लोकसभा चुनावों का असली 'किंगमेकर', उत्‍तर प्रदेश से ही होकर निकलता है दिल्‍ली का रास्‍ता 

लोकसभा चुनावों का असली 'किंगमेकर', उत्‍तर प्रदेश से ही होकर निकलता है दिल्‍ली का रास्‍ता 

उत्‍तर प्रदेश देश का वह राज्‍य है जहां पर 80 लोकसभा सीटें हैं. अगर इसे चुनावें का असली 'किंगमेकर' कहा जाए तो गलत नहीं होगा. उत्‍तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा और सबसे घनी आबादी वाला राज्‍य है. देश के 14 प्रधानमंत्रियों में से नौ यहां से चुने गए हैं.

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लोकसभा चुनावों का असली 'किंगमेकर', उत्‍तर प्रदेश से ही होकर निकलता है दिल्‍ली का रास्‍ता सबसे बड़ा राज्‍य है देश की राजनीति का असली किंगमेकर

लोकसभा चुनावों के लिए हलचल तेज हो गई हैं. मार्च में किसी भी समय राष्‍ट्रीय चुनाव आयोग मतदान की तारीखों का ऐलान कर सकता है. इन सबके बीच सबकी नजरें उत्‍तर प्रदेश पर टिकी हैं. यहां पर कांग्रेस और सपा के बीच हुए गठबंधन के बाद अगले कुछ दिनों में कुछ और बड़े राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिल सकते हैं. उत्‍तर प्रदेश देश का वह राज्‍य है जहां पर 80 लोकसभा सीटें हैं. अगर इसे चुनावें का असली 'किंगमेकर' कहा जाए तो गलत नहीं होगा. आइए आज जानिए कि आखिर क्‍यों देश की राजनीति में इस राज्‍य की इतनी अहमियत है. 

यूपी से निकलता दिल्‍ली का रास्‍ता 

कहते हैं यहां पर जिसने जितनी सीटें जीती, उसके लिए नई दिल्‍ली तक पहुंचने का रास्‍ता उतना ही आसान हुआ. उत्‍तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा और सबसे घनी आबादी वाला राज्‍य है. देश के 14 प्रधानमंत्रियों में से नौ यहां से चुने गए हैं और इसे अक्सर देश के राजनीतिक मूड के लिए एक बड़े संकेत के तौर पर देखा जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में पहली बार उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव लड़ा. उनकी अगुवाई में लड़े गए उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कुल सीटों में से एक चौथाई सीटें जीतीं यानी 80 में से 71 सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं. भाजपा को तब 282 सीटें मिली थीं और यूपी में मिले वोट्स की वजह से उसे लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. इसी तरह से साल 2019 में बीजेपी के हिस्‍से में 62 सीटें आईं. 

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बीजेपी की जीत में योगदान 

 उत्तर प्रदेश सबसे अधिक सांसदों चुनता है इसलिए इसे अक्सर भारतीय राजनीति के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक माना जाता है.  राज्य भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा में 80 सीटों और ऊपरी सदन, राज्यसभा में 31 सीटों का योगदान देता है. कार्नेगी एंडोमेंट के एक आर्टिकल में साउथ एशिया फेलो मिलन वैष्‍णव और जैमी हिन्‍स्‍टन ने लिखा कि साल 2014 में बीजेपी का ऐतिहासिक संसदीय बहुमत यूपी में विशाल प्रदर्शन के बिना अकल्पनीय होता. साल 2014 में पार्टी द्वारा जीती गई हर चार सीटों में से एक सीट इस राज्य की थी.   

राज्‍य की बड़ी पार्टियां 

पिछले कुछ दशकों से, यूपी में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा दो क्षेत्रीय, जाति-आधारित पार्टियों-बसपा और सपा-के आसपास केंद्रित रही है. सन् 1984 में दलित कार्यकर्ता कांशीराम ने बसपा की शुरुआत की थी. एक चौथाई सदी से भी ज्‍यादा समय से, बसपा ने सपा के साथ राजनीतिक स्थान के लिए संघर्ष किया है. साल 2012 और 2017 के बीच यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, और वह वर्तमान में पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं. 1990 के दशक से बीजेपी ने भी मतदाताओं के बीच में अपनी पहचान बनाई है और आज यह सबसे ताकतवर पार्टी बन गई है. साल 2014 की तरह ही 2019 इस बार भी बीजेपी की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या वह चुनाव में जाने के लिए समर्थकों और संभावित स्विंग मतदाताओं को जुटा पाती है या नहीं.  

कितने प्रतिशत मतदान 

साल 2014 में भारत के सोलहवें आम चुनाव में मतदाता मतदान रिकॉर्ड 66.4 प्रतिशत तक पहुंच गया था. यूपी में मतदान 58.4 प्रतिशत था जबकि 2019 में 59.21 फीसदी था. यह राज्‍य में अब तक का सर्वोच्‍च मतदान प्रतिशत था.  साल 2009 में यह करीब 45 फीसदी था. यूपी का मतदाता जाति और धर्म के आधार पर वोट करता है. जबकि यूपी के मतदाता केवल जाति के आधार पर अपनी राजनीतिक प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं करते हैं. जाति की पहचान राजनीतिक व्यवहार के लिए एक महत्वपूर्ण फिल्टर के रूप में काम करती है.  ऐतिहासिक रूप से, भाजपा के मुख्य मतदाता आधार में हिंदू उच्च जातियां शामिल रही हैं.  इस वजह से ही आज भी उत्‍तर प्रदेश देश की राजनीति में एक अहम स्‍थान रखता है और आने वाले समय में भी इसका यही स्‍थान रहने की उम्‍मीद है. 

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