पराली प्रबंधन किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है. किसानों को खेत खाली करने के लिए धान और गेहूं की पराली को खेत में ही जलाना पड़ता है. इसके कारण वायु प्रदूषण होता है. साथ ही मिट्टी को भी नुकसान पहुंचता है. इस समस्या से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (UPCAR) के वैज्ञानिकों ने सलाह जारी करते हुए कहा है कि किसान गेहूं की फसल की कटाई के बाद पराली को आग नहीं लगाएं. किसान पराली को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ दें. पराली जब खेत में सड़ेगी तो इससे खेत की उपजाऊ क्षमता बढ़ेगी. साथ ही प्रदूषण की समस्या भी नहीं होगी.
खराब मौसम के कारण फसलों को नुकसान नहीं हो, इसे लेकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की तरफ से सुझाव जारी किया गया है. इसके तहत किसानों से कहा गया है कि गेहूं की फसल काटने के बाद पराली न जलाएं. इसके बजाय, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए अवशेषों को खेतों में सड़ने के लिए छोड़ दें.
ये भी पढ़ेंः Basmati Varieties : पूसा ने रोगमुक्त बासमती की 3 नई किस्में विकसित कीं, किसानों की बंपर कमाई होगी
राज्य भर में किसानों के उपज प्रबंधन को निर्धारित करने के लिए क्रॉप वेदर वाच ग्रुप की बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक में यूपीसीएआर की तरफ से उत्तर प्रदेश के किसानों खास कर उत्तरी तराई क्षेत्र के किसानों के लिए सलाह जारी की है. सलाह में कहा गया है कि आईएमडी ने राज्य के कुछ इलाकों में छिटपुट बारिश की भविष्यवाणी की है. इससे फसलों को नुकसान हो सकता है. फसल की पैदावार में गिरावट दर्ज की जा सकती है. बैठक के दौरान यह भी चर्चा हुई कि बारिश के कारण नमी होने से फसलों में कीटों का संक्रमण हो सकता है. इससे बचाव के तरीकों पर भी बैठक में चर्चा की गई. इस दौरान यूपीसीएआर ने सिफारिश की है कि किसानों को गेहूं की कटाई के बाद पराली को कभी नहीं जलाना चाहिए, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए इसे खेत में ही सड़ाना चाहिए.
यूपीसीएआर के वैज्ञानिकों ने कहा कि मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों जैसे तना सड़न, जड़ सड़न, झुलसा रोग से पौधौं को बचाने के लिए सड़े हुए गोबर को खाद में पानी मिलाकर इसे 8-10 दिनों तक छाया में रखना चाहिए. इसके बाद इसका इस्तेमाल खेतों में करना चाहिए. इससे फसल के रोगों का रोकथाम किया जा सकता है. इसके साथ ही जिन किसानों ने दलहन और जड़ वाली फसलों की खेती की है, वे अपने खेतों में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए नियमित सिंचाई करते रहें.
ये भी पढ़ेंः Green Fodder: पशुओं को दलहनी चारा खिला रहे हैं तो इस बात का रखें खास ख्याल
यूपीसीएआर के वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि मूंग जैसी दलहनी फसलों में सफेद कैटरपिलर का प्रकोप हो सकता है. मूंग की फसल को कैटरपिलर के प्रकोप से बचाने के लिए क्रॉप वेदर वाच ग्रुप ने सुझाव दिया है कि इसके लिए कीटनाशकों के अलावा नीम और तेल के जैविक घोल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह काफी प्रभावी होता है. इसके अलावा सभी फलों को कीट के संक्रमण से भी बचाने के उपाय किसानों को बताए गए हैं. जानवरों के लिए जारी किए गए सलाह में कहा गया है कि जानवरों को हरा चारा अवश्य खिलाएं. पशुओं को सूखा हरा चारा (विशेषकर ज्वार) न खिलाएं. मौजूदा मौसम में तापमान अधिक होने के कारण पशुओं को डिहाइड्रेशन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. इससे बचाव के लिए उन्हें नमक खिलाएं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today