गेहूं किसानों के लिए सलाहदेशभर में रबी सीजन की गेहूं बुवाई इस समय चरम पर है. बीते दिनों कृषि मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, गेहूं की बुवाई 127 प्रतिशत उछाल देखा गया. इस बीच, गेहूं और जौ पर विशेष रूप से काम करने वाले संस्थान ICAR-भारतीय गेहूं एवं जौं अनुसंधान संस्थान (IIWBR), करनाल ने देशभर के किसानों के लिए इस पूरे पखवाड़े यानी 15 दिनों (15 नवंबर-30 नवंबर) तक के लिए गेहूं किसानों को विस्तृत सलाह जारी की है. किसान तक की ‘गेहूं ज्ञान’ सीरीज की इस खबर में जानिए IIWBR के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को किन बातों का ध्यान रखने की सलाह दी है....
IIWBR के कृषि विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि गेहूं की बुवाई में सही किस्म का चुनाव, समय पर सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन न करने पर पैदावार पर सीधा असर पड़ सकता है. संस्थान ने स्पष्ट कहा है कि किसान अपनी बुवाई की तारीख, सिंचाई उपलब्धता और क्षेत्रीय मौसम को ध्यान में रखते हुए ही गेहूं की किस्म चुनें. बीज हमेशा प्रमाणित और विश्वसनीय स्रोत से खरीदें. मौसम के अनुकूल किस्में गर्मी के झटकों, रोगों और उत्पादन में गिरावट के जोखिम को काफी हद तक कम करती हैं.
HD 3386, PBW 826, HD 3406, DBW 222, DBW 187
DBW 386, HD 3388, DBW 187, PBW 826, HD 3411, DWL 222, HD 3249, HD 3086
HI 1699, NWS 2194, HI 1650, GW 513, GW 547, DBW 187, HI 1636, MACS 6768, GW 366
WH 1306, NSW 2222, DBW 443, AKW 5100, PBW 891, MP 1378, MACS 4100, DBW 48 (ड्यूरम), HI 8826 (ड्यूरम)
भारत में बारिश, मिट्टी और तापमान के अनुसार गेहूं की बुवाई का समय हर क्षेत्र में थोड़ा अलग होता है. वैज्ञानिकों ने दो प्रमुख जोन में उर्वरक और बीज दर की स्पष्ट सिफारिश की है.
उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र और पूर्वोत्तर मैदानी क्षेत्र के लिए किसानों को बीज दर, खाद का इस मात्रा में इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है.
बीज दर: 100 किग्रा/हेक्टेयर
उर्वरक: 150:60:40 किग्रा NPK/हेक्टेयर
1/3 नाइट्रोजन + पूरी फॉस्फोरस और पोटाश बेसल में
बाकी नाइट्रोजन पहली और दूसरी सिंचाई में बराबर मात्रा में
बीज दर: 100 किग्रा/हेक्टेयर
उर्वरक: 120:60:40 किग्रा NPK/हेक्टेयर
नाइट्रोजन का एक तिहाई बुवाई के समय, बाकी दो भाग पहली दो सिंचाइयों में
फलारिस माइनर जैसे प्रतिरोधी खरपतवारों पर नियंत्रण चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. विशेषज्ञों ने निम्न उपाय सुझाए हैं:
20-25 दिन के भीतर की गई पहली सिंचाई से जड़ों का विकास मजबूत होता है और कल्ले बनना बेहतर होता है. पानी की उपलब्धता कम हो तो सिंचाई अंतराल को वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधित करें.
जिन क्षेत्रों में दीमक समस्या है, वहां बीज उपचार अनिवार्य बताया गया है.
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