ताजमहल के चलते बढ़ा पेठा कारोबार, मांग पूरी करने के लिए कुम्हड़े की खेती बढ़ा रहे किसान

ताजमहल के चलते बढ़ा पेठा कारोबार, मांग पूरी करने के लिए कुम्हड़े की खेती बढ़ा रहे किसान

शहीद भगत सिंह पेठा कुटीर उद्योग के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल बताते हैं कि आगरे के पेठे को अभी तक जीआई टैग नहीं मिल सका है. वही यहां पेठे की बढ़ती मांग के चलते हर रोज 15 से 20 ट्रक कच्चे पेठे की खपत है. एक ट्रक में 10 से 12 टन कुम्हड़ा आता है जो उत्तर प्रदेश के औरैया, मैनपुरी, फर्रूखाबाद और बिहार से मंगाया जाता है.

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ताजमहल के चलते बढ़ा पेठा कारोबार, मांग पूरी करने के लिए कुम्हड़े की खेती बढ़ा रहे किसान कुम्हड़ा से बनता है आगरा का फेमस पेठा

आगरे का पेठा और ताजमहल दोनों साथ-साथ के माने जाते हैं. आज पूरे विश्व में ताजमहल के चलते आगरे के पेठे की भी खास पहचान है. पेठे को गरीबों की मिठाई भी कहा जाता है क्योंकि अन्य मिठाइयों की अपेक्षा यह काफी सस्ती होती है. इस पेठे को बनाने में कुम्हड़े का बड़ा रोल होता है. इतिहासकार बताते हैं कि ताजमहल के निर्माण के दौरान कारीगरों को सबसे अधिक पसंद पेठे की मिठाई होती थी. आज भी आगरा के नूरी दरवाजा के आसपास 400 से ज्यादा पेठे की दुकानें चलती हैं जहां पर हर रोज दो करोड़ रुपये से ज्यादा की पेठे की बिक्री होती है. वही पेठे के लिए कुम्हड़ा पश्चिम उत्तर प्रदेश के औरैया, फर्रूखाबाद, इटावा, मैनपुरी के किसानों के द्वारा पैदा किया जाता है. आगरा में हर रोज तकरीबन 35 से 40 टन कुम्हड़े की खपत होती है. वही अब पेठा किसानों की आय में भी इजाफा हुआ है जिससे इसकी खेती को प्रोत्साहन मिल रहा है.

आगरा के नूरी दरवाजा में पेठे की मिठाई बनाने का काम लगभग 500 सालों से हो रहा है. आज भी यह काम अनवरत जारी है. आगरा नूरी दरवाजे में कुम्हड़ा (कच्चा पेठा) की मंडी भी है. यहां उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि बिहार, राजस्थान से लदी गाड़ियां आती हैं और फिर तय होता है इनका भाव.

पेठे के लिए GI टैग की मांग

कच्चा पेठा बनाने वाले किसान राकेश सिंह के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद, हरदोई और औरैया में सबसे ज्यादा कुम्हड़ा की खेती होती है. यहां से जब मांग की पूर्ति नहीं हो पाती है तो आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक से गाड़ी आती है. वही आगरा के कुम्हड़ा कारोबारी दीपक कुमार बताते हैं कि कुम्हड़ा (कच्चा पेठा) कम लागत में तैयार होने वाली फसल है. कच्चे पेठे की मांग पूरे साल बनी रहती है. सर्दी के मौसम में कच्चे पेठे की कीमत में कमी हो जाती है जबकि मार्च के बाद इसके दाम 2000 रुपये प्रति कुंटल तक पहुंच जाता है. शहीद भगत सिंह पेठा कुटीर उद्योग के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल बताते हैं कि आगरे के पेठे को अभी तक जीआई टैग नहीं मिल सका है. वही यहां पेठे की बढ़ती मांग के चलते हर रोज 15 से 20 ट्रक कच्चे पेठे की खपत है. एक ट्रक में 10 से 12 टन कुम्हड़ा आता है जो उत्तर प्रदेश के औरैया, मैनपुरी, फर्रूखाबाद और बिहार से मंगाया जाता है.

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पेठे के बिना अधूरी ताजमहल की यात्रा

आगरा में ताजमहल घूमने आने वाला हर पर्यटक अपने साथ यहां बनने वाले विशेष तरह की पेठे की मिठाई को ले जाना नहीं भूलता है. महिला पर्यटक नीतू सिंह ने बताया कि वह ताजमहल घूमने आई हैं और पेठे की खरीदारी कर रही हैं. जब वह अपने घर पहुंचती है तो सबसे पहले आगरे के पेठे की ही मांग की जाती है. पेठे के निर्माता सोनू मित्तल बताते हैं कि उनकी दो पीढ़ियां इस काम में लगी हुई हैं. पेठे की मांग लगातार बढ़ रही है. वही अब पेठे का दाम भी बढ़ रहा है. आगरा में प्रतिदिन दो करोड़ रुपये से ज्यादा के पेठे की बिक्री होती है.

बड़े काम का है कच्चा पेठा

किसानों के खेत में उगाया जाने वाला कच्चा पेठा आयुर्वेदिक औषधि के रूप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. महाभारत काल में कुम्हड़ा को कुष्मांडा कहा जाता था. कुम्हड़ा लीवर और ब्लड से जुड़ी हुई बीमारियों के इलाज में काफी ज्यादा कारगर है. आयुर्वेदाचार्य डॉ. एच.सी कुशवाहा ने बताया कि कच्चा पेठा गर्मी में ठंडक देता है और सर्दी में खांसी जुखाम से बचाता है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कच्चा पेठे का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसमें ऐसे पोषक तत्व मौजूद हैं जो प्रेगनेंसी में फायदेमंद हैं. इसके अलावा आंख, दिल और मस्तिष्क के लिए यह फायदेमंद माना जाता है. पेठे में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन,फास्फोरस और विटामिन सी की मात्रा पाई जाती है.

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