यूपी के कई हिस्सों में झमाझम बारिश हो रही है. गन्ने की फसल बरसात के मौसम में तेजी के साथ अपनी लंबाई को बढ़ाती है, लेकिन इसी समय गन्ने की पत्तियों का रस चूसने वाला कीट हमला भी करता है. यह कीट पत्तियों का रस चूस कर पौधे को धीरे-धीरे कमजोर करता है. पौधे की ग्रोथ प्रभावित होती है, जिसकी वजह से उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. जरूरी है कि किसान समय पर कीट नियंत्रण कर लें.
इसी क्रम में प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, गन्ना विकास और चीनी उद्योग वीना कुमारी ने विभागीय समीक्षा बैठक में रोग एवं कीट से प्रभावित गन्ना फसल के आकलन और फौरन रोकथाम के लिए सभी उप गन्ना आयुक्त, जिला गन्ना अधिकारियों एवं चीनी मिलों के प्रबन्धक केन मैनेजर, फील्ड स्टाफ को भी क्षेत्र भ्रमण करने के कड़े निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही रोग एवं कीट से प्रभावित गन्ना क्षेत्रों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट मुख्यालय को तत्काल उपलब्ध करेंगें.
अपर मुख्य सचिव ने यह भी निर्देशित किया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में किसानों से बातचीत करेंगें और मौके पर ही रोग एवं कीट से प्रभावित गन्ने के उपचार हेतु रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराएंगे. इस अभियान में गन्ना शोध केन्द्रों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक भी कीट एवं रोग से प्रभावित गन्ना फसलों के बचाव के लिए त्वरित उपाय किसानों को बताएंगे.
आयुक्त, गन्ना एवं चीनी, उप्र मिनिस्ती एस ने बताया कि गन्ने की तीव्र वृद्धि तथा रोग एवं कीटों से नियत्रंण हेतु गन्ना विकास विभाग द्वारा किसानों को महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी खेतों से बाहर निकल चुका है, उन खेतों में जड़ विगलन (रूट राट) रोग के प्रबन्धन हेतु फफूंदनाशी थायोफेनेट मिथाईल 70 WP अथवा कार्बेन्डाजिम 50 WP का 2 ग्राम प्रति ली. पानी की दर से गन्ने की जड़ों के पास ट्रेंचिंग करें. उन्होंने कहा कि फसल की तीव्र वृद्धि के लिए घुलनशील उर्वरक एन.पी.के. 19:19:19 का 05 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 ली. पानी में घोल बनाकर गन्ने की पत्तियों पर छिड़काव करें.
साथ ही यह भी बताया कि तराई क्षेत्र अथवा जिन खेतों में अधिक समय तक पानी भरा हुआ है, वहां कहीं-कहीं पर सफेद मक्खी का प्रकोप देखा जा रहा है. इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों गन्ने की पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे गन्ने की पत्तियों का रंग हरे की जगह लालिमा लिये हुए हल्के पीले रंग का हो जाता है. पेड़ी वाले खेतों में इसका अधिक प्रभाव देखा जा रहा है. इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल. की 150-200 एमएल मात्रा को 625 ली. पानी में घोल बनाकर गन्ने की पत्तियों पर छिड़काव करें.
उन्होंने बताया कि कुछ जल प्लावित क्षेत्रों में सफेद गिडार अथवा व्हाइट ग्रब का प्रकोप देखा जा रहा है. इस कीट की गिडार गन्ने की पौधों की जड़ों व जमीन की सतह के नीचे वाले भाग को खाती है जिससे प्रभावित पौधा पीला होकर पूरी तरह से सूख जाता है एवं आसानी से जड़ सहित उखड़ जाता है. इसके नियंत्रण के लिए बाइफेन्थ्रिन 10 ई.सी. घोल दर 800 एम.एल. अथवा क्लोथियानिडीन 50 WDG 250 ग्राम को 1875 ली. पानी में घोल बनाकर गन्ने की लाइनों में ट्रेंचिंग के बाद सिंचाई कर दें. इस कीट के जैविक नियंत्रण के लिए 5 किग्रा प्रति दर से बवेरिया बैसियाना को 1-02 कु. गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर गन्ने की लाइनो में जड़ों के पास प्रयोग करें.
आयुक्त ने बताया कि वर्तमान में जड़ बेधक कीट का भी प्रकोप देखा जा रहा है जो गन्ने की जड़ वाले भाग को नुकसान पहुंचाता है. इसके नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफास 20 ईसी. 05 ली. अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 500 एमएल को 1875 ली. पानी में घोल बनाकर गन्ने की लाइनों में जड़ों के पास ट्रेंचिंग करें. इस मामले में आयुक्त, गन्ना एवं चीनी ने प्रदेश के समस्त गन्ना किसानों से अनुरोध किया है कि रोग एवं कीटों से नियत्रंण हेतु गन्ना विकास विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार कार्य करें, जिससे कि गन्ने की फसल कीट एवं रोगों से मुक्त रहे तथा भरपूर उपज प्राप्त हो.
फसल की निरंतर निगरानी करते रहें तथा फसल पर किसी भी प्रकार की असमानता दिखाई पड़ने पर तुरंत उपचार करें. माह जुलाई, अगस्त और सितंबर में गन्ने की बढ़वार का पीक पीरियड होता है इसलिए यह समय गन्ने की ग्राण्ड ग्रोथ फेज का है जिसमें गन्ना प्रति सप्ताह 4.9 इंच की दर से बढ़वार करता है. इस समय फसल पर विशेष निगरानी की आवश्यकता होती है.
सभी गन्ना किसानों से अनुरोध है कि बाढ़ से प्रभावित गन्ना क्षेत्रों में कीट एवं रोग से प्रभाव की जानकारी अपने नजदीकी गन्ना समितियो, परिषदों, जिला गन्ना अधिकारी कार्यालयों एवं विभागीय टोल-फ्री नबंर 18001213203 पर तत्काल सूचित करें, जिससे समयान्तर्गत रोग एवं कीट का निदान कराया जा सके. दरअसल समय पर इन कीटों को नियंत्रण न किया जाए तो यह धीरे-धीरे पूरी फसल को चपेट में लेता है. किसानों को आर्थिक तौर पर भारी नुकसान होता है.
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