31 मार्च यानी रविवार से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तापमान बढ़ने वाला है. यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेरठ में एक रैली के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए लोकसभा अभियान की शुरुआत कर देंगे. खबरें हैं कि रैली के दौरान वह राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ मंच साझा करेंगे. रालोद हाल ही में उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए गठबंधन में शामिल हुई है. बीजेपी ने लोकप्रिय टीवी श्रृंखला रामायण में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल को मेरठ लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. 19 अप्रैल से जहां लोकसभा चुनावों का आगाज होना है तो वहीं 4 जून को इसके नतीजे आएंगे.
गोविल ने तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का स्थान लिया है जो साल 2004 से मेरठ सीट पर काबिज हैं. माना जा रहा है कि इस दौरान राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के मुखिया जयंत चौधरी भी पीएम मोदी के साथ मंच पर नजर आ सकते हैं. बीजेपी ने टीवी सीरियल 'रामायण' के राम अरुण गोविल को मेरठ सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. 'रामायण' के प्रसारण के बाद अरुण गोविल पूरे देश में मशहूर हो गए थे. आलम ये था कि उन्हें लोग राम के रूप में उनकी तस्वीर अपने घर में रखकर पूजने लगे. अरुण गोविल का जन्म मेरठ जिले में 12 जनवरी 1958 को हुआ था, लेकिन उनका बचपन शाहजहांपुर में बीता था.
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80 लोकसभा सीटों के साथ उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए सबसे अहम हो जाता है. यह राज्य बीजेपी की 370 सीटें जीतने की योजना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. 370 सीटों का लक्ष्य खुद पीएम मोदी ने अबकी बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए तय किया है. जबकि उनका नारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए 400 से ज्यादा सीटें जीतने का है. पार्टी जानती है कि अगर उसे पिछले दो चुनावों के अपने स्कोर को पार करना है तो उसे राज्य में एक बड़े प्रयास की जरूरत है.
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साल 2014 में बीजेपी ने राज्य में 71 सीटें जीती थीं. पांच साल बाद, 2019 में, दो क्षेत्रीय दिग्गजों - अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी - के बीच गठबंधन के कारण यह आंकड़ा घटकर 62 हो गया. कुछ सीटों पर पार्टी कुछ हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल करने में सफल रही. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और उद्घाटन के अपने वादे को पूरा करने के बाद बीजेपी इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है. उनका मनोबल इस बात से भी बढ़ा है कि सपा-बसपा गठबंधन अब इतिहास बन गया है. जहां अखिलेश यादव विपक्षी गुट इंडिया के साथ हैं, वहीं मायावती इस चुनाव में अकेले लड़ रही हैं.
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