मोटे अनाज का वर्ष चल रहा है और इसको सफल बनाने के लिए पूरे देश में कुछ न कुछ आयोजन किया जा रहा है. इसी में उत्तराखंड भी है जहां मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग ने मिलेट्स मिशन योजना का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. आगामी कैबिनेट में इस योजना के प्रस्ताव पर मंजूरी मिल सकती है. इसी कड़ी में उड़ीसा की तर्ज पर उत्तराखंड के मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने और इसकी मार्केटिंग करने के लिए मिलेट्स मिशन योजना शुरू की जाएगी. इस योजना में सहकारी समितियों के माध्यम से मंडुवा (रागी) खरीदने की व्यवस्था की गई है. इसके लिए एक रिवाल्विंग फंड भी स्थापित किया जाएगा.
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे किसान मंडुवा की खेती करते हैं. इन सभी किसानों से मंडुवा एकत्रित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रति किलो के हिसाब से प्रोत्साहन राशि देने की योजना बनाई गई है. मंडुवे का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को मंडुआ की उन्नत किस्मों का बीज दिया जाएगा और साथ ही प्रशिक्षण भी दिया जाएगा.
उत्तराखंड में लगभग 86 हजार हेक्टेयर में मंडुए की खेती की जाती है. इसमें 1.27 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होता है. राज्य के गठन के बाद से प्रदेश में मंडुए की खेती का रकबा थोड़ा कम हुआ है. वर्ष 2000 हजार में राज्य में मंडुए का क्षेत्र 1.32 लाख हेक्टेयर था जो अब वर्ष 2021-22 तक 86 हजार हेक्टेयर हो गया है. पहाड़ों में मंडुए की खेती एक जगह पर नहीं हो पाती है. इस वजह से किसान छोटे-छोटे खेतों में मंडुआ का उत्पादन करते हैं.
भारत के कई राज्यों में मंडुआ की खेती अच्छी मात्रा में की जाती है. इन राज्यों में शामिल हैं उत्तराखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश. मंडुआ का उपयोग रोटी, ब्रेड, खीर, इडली और डोसा बनाने में किया जाता है.
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इस वर्ष मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष में आठ अनाजों को शामिल किया है जिसमें, बाजरा, ज्वार, रागी (मंडुआ), सांवा, कंगनी, कोदो, कुटकी और चेना शामिल हैं. इन सभी अनाजों के पौष्टिक गुणों और इससे होने वाले फायदे को लेकर सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार जागरूकता अभियान चला रहे हैं जिससे किसान इसकी खेती कर सकें और लोग अपने आहार में इन मोटे अनाजों को शामिल कर सकें.
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