इंडिया गेट, कुतुब मीनार या चांदनी चौक का जिक्र कर सकते हैं लेकिन जो लोग पिछले कुछ समय से यहां रह रहे हैं उनके लिए दिल्ली का प्रदूषण विश्व प्रसिद्ध हो चुका है. दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण दिल्ली के लोगों के लिए एक बुरे साये की तरह बन गया है जो हटने का नाम नहीं ले रहा है. इतना ही नहीं, सरकार से लेकर प्रशासन तक इस बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए कई प्रयास कर चुके हैं और कई प्रयास किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश कराई जाने वाली है. क्या होती है कृत्रिम बारिश और दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए ये क्यों जरूरी है, आइए जानते हैं.
दिल्ली की लगातार बढ़ती वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक और अनोखा कदम उठाया जा रहा है. पहली बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) कराई जाएगी. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रयोग का उद्देश्य है- दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करना. इस योजना की घोषणा पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने की है. अगर मौसम ने साथ दिया, तो यह बारिश 4 से 11 जुलाई 2025 के बीच कराई जाएगी. इसके लिए IIT कानपुर ने उड़ान योजना बनाकर भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) पुणे को भेज दी है. साथ ही, DGCA को एक वैकल्पिक तारीखों की योजना भी भेजी गई है, ताकि खराब मौसम में बाद में भी यह परीक्षण किया जा सके.
क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें रसायनों की मदद से बादलों से बारिश कराई जाती है. इसमें सिल्वर आयोडाइड (AgI), आयोडीन नमक और रॉक सॉल्ट जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है. ये पदार्थ बादलों में जाकर पानी की बूंदों के बनने की प्रक्रिया को तेज करते हैं, जिससे बारिश होती है.
इस परियोजना को IIT कानपुर द्वारा विकसित और संचालित किया जा रहा है. परियोजना का नाम है – दिल्ली एनसीआर प्रदूषण न्यूनीकरण के विकल्प के रूप में क्लाउड सीडिंग की प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और मूल्यांकन "Technology Demonstration and Evaluation of Cloud Seeding as an Alternative for Delhi NCR Pollution Mitigation".
IIT कानपुर ने एक विशेष मिश्रण तैयार किया है जिसमें सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स, आयोडीन नमक और रॉक सॉल्ट शामिल हैं. यह मिश्रण बारिश लाने के लिए बादलों में छिड़का जाएगा.
इसके लिए खासतौर पर तैयार किए गए Cessna विमान का इस्तेमाल किया जाएगा. हर उड़ान लगभग 90 मिनट चलेगी और लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करेगी, खासकर उत्तर-पश्चिमी और बाहरी दिल्ली में.
कम सुरक्षा वाले हवाई क्षेत्रों में कम से कम 5 परीक्षण उड़ानें की जाएंगी. पहले IIT कानपुर ने अपने विमान से एक मिस्ट-स्प्रिंकलर सिस्टम के जरिए इस तकनीक का सफल परीक्षण किया है.
निम्बोस्ट्रेटस बादल इस प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं. ये बादल आमतौर पर 500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर बनते हैं और इनसे अच्छी बारिश कराई जा सकती है.
IIT कानपुर और दुनिया भर के अध्ययनों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग से बारिश कराने की सफलता दर लगभग 60-70% मानी जाती है. अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो यह दिल्ली जैसे शहरों के लिए प्रदूषण से लड़ने में एक बड़ा हथियार बन सकता है.
पर्यावरण मंत्री सिरसा ने कहा, "हमारा लक्ष्य है दिल्लीवासियों को साफ हवा देना, जो उनका सबसे मूलभूत अधिकार है." मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में यह कदम पहली बार दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा उठाया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा, "हम हर संभव उपायों की तलाश कर रहे हैं और कृत्रिम वर्षा एक साहसिक प्रयास है. हमें उम्मीद है कि इससे वास्तविक बदलाव आएगा."
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