Cotton farming Sirsa: सिरसा में कपास की खेती खतरे में हरियाणा का सिरसा जिला कभी कपास की खेती के लिए जाना जाता था. यहां पर कभी इसे 'सफेद सोना' तक कहा जाने लगा था. लेकिन अब यहां कपास के खेत खाली पड़े हैं और किसान कपास की खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं. कपास के खेत धूल के मैदान में बदल गए हैं क्योंकि किसानों का मन अब धान की खेती में रमने लगा है. एक रिपोर्ट की मानें तो पिछले साल धान की खेती ने कपास को पीछे छोड़ दिया है. जहां धान का रकबा बढ़ा है तो वहीं कपास का दायरा सिकुड़ता जा रहा है.
अखबार द ट्रिब्यून की खबर के अनुसार साल 2024 में, धान ने कपास को बड़े अंतर से पीछे छोड़ दिया है. जहां 1.56 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई और 6 लाख मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन हुआ जो वहीं कपास की खेती 1.37 लाख हेक्टेयर में हुई और 4.3 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ. साल 2003 से 2014 तक सिरसा में कपास का उत्पादन जमकर होता था और उस दौर को कपास का 'सुनहरा दौर' तक कहा जाता है. उस समय बीटी कॉटन के बीज (2003 में बीजी-1 और 2005 में बीजी-2) ने उत्पादन में क्रांति ला दी थी. साल 2011 में कपास की खेती चरम पर थी. उस समय 2.11 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई और 9.56 लाख मीट्रिक टन का बंपर उत्पादन हुआ.
पिछले पांच-छह सालों में स्थिति बदलने लगी है. कपास की फसलें व्हाइटफ्लाई और पिंक बॉलवर्म के इनफेक्शन से तबाह हो गई हैं. खेती लगातार बदलते मौसम और बीज टेक्नोलॉजी में ठहराव के कारण और भी खराब हो गई है. किसान अब पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी धान की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं. हालांकि धान की खेती में पानी की मांग बहुत ज़्यादा हो. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कपास की खेती 2020 में 2.09 लाख हेक्टेयर से घटकर 2024 में सिर्फ़ 1.37 लाख हेक्टेयर रह गई है. इसी अवधि के दौरान, धान की खेती 2018 में 97,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2024 में 1.56 लाख हेक्टेयर हो गई, और इस साल 1.7 लाख हेक्टेयर को पार करने का अनुमान है.
किसानों का कहना है कि बीटी कॉटन को जब शुरुआत में सफलता मिली तो उसने एक ऐसी मुसीबत पर पर्दा डाल दिया जो वाकई बड़ी चुनौती थी. बीटी बीजों ने बॉलवर्म से निपटा, लेकिन उसमें कीट लगने लगे. व्हाइटफ्लाई और पिंक बॉलवर्म वापस आ गए हैं, और कोई नई पीढ़ी का बीज नहीं है. कीटनाशक लॉबी ने बीजी-3 को ब्लॉक कर दिया. अब किसानों को हर मौसम में कीटों के हमलों का सामना करना पड़ता है. इस वजह से कई किसानों ने कपास की खेती ही बंद कर दी है. साथ ही किसानों ने बढ़ते तापमान और नमी के ज्यादा स्तर को भी कीटों के बढ़ते हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
किसानों को नहीं भूलता है कि कैसे साल 2022 और 2023 में गुलाबी सुंडी की वजह से कपास की 90 फीसदी तक की फसल चौपट हो गई थी. इसकी वजह से किसानों को बड़ा नुकसान हुआ था. कई किसानों को तो प्रति एकड़ 50,000 रुपये तक का नुकसान हुआ. कुछ को बीमा मिला तो कुछ अभी तक मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं. सिरसा में केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. अनिल मेहता ने कपास की फसल में आई गिरावट के लिए मुख्य रूप से कीटों के हमले के कारण कम पैदावार को जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने कहा कि कटाई के बाद किसान कपास की टहनियों को खेतों या घर में ही छोड़ देते हैं जिससे लार्वा जीवित रहते हैं और अगली फसल पर हमला करते हैं. साथ ही, बुवाई के दौरान पानी की कमी से अंकुरण पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वहीं कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कपास के बीज अभी भी उपलब्ध हैं लेकिन ऐसे बीज चाहिए जो कीट-प्रतिरोधी किस्मों के हों.
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